यात्रा वृत्तांत भाग-23 : किस्मत वाले ही देख पाते हैं दार्जिलिंग का निर्धारित समय पर होने वाला अद्भुत सूर्योदय

अर्जुन सिंह चंदेल

गतांक से आगे

दार्जिलिंग में भी मौसम खराब ही मिला, बारिश और कड़ाके की ठंड। 12 दिवसीय यात्रा के सबसे कमजोर कमरे यहीं के थे, चूँकि पहले से ही बुक थे इस कारण कुछ नहीं किया जा सकता था। ना तो रूम में सेन्ट्रल हीटर ना ही एसी, ठंड में ठिठुरने लगे। मैनेजर साहब से हीटर का निवेदन किया तो उन्होंने बताया कि 500 रुपये प्रति हीटर का आपको अतिरिक्त देना होगा, यानि तीन रूम के 1500 प्रतिदिन दो दिन में 3000 रुपये का फटका। विरोध किया तो मैनेजर साहब बोले दार्जिलिंग मे सारी होटलों में यही सिस्टम है जो हमें पसंद नहीं आया।

एक सीख जरूर मिली जब भी होटल के रूम बुक करो ए.सी., गीजर, हीटर का पहले पता करो। दिया बत्ती का समय हो चला था, एक साथी को नींबू चाहिये था रिसेप्शन पर फोन लगाया तो जवाब मिला अतिरिक्त चार्ज लगेगा, बस इतना सुनते ही अपने राम भडक़ गये, राजपूती खून रंग दिखाने लगा राजेश भाई को गंगटोक फोन लगाकर बोला कि आपने किस होटल में हमारी बुकिंग करा दी ‘स्वर्ग से सीधा नर्क’ में। राजेश भाई ने तुरंत एक्शन ली और होटल वालों की जमकर क्लास ले ली।

थोड़ी ही देर में प्रबंधक हमारे श्याम बाबू खेद व्यक्त करने के लिये आ