आज पूजा-पाठ और कल स्नान-दान करें, रक्षाबंधन आज ९ बजे बाद मनाएं
उज्जैन, अग्निपथ। सावन महीने की पूर्णिमा दो दिन रहेगी। इसमें 30 को पूजा-पाठ, श्राद्ध और त्योहार मना सकते हैं। वहीं, 31 को सूर्योदय के वक्त पूर्णिमा तिथि होने से स्नान-दान इस दिन करना शुभ होगा। सावन महीने की पूर्णिमा को स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में पर्व कहा गया है। वहीं रक्षाबंधन का पर्व बुधवार रात को नौ बजे बाद मनाना उचित रहेगा।
इस बार पूर्णिमा तिथि बुध और गुरुवार को रहेगी। जिससे ये दोनों ही दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए विशेष शुभ फल देने वाले होंगे। इन दिनों में बन रहे शुभ संयोग में किए गए कामों से सुख, समृद्धि और सौभाग्य बढ़ेगा। स्नान-दान का भी कई गुना फल मिलेगा। पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। तीर्थ या पवित्र नदियों के जल से स्नान किया जाता है। इस दिन किए गए दान और उपवास से अक्षय फल मिलता है। इस दिन चंद्रमा पूर्ण यानी अपनी 16 कलाओं वाला होता है। इसलिए इस दिन किए गए शुभ कामों का पूरा फल मिलता है।
गंगा स्नान और पितृ पूजा का पर्व
भारतीय संस्कृति में सावन पूर्णिमा का बहुत ही महत्व है। इस दिन गंगाजल से नहाकर भगवान विष्णु और सूर्य की पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। इस पूर्णिमा पर ही रक्षाबंधन मनाया जाता है। सावन महीने की पूर्णिमा पर पितरों की विशेष पूजा और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। इससे पितृ तृप्त होते हैं। सौभाग्य और समृद्धि के लिए इस पर्व पर भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा और व्रत भी किया जाता है।
सौलह कलाओं वाला होता है चंद्रमा
पूर्णिमा पर सूर्य और चन्द्रमा के बीच 169 से 180 डिग्री का अंतर होता है। जिससे ये ग्रह आमने-सामने होते हैं और इनके बीच समसप्तक योग बनता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सौलह कलाओं से पूर्ण रहता है। इसलिए इस दिन औषधियों का सेवन करने से उम्र बढ़ती है। इस योग में किए गए कामों में सफलता मिलती है। पूर्णिमा के स्वामी खुद चंद्रमा हैं। ज्योतिष के मुताबिक चंद्रमा का असर हमारे मन पर पड़ता है। इसलिए इस तिथि पर मानसिक उथल-पुथल जरूर होती है। गुरुवार और पूर्णिमा तिथि से बनने वाले शुभ संयोग में किए गए कामों से सुख, समृद्धि और सौभाग्य मिलता है।
रात 9.07 बजे बाद मनाएं रक्षाबंधन
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बेवाला ने बताया कि रक्षाबंधन के पर्व काल पर प्रात: 10 बजे से भद्रा का आरंभ होगा जो रात्रि में 9.07 बजे तक रहेगा। दिनभर भद्रा का साया रहने के कारण रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जा सकता। ऐसी मान्यता है कि रक्षाबंधन के पर्व काल में पूर्णिमा तिथि में भद्रा का योग बनता हो तो भद्रा का वह काल छोड़ देना चाहिए। भद्रा समाप्त होने के बाद ही रक्षाबंधन का त्यौहार मनाना चाहिए। रात्रि नौ बजकर सात मिनट पर भद्रा समाप्त हो जाएगी उसके बाद रक्षा बंधन का पर्व मनाना शास्त्रोचित रहेगा। धार्मिक ग्रंथों में भद्रा के संबंध में अलग-अलग विचार प्रकट किया गया है। कुल मिलाकर जब भद्रा का वास पृथ्वीलोक या भूलोक पर हो तब उस भद्रा का त्याग कर देना चाहिए व भद्रा की समाप्ति की प्रतीक्षा करनी चाहिए उसके बाद ही रक्षा बंधन का पर्व मनाना चाहिए।