अर्जुन सिंह चंदेल
सुबह की शिफ्ट के निर्धारित स्थानों में से हम चाय बागान और झील में स्पीड बोट की सवारी का आनंद ले चुके थे अब एक और पाईन्ट बचा, वह था इको पाईन्ट। झील से मुश्किल से 1 किलोमीटर ही वापस मुन्नार की ओर आये थे कि इको पाईन्ट आ गया। अपनी प्रतिध्वनि वापस लौटकर सुनायी देने के लिये यह लोकप्रिय है। यह आदर्श पिकनिक स्थल है। इस स्थान पर आकर पर्यटक बच्चे बनकर जब दिल की गहराइयों से चीखते हैं तो उसे देखना बहुत ही रोमांचक अनुभव है।
झील के पानी के किनारे खड़े होकर जब निहारों तो चारों ओर घना जंगल ही नजर आता है। मित्रों ने भी यहाँ ‘अर्जुन’ के नाम की आवाज लगायी लौटकर प्रतिध्वनि आयी। जब सीता-राम की आवाज लगायी तो सिर्फ राम की प्रतिध्वनि लौटकर आयी सीता की ध्वनि वातावरण में विलीन हो गयी। 5-10 मिनट रूककर वापस होटल की ओर चल दिये। भूख लगने लगी थी और भोजन के बाद मुन्नार के अजूबे भी देखने जाना था दूसरे सेशन में, लगभग 1 बजे होटल पहुँच गये।
आज 11 अगस्त थी केरल यात्रा का दूसरा दिन और मुन्नार में भी दूसरा दिन। कल सुबह हमें अगले पड़ाव पेरियार जाना था। संकल्प ने निर्देश दिये कि सभी लोग हाथ मुँह धोकर डेढ़ बजे लंच के लिये नीचे आ जायें। दोपहर का भोजन भी स्वादिष्ट था वेज में दाल-चावल, पनीर की सब्जी, सॉभर, चपाती, जूस और नॉनवेज में चिकन सबने छक्कर भोजन किया अब हमें दूसरी शिफ्ट में एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान देखने जाना था। उद्यान जाने के लिये हमें स्थानीय जीपों का ही सहारा लेना था क्योंकि यह अनिवार्य है।
दो जीपों में सवार होकर हम दोपहर ढाई बजे निकल पड़े एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान देखने। जीप वाले ने उद्यान के निर्धारित स्थान पर हमें छोड़ दिया जहाँ से केरल वन विभाग की बस से हमें ऊपर पहुँचाया गया घुमावदार और खतरनाक रास्तों से बस का सफर रोमांचकारी था। बीच-बीच में झरने उद्यान की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे। बस ने हमें ऊपर ले जाकर छोड़ दिया जहाँ से हमें कुछ अजूबा देखने के लिये पैदल ही चलना था।
समुद्र तल से 7000 फीट ऊपर स्थित यह पार्क वनस्पतियों और जीवों के आकार और विविधता को देखते हुए अकल्पनीय है। कभी अँग्रेजों का चाय बागान आज वन्य जीवन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। 1978 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। इस उद्यान में 3600 से ज्यादा पौधे और जीव-जंतु है। यहाँ पर स्तनधारियों जीवों की 29 प्रजातियां पायी जाती है।
नीलगिरि तहर, गौर, सुस्त भालू, नीलगिरि लंगूर, बाद्य, तेंदुआ, विशाल गिलहरी है। सबसे प्रमुख आकर्षण और अजूबा ‘नीलगिरि तहर’ है जिसकी आधी विश्व आबादी यहाँ रहती है। चलिये बताते हैं क्या है यह ‘नीलगिरि तहर’ यह एक जंगली प्राणी इसे स्थानीय भाषा में साकिन भी कहा जाता है।
यह बकरी और भेड़ की मिली-जुली प्रजाति है। गधे के आकार का यह ‘तहर’ खुरवाला जानवर है इसकी खासियत यह है कि अपने खुरों की मदद से यह सीधी चढ़ायी चढ़ जाता है। पूरी तरह से शाकाहारी यह प्रजाति स्विटजरलैंड में पायी जाती है चूँकि मुन्नार की जलवायु स्विटजरलैंड से मिलती जुलती है इस कारण यह यहाँ पाया जाता है इसके नर के सिर के बीच में सींग होते है जिसकी लंबाई 16 इंच तक होती है मादा तहर के सींगों की लंबाई 12 इंच होती है। नर तहर का वजन 80 से 100 किलो और मादा तहर का 60 से 80 किलो होता है। बीसवी सदी की शुरुआत में इनकी संख्या महज 100 रह गयी थी जो अब 2000 हो गयी है।
एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान तमिलनाडु और केरल की भौगोलिक सीमाओं को भी अलग करता है। हम सभी लोग उद्यान की आखरी सीमा तक पहुँच गये थे तभी 4-5 तहर दिखायी दिये जिन्हें हम काफी देर तक निहारते रहे। लौटते समय हमें इस उद्यान में 12 वर्षों में सिर्फ एक बार खिलने वाले फूलों की भी जानकारी लगी जिसका विवरण कल।
शेष कल