पंचकोशी यात्रा: सडक़ पर निकल पड़ा भक्ति का सैलाब

एक दिन पहले ही पहले पड़ाव पिंगलेश्वर पर पहुंचे हजारों श्रद्धालु

उज्जैन, अग्निपथ। प्रतिवर्ष होने वाली पंचकोशी यात्रा इस बार 15 अप्रैल से शुरू होकर 20 अप्रैल को विराम होना थी। लेकिन भक्ति मेें डूबे श्रद्धालुओं ने एक दिन पहले ही यात्रा को प्रारंभ कर दिया। 14 अप्रैल को ही श्रद्धालुओं ने पटनी बाजार स्थित श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर पहुंचकर वहां से बल लिया और अपने पहले पड़ाव पिंगलेश्वर के रवाना हो गये। शुक्रवार दोपहर तीन बजे तक हजारों की संख्या में श्रद्धालु पिंगलेश्वर पहुंच चुके थे।

पंचक्रोशी यात्रा वैशाख माह की कृष्ण दशमी से प्रारम्भ होकर अमावस्या को समाप्त होती है। भीषण गर्मी में 118 किमी की यह कठिन पैदल यात्रा शुक्रवार से ही शुरू हो गई, जबकि इसे विधिवत शनिवार से प्रारम्भ होना है। पंचकोशी यात्रा में प्रदेश भर के श्रद्धालु शामिल होंगे। सिर पर खाने के सामान की गठरी और भजन मंडली के साथ करीब 2 लाख लोग यात्रा में आते हैं। जो कि अलग-अलग दिन पांच पड़ाव पर रहकर प्रभु की आराधना करते हुए वहीं दाल बाटी का आनंद लेते हुए यात्रा उज्जैन आकर यात्रा पूरी करते हैं। ख़ास बात ये है कि इस यात्रा में बच्चे-बुजुर्ग-महिला-पुरुष सभी शामिल होते है और सभी 118 किमी तक पैदल ही चलते हैं।

शिव पूजन, अभिषेक और दान-दर्शन का समागम है पंचकोशी यात्रा

श्री पिंगलेश्वर मंदिर के पुजारी शिवम शर्मा ने बताया कि पंचकोशी यात्रा में उज्जैन नगरी के चार द्वारपाल की पूजन-परिक्रमा के लिए होती है। पंचक्रोशी यात्रा के मूल में शिव पूजन, अभिषेक, उपवास, दान, दर्शन की प्रधानता है। क्षेत्र के रक्षक देवता श्री महाकालेश्वर भगवान का स्थान मध्य बिन्दु में है।

इस बिन्दु के अलग-अलग अन्तर से मन्दिर स्थित है, जो द्वारपाल कहलाते हैं। उज्जयिनी के पूर्व में स्थित चौरासी महादेव में से 81वां लिंग है। इस महाकाल वन का पूर्व द्वार पिंगलेश्वर माना जाता है। पंचक्रोशी यात्रा का यह पहला पड़ाव है। दक्षिण में कायावरणेश्वर महादेव (करोहन), पश्चिम में बिलकेश्वर महादेव (अंबोदिया) तथा उत्तर में दुर्देश्वर महादेव (जैथल) जो चौरासी महादेव मन्दिर की श्रृंखला के अन्तिम चार मन्दिर हैं।

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