अर्जुन सिंह चंदेल
उज्जैन में मंगलवार 14 नवंबर को शहीद पार्क की एक जनसभा में मध्यप्रदेश सरकार के काबीना उच्च शिक्षा मंत्री एवं दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी मोहन यादव द्वारा दिया गया अमर्यादित भाषण सोश्यल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ। जिस किसी भी भारतीय नागरिक ने उसे देखा और सुना उसने अपने दाँतों तले ऊँगलियां दबा ली।
भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली और गुरू सांदीपनि की कार्यस्थली जो कि हर भारतवासी की श्रद्धा का केन्द्र है, उज्जैन आने वाला हर पर्यटक सांदीपनि आश्रम जरूर जाता है और श्रीकृष्ण (मोहन) को 64 कलाओं का ज्ञान देने वाले गुरू सांदीपनि के चरणों में शीष झुकाता है। हिंदुओं की ऐसी धार्मिक आस्था है कि हजारों वर्ष पूर्व भले ही गुरू सांदीपनि जी ने भौतिक शरीर त्याग दिया हो परंतु उनकी सूक्ष्म उपस्थिति आज भी उज्जैन की पवित्र भूमि को सुगंधित कर रही है।
कल राजनैतिज्ञ और कलयुगी मोहन उच्च शिक्षित पी.एच.डी. डॉ. मोहन यादव ने एक राजनैतिक चुनावी सभा में जिस भाषा का उपयोग किया उसकी निंदा हर नगरवासी कर रहा है। काँग्रेसियों को कोसते हुए जोश-जोश में वह यह तक बोल गये कि बाप का दूध पिया है तो—- जहाँ से आये हो वहीं गाड़ देंगे। इस तरह की भाषा का उपयोग किया कि सभा में मौजूद भाजपाई भी दंग रह गये।
मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री का यह बयान और उपयोग की गयी भाषा को सुनकर गुरू सांदीपनी की आत्मा भी फूट-फूटकर रोयी होगी। दक्षिण विधानसभा के दो लाख से अधिक मतदाता भी सोच रहे होंगे कि ऐसा आचरण हमारे जनप्रतिनिधि का कतई नहीं हो सकता, जरूर कोई दुष्टात्मा ने उनके मुँह से यह बात निकलवायी होगी ठीक उसी तरह जिस तरह कैकयी के जुबान से दशरथ से मांगे गये तीन वचन थे। जिन्होंने भगवान राम के राज्याभिषेक को 14 वर्ष के वनवास में बदल दिया था।
खैर, कमान से निकलने के बाद जैसे तीर पर वापस नहीं आ सकता ठीक वैसे ही जुबान से निकलने के बाद शब्द वापस नहीं आ सकते।
भले ही मोहन जी आँकड़ों और नंबरों से तय होने वाले चुनावों परिणाम जीत जाए पर नैतिकता का चुनाव आप कल शहीद पार्क की सभा में ही हार गये। उज्जैन के बुद्धिजीवी वर्ग में भी यह प्रतिक्रिया थी कि सरकार के उच्च पद पर आसीन जनप्रतिनिधि को इस प्रकार की भाषा शोभा नहीं देती।
एक वर्ष पूर्व भी नागदा-खाचरौद क्षेत्र में कारसेवकों के सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बड़े बोल बोलते हुए माता सीता के धरती में समा जाने की बात को स्पष्ट करते हुए कहा था कि शरीर त्याग को आत्महत्या के रूप में माना जाता है। उल्लेखनीय है कि इस वीडियो पर उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव के पुतले पूरे प्रदेश भर में जलाए गये थे और बाद में डॉ. मोहन यादव ने इस बयान पर सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी थी। ठीक उसी प्रकार शहीद पार्क की सभा में भाषण दौरान उपयोग किये गये अपशब्दों के लिये सार्वजनिक रूप से खेद प्रगट करना चाहिये। अपनी गलती पर माफी मांगने वाला ही बड़ा होता है अन्यथा जनसाधारण उसे अभिमानी मानता है।