उज्जैन, अग्निपथ। श्री महाकालेश्वर मंदिर में दानदाताओं की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है। भक्तों द्वारा दान में दिया गया सामान कबाड़े में डाल दिया गया है। धूप-पानी से यह सामान अब खराब हो चुका है। ऐसा नहीं है कि मंदिर समिति के पास सामान सहेजने के लिए जगह की कमी है। जगह पर्याप्त है, सिर्फ जिम्मेदारों की मनमानी के कारण ऐसा हो रहा है।
भगवान महाकाल के लिए भक्तगण तरह-तरह की सामग्री अर्पित करने आते हैं। लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि उस महत्वपूर्ण सामग्री कबाड़ का हिस्सा बन जायेगी। वर्तमान में श्री जूना महाकाल मंदिर के पीछे की ओर ऐसी सामग्री को कबाड़ में पड़ा देखा जा सकता है। जिसमें दर्जनों की संख्या में भगवान महाकाल को अर्पित आकर्षक पगड़ी, दान में दिया गया बड़ा त्रिशूल, डमरू, जलाधारी सहित कई सामग्री है। श्रावण मास में बाबा महाकाल की सवारी के साथ निकलने वाले रथ और उस पर विराजित गरुड़, सिंहासन भी कबाड़ में पटक दिये गये हैं।
इसके बाद किसी ने भी यह सामग्री वापस सुरक्षित स्थान पर नही रखी है। ऐसे में धूप, पानी के कारण दान सामग्री खराब होने को है। मामले में मंदिर के स्टोर प्रभारी अभिषेक उपाध्याय से चर्चा की तो उनका कहना था कि यह सही है दान सामग्री को म्यूजियम से हटाने पर व्यवस्थित रखा जाना था। भगवान की पगड़ी को व अन्य सामग्री को सही जगह रखने के लिए अभी कर्मचारियों को कहता हूं।
भगवान को अर्पित सामग्री की ऐसी स्थिति नहीं होना चाहिए
श्री महाकालेश्वर मंदिर परिसर में जूना महाकाल के समीप कबाड़ में पड़ी दान सामग्री व भगवान की पगड़ी की स्थिति को लेकर श्री महाकाल भक्त मंडल के अध्यक्ष व नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष रवि राय ने कहा कि मंदिर प्रशासन को भक्तों द्वारा दी गई दान राशि को सहज कर रखना चाहिए। यह आस्था का विषय है। भगवान को अर्पित दान सामग्री कबाड़ में रखने से श्रद्धालुओं की भावना आहत होती है। यह कार्य निंदनीय है। मंदिर समिति का ध्यान केवल पैसे लेकर दर्शन कराने की ओर है।
15 फीट लंबा त्रिशूल शंख द्वार से कबाड़ में
भगवान महाकाल के भक्तों द्वारा पूर्व वर्ष में पहले स्टील से निर्मित करीब 15 से 20 फीट लंबा डमरू लगा त्रिशूल एक भक्त द्वारा मंदिर समिति को मंदिर परिसर में लगाने के लिए अर्पित किया था। यह त्रिशूल कुछ दिनों तक तो शंख द्वार पर लगा रहा लेकिन अब वह कबाड़ में पड़ा है और जंग खा रहा है। अगर मंदिर समिति चाहे तो इसका उपयोग मंदिर परिसर में कहीं भी खाली स्थान पर कर सकती है। ऐसी कई सामग्री है जिनका उपयोग ही नही किया गया है। ऐसे में यह नजारा देख श्रद्धालुओं की भावनाएं भी आहत हो रही है।
म्यूजियम से बाहर कैसे आई पगड़ी
श्री महाकालेश्वर मंदिर में बीते 2 वर्ष पहले तक बाहर से आने वाले श्रद्धालु कई तरह की आकर्षक पगड़ी हजारों रूपए में खरीद कर बाबा महाकाल को अर्पित करते थे। मंदिर प्रशासन के पास पगड़ी की संख्या जब अधिक हुई तो मंदिर परिसर में पगडिय़ों को सुरक्षित रखने के लिए कांच का म्यूजियम भी बनाया गया था। उस दौरान तय हुआ था कि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को दान राशि प्रदान करने पर स्मृति के स्वरूप भगवान को अर्पित पगड़ी भेंट की जाएगी, लेकिन मंदिर प्रशासन इस व्यवस्था पर ज्यादा अमल नही कर पाया। मंदिर में विस्तारीकरण कार्य और वीवीआईपी के आगमन को देखते हुए जूना महाकाल के पास पड़े कबाड़़ का हिस्सा बना दिया।