उज्जैन, अग्निपथ। वेद-दर्शन-साहित्य-कला पर केन्द्रित कल्पवल्ली के शुभारम्भ अवसर पर स्वामी वेदतत्त्वानन्द, भोपाल ने कहा कि वेद विश्व के कल्याण की निधि हैं। वेद मानव मात्र के उपकार की बात करते हैं। अद्वैतवेदान्त दर्शन की एक विशिष्ट चिन्तन पद्धति है। इसमें मानव कल्याण के सूत्र निबद्ध हैं।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ विद्वान् डॉ. केदारनाथ शुक्ल ने कहा कि वेद भारतीय संस्कृति के मूल आधार हैं। वेद एवं शास्त्रों का अन्त:सम्बन्ध निरुपित करने के लिए कल्पवल्ली की संकल्पना की गई है। वरिष्ठ विदुषी प्रो. अजिता त्रिवेदी, उज्जैन ने कहा कि सामवेद का मूल गायन है और इसमें 21 स्वरों की चर्चा हुई है। वैदिक विद्वान् इन स्वरों का प्रस्तुतिकरण हस्तस्वर के माध्यम से करते हैं।
प्रारम्भ में स्वागत भाषण देते हुए अकादमी के प्रभारी निदेशक डॉ. सन्तोष पण्ड्या ने कहा कि वेद की परम्परा का संवर्धन करने के उद्देश्य से कल्पवल्ली का आयोजन किया जाता है जो 1982 से किया जा रहा है। अन्त में धन्यवाद ज्ञापन उपनिदेशक डॉ. योगेश्वरी फिरोजिया ने किया तथा संचालन डॉ. सदानन्द त्रिपाठी, उज्जैन ने किया।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. अजिता त्रिवेदी ने की। इस सत्र में डॉ. सन्दीप शर्मा, धामनोद, डॉ. सिद्धसेन शास्त्री, भोपाल, श्री मुकेश भाला, उज्जैन तथा स्वामी वेदतत्त्वानन्द ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
सरमा-पणि नाटक की प्रस्तुति
कल्पवल्ली के अवसर पर परिष्कृति संस्था, उज्जैन द्वारा शुभम सत्यप्रेमी के निर्देशन में ऋग्वेद के सूक्त सरमा-पणि पर केन्द्रित नाटक की प्रस्तुति की गई। कलाकारों ने इस गम्भीर विषय को अत्यन्त रोचक ढंग़ से मंच पर प्रस्तुत किया। कलाकारों का स्वागत महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो. विजयकुमार मेनन एवं डॉ. सन्तोष पण्ड्या ने किया तथा आभार श्री अजय मेहता ने माना।
कल्पवल्ली में आज
कल्पवल्ली में 20 जनवरी को प्रात: 10:00 बजे वेद शाखा स्वाध्याय होगा। तत्पश्चात् शोध संगोष्ठी का द्वितीय सत्र आयोजित होगा। इसके पश्चात् सुश्री कविता जेहरा एवं साथियों द्वारा कथक समूह नृत्य की प्रस्तुति की जाएगी।