यात्रा वृत्तांत भाग-19 : वतन की सरजमीं पर लौटकर मिला सकून

अर्जुन सिंह चंदेल

गतांक से आगे

पारो से ‘फुंटशोलिंग’ भूटान बार्डर की दूरी लगभग 147 किलोमीटर है और समय 4 घंटे लगता है। आज का पूरा दिन यात्रा में ही जाना था, क्योंकि पारो से फुंटशोलिंग होते हुए भारत के जयगाँव में प्रवेश और फिर वहाँ से सिक्किम की राजधानी गंगटोक पहुँचना।

रास्ते में एक जगह चाय-पान के लिये रुके वहीं पेक करके लाये ब्रेकफास्ट का आनंद लिया। पारो के होटल वाले ने सेंडविच, केले, फ्रूटी सब कुछ दिया था ब्रेकफास्ट में। पेटपूजा से संतुष्टि हुयी। ११:१५ बजे भूटान की बार्डर फुंटशोलिंग पहुँच गये। लगभग १५-२० मिनट की औपचारिकता के बाद भूटानी गाईड टेकराज को अलविदा कहने का समय आ गया था। टेकराज को ईनाम देकर उसके सहयोग के लिये कृतज्ञता ज्ञापित करके अपना-अपना सामान उठाकर हिंदुस्तान में प्रवेश किया।

अपनी सरजमीं पर कदम रखते ही मन को सकून मिला। वतन की ‘रज’ को वंदन करके मन में सोचा कि ‘परवरदिगार’ ने सारी दुनिया में एक ही जमीं एक ही आसमां बनाया है फिर फिरकापस्त इंसा ने सरहदों की कृत्रिम लकीरें क्यों खींच दी? क्या इंसानियत के लिये दुनिया एक नहीं हो सकती? क्या इंसान द्वारा बनायी गयी विभाजन की यह रेखायें नेस्तनाबूद नहीं हो सकती?

खैर हम जयगाँव प्रवेश कर चुके थे। पहले से ही तय वैदिका रेस्टोरेन्ट में दोपहर भोज के लिये पहुँच गये। छक्कर दाल-रोटी, सब्जी, चावल का आनंद लिया। गंगटोक जाने के लिये इनोवा गाड़ी वाले को फोन कर दिया, कुछ ही देर में वह गाड़ी लेकर आ गया। भोजन पश्चात लगभग १२:४५ बजे हम गंगटोक के लिये रवाना हो गये। अभी हम पश्चिम बंगाल में थे अब हमें सिक्किम जाना था जो कि २१३ किलोमीटर दूर था और यात्रा समय लगभग 6 घंटे बता रहा था।

सूने चाय बगान

बंगाल की सडक़ें अच्छी स्थिति में हैं। थोड़ी देर बाद ही राजमार्ग लग गया। मार्ग के दोनों ओर हरियाली यात्रा को सुखद बना रही थी मीलों दूर तक फैले चाय-बगान सूने नजर आ रहे थे, ड्रायवर ने बताया बीते कई महीनों से चाय-बगान मजदूर हड़ताल पर हैं और चाय-बगानों के धनाड्य उद्योगपति उनकी माँगे मंजूर नहीं कर रहे हैं और उन्होंने चाय-बगान बंद कर रखे हैं, फलस्वरूप चाय की फसल बर्बाद हो रही है।

गुड के रसगुल्लो

बातूनी ड्रायवर रास्ते भर मोदी जी के गुणगान गाता रहा हमारे एक साथी की राजनैतिक विचारधारा को लेकर तीखी नोकझोंक भी हुयी जिससे सफर का पता ही नहीं चल पा रहा था. जलपाईगुडी, धूपगुडी और ना जाने कौन-कौन सी गुडी आ रही थी। बीच में एक जगह शायद मोल्टा नामक जगह पर उसने गाड़ी रोककर हमें बंगाल के विशेष गुड के रसगुल्लों का स्वाद चखवाया जो कि अकल्पनीय था।

उसी गाँव में हमारी साथी को शासकीय चिकित्सालय में दिखाया गया जिनका स्वास्थ्य खराब था यहाँ भी उन्हें पूर्ण रूप से स्वस्थ घोषित कर दिया गया। सभी के मन को शांति मिली शाम गहराने को थी लगभग ५ बजे के करीब हमने बंगाल की सीमा से सिक्किम में प्रवेश किया। नदियों का कोलाहल कानों को अच्छा लग रहा था। यात्रा में हमने देखा कि पहाड़ों का सीना छलनी करके सुरंगों के अंदर ‘लोह पथ गामिनी’ बिछाने का कार्य युद्ध स्तर पर जारी था। भारतीय रेलवे की पहुँच पड़ोसी चीन के ज्यादा से ज्यादा नजदीक होना चाहिये इस लक्ष्य को लेकर भारत सरकार काम कर रही थी। गंगटोक की जगमगाती लाइटें नजर आने लगी थी।
शेष कल

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