दिन-रात जी तोड़ मेहनत करता रहा,
परिश्रम की भट्टी में हर पल तपता रहा,
तुम्हारा भविष्य सुनहरा बनाने के लिए,
सोने से कुंदन में परिवर्तित होता रहा।
जिम्मेदारी के नाम पर छलता रहा,
कोल्हू के बैल की तरह चलता रहा।
झाबुआ। उक्त पंक्तियां कोल्हू के बैल की तरह हर समय ’यस सर’ की मुुद्रा मे रहने वाले चुनाव ड्युटी में सदा तत्पर रहने वाले शासकीय कर्मियों के लिये सामयिक लगती है । निर्वाचन आयोग की बैलगाड़ी के नीचे जिले का तंत्र उस स्वान की तरह चल रहा जैसे एक कहावत में इसे कहा गया। और निर्वाचन से जुड़ा अधिकारी वर्ग वाला प्रशासनिक तंत्र यही समझ रहा कि पूरी बेल गाड़ी ही हम खीच रहे हैतो यह उनका भ्रम है। कार्य में तनिक लापरवाही करने पर सीधे निलंबन की कलम चलाने वाले साहब को मैदानी कर्मचारी जो मरता क्या नही करता की तर्ज पर अपनी तमाम परेशानियों,बीमारियों, दिव्यंगता को भी भूल कर लोक तंत्र के यज्ञ को संपन्न करवाने में अपनी जान जोखिम में डाल कर भी कर्तव्यनिष्ठता का परिचय देता है ।
बावजूद उसके कार्य में कर्मचारियों के साथ अति होने लगे तो इसका न केवल विरोध होता अपितु कार्य निष्पादन भी ठीक से नही हो पाता। ठीक उसी तरह अति सर्वत्र वर्जयते’ । लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ मानवीयता भी कोई चीज हेै इसी उद्देश्य से सरकारों ने मानव अधिकार आयोग की स्थापना भी की हैे। हम बात कर रहे हे जिले में हाल ही में दो चरणों में संपन्न हुए त्रि’-स्तरीय पंचायती राज चुनाव की। पहला चरण 25 जून को खत्म हुआ, दूसरा चरण 1 जुलाई को अब जिले के विभिन्न विभागों के कर्मचारियों को चुनाव संपन्न करवाने झोका गया। 25 को मतदान कर कर्मचारी जैसे तैसे अपने घर 26 की शाम तक पहुंचे , 24 जून को रवानगी के बाद 26 तक लगातार कर्मचारियों ने कार्य किया, कुछ आराम करे या गृह कार्य निपटाए, इससे पहले दूसरे चरण के चुनाव के प्रशिक्षण की चिंता के साथ रात बिताई ।
27,28 को प्रशिक्षण कर 30 जून को पुन: चुनाव करवाने गए वहां से 2 जून की सुबह तक घर पहुंचे ही थे कि मोबाइलों पर इंदौर नगर निगम व नगरपालिका चुनाव प्रशिक्षण हेतु मेसेज मिलना शुरू हो गए। 3 जुलाई को कर्मचारियों का जिला मुख्यालय पर प्रशिक्षण हुआ । आज 4 जुलाई को कर्मचारियों को इंदौर हेतु निकलना 6 जुलाई को चुनाव संपन्न करवा कर 7 जुलाई रात्रि तक घर पहुचेंगे। आश्चर्य तो यह कि जिले में ऐसे कई कामचोर कर्मचारी हैे जो अधिकारियों के तलवे चाट अपने आप को चुनाव ड्यूटी से बचा लेते है या येन केन प्रकारेण बीमारी का या अन्य बहाना बना कर बच जाते हैे। जो ईमानदारी से कार्य करते उन्हे और अधिक कार्य में लगा कर निर्वाचन आयोग का डर दिखाया जाता है। इसके प्रत्यक्ष प्रमाण झाबुआ,थांदला में देखने को मिले, जहा दिव्यांग कर्मचारियों को भी लगा दिया गया जबकि निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार दिव्यांग,गंभीर बीमारियों से पीडि़तो को चुनावी कार्य से मुक्त रखा जा सकता हेै । किंतु जिला निर्वाचन अधिकारी ने इस और कोई ध्यान नहीं दिया और कर्मचारी मारे डर के चुनाव संपन्न करवाने पहुंच गए ।
