अर्जुन के बाण : आप भी सुनिये, व्यथा एक बुजुर्ग पंप की

अर्जुन सिंह चंदेल

गतांक से आगे

मैं इंटेकवेल से जलशोधन संयंत्र (फिल्टर प्लांट) की ओर जाने के लिये निकलने ही वाला था कि किसी की कराहते हुए आवाज आयी ‘बेटा रुको’ मेरे पैर ठिठक गये कि सुनसान इंटेकवेल में यह किसकी आवाज है। देखने पर तो कुछ दृष्टिगोचर नहीं हुआ परंतु मेरे दिल ने महसूस किया कि वहाँ स्थापित 6 बुजुर्ग और मरणासन्न पंपों में से किसी एक की आवाज है यह। तभी मुझे लगा कि वह पंप कह रहा है कि हमारी व्यथा-कथा सुने बिना ही क्या यहाँ से लौट जाओगे?

मैंने कहा नहीं सुनाइये अपनी कथा। बुजुर्ग पंप कराहते हुए बोला बेटा 32 साल गुजार दिये इस अंधेरे कुए में मैंने और साथियों ने, हम दिन-रात बिना रुके बिना थके जलदायिनी गंभीर का पानी खींच-खींच कर जनता की प्यास बुझाते चले आ रहे हैं। हम सभी साक्षी हैं इस बाँध के यौवन और दुर्दशा के जब इसके सीने पर चौपहिया वाहन चले थे।

उस पंप ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि अब हमारा कोई भरोसा नहीं है, हम सिंहस्थ के पहले किसी भी दिन उखाडक़र कबाड़े में फेंक दिये जायेंगे, और इतिहास की वस्तु बनकर भुला दिये जायेंगे। पर जाने से पहले हमारे सीने में दर्ज बहुत सारे राज हम तुमसे साझा करना चाहते हैं यदि हमने ऐसा नहीं किया तो हमारी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलेगा। मेरी भी उत्सुकता और जिज्ञासा बढ़ चली थी मैंने दण्डवत प्रणाम किया और ध्यान से बातें सुनने लगा बूढ़ा पंप बोला बेटा हमने दर्जनों विश्वकर्मा वंशजों की पदस्थी यहाँ पर देखी है जिसमें सहायक अभियंता, कार्यपालन अभियंता और उप अभियंता थे। हमने उन सभी को धन-धन्य से पूर्ण करके भेजा है।

वह सभी बहुत सामान्य बनकर शहर से दूर आये थे पर असामान्य (करोड़पति) बनकर लौटे हैं। हम सभी 6 साथियों ने उन्हें ‘फर्श से अर्श’ पर पहुँचाया है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती गयी वैसे-वैसे हमारी धन उगलने की गति बढ़ती गयी। अभियंताओं के कागजों पर साल भर में कई बार हमारा ईलाज होता है, हमारे आपरेशन होते हैं, कई बार तो ईलाज के लिये हमें जबरदस्ती दूसरे शहरों तक में भेज दिया जाता है।

जब हम जवान थे और नये-नये आये थे तब हम इन अभियंताओं के किसी काम के नहीं थे और यह हमारी उपेक्षा भी करते थे, ना हमें समय पर आईल दिया जाता था ना ही ग्रीस। जैसे ही हम पाँच साल के हुए हम विभाग के लिये कामधेनु गाय बन गये। हमारे बीमार होने के नाम पर लाखों की नोटशीट चल जाती है, यदि किसी अभियंता को पैसों की ज्यादा जरूरत होती या वार-त्यौहार पर घर में खर्चा ज्यादा आ जाय तो फिर निविदा भी निकलानी पड़ती थी। जितना हम पंपों का मूल्य नहीं है उससे 25-50 गुना हमारे संधारण पर खर्च हो चुका होगा।

बेटा यदि मेरी बात पर विश्वास ना हो तो प्रत्येक वर्ष इंटेकवेल पर हुए खर्च का हिसाब निकलवा लो पिछले 10 वर्षों का दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा। पंप ने कहा बेटा हम हमारे अभियंता बेटों को इतना कमाकर देते हैं जितना उनकी संतानें भी नहीं देती। मैंने कहा और कुछ, पंप बोला ट्रांसफार्मर से भी उसकी व्यथा सुनते जाना और हाँ यहाँ पर एक नाग देवता का भी बलिदान हुआ है, पता है, तुम्हें उस नाग के सीने में भी बहुत सारे राज थे।
(शेष कल)

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