भले दिव्यांग हो या गंभीर बीमारी से पीडि़त हो। इसके परिणाम भी चुनाव लगातार 36 घंटे कार्य करने के दौरान मानसिक व शारीरिक थकान के चलते थांदला कन्या परिसर के प्रधान पाठक विपिन बामनिया को दिल का दौरा पड़ गया, जिन्हे मेघनगर के जीवन ज्योति अस्पताल में इलाज हेतु ले जाया गया । इंदौर चुनाव ड्यूटी में पुन: विपिन बामनिया की ड्यूटी लगाई गई, जिनका नाम सूची में 325 पर है। ऐसे और भी कई कर्मचारी हेै जिन्हे चिकित्सको ने गंभीर बीमारियों से पीडि़त बताया बावजूद उसके चुनाव लगा कर आखिर जिला प्रशासन क्या दिखाना चाहता है,े यह समझ से परे हैे। इंदौर चुनाव हेतु जिले के विभिन्न विभागों के 925 कर्मचारियों को लगाया गया हेै। बताते हे जिले में अभी ऐसे सैकड़ों कर्मचारी हेै जिनकी ड्यूटी जिले के त्रिस्तरीय पंचायती राज चुनाव में नही लगी , उन्हे लगाया जा सकता था । किंतु लगाए कैेसे ये कर्मचारी या तो अधिकारियों के प_े है या फिर इतने दबंग हेै कि निर्वाचन आयोग में पैठ रखते हैे।
गत दिवस कलेक्टर ने निर्वाचन कार्य में तनिक लापरवाही करने पर 9 शिक्षकों व दो अन्य विभाग के कर्मचारियों को निलंबित कर दिया। संभवत: आनन फानन में यह कार्यवाही इंदौर चुनाव ड्यूटी लगाए कर्मचारियों के लिए खौफ का एक संदेश था। साहब ये जिले के कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी हैे कोल्हू के बेल नहीं हे। कई कर्मचारी गंभीर बीमारियों से पीडि़त हो कर नियमित दवाई सेवन करने वाले हैे। मतदान केंद्रों के लिए सभी सुविधा की बात की जाती, किंतु मतदान केंद्रों पर कर्मचारी खाने और पीने के पानी को मोहताज हो जाते। बताते हे अंतर्वेलिया बूथ पर कर्मचारियों को जो खाना दिया गया वह अत्यंत ही घटिया स्तर का था । कर्मचारियों ने जैसे तैसे झाबुआ की किसी होटल से खाना मंगवा कर अर्द्ध रात्रि में अपना पेट भरा। लगातार कार्य करने से कर्मचारियों पर मानसिक दबाव भी बनता है, जो मानव अधिकार आयोग के नियमों के भी विपरीत है। अच्छा होता साहब कर्मचारियों को कोल्हू का बेैल बनाने के बजाय शेष कर्मचारियों को इंदौर भेजा जाता ओैर कहा जाता जिले से इतने ही कर्मचारी भेजने की व्यवस्था है ,तो कर्मचारी भी आपको दुआ ही देते । क्योकि ऐसे ’यस सर ’ की मुदा्र में ड्युटी के लिये परेशान होने के बाद भी तत्पर रहने वाले कर्मचारियों की यही दिल की आवाज निकलती है कि-
कितने बड़े हैं कितने घटे हैं,
विवशता के बादल कितने छटे हैं ,
स्वार्थ से उपजी दूषित व्यवस्था,
विपत्ति में सबके मुखौटे हटे हैं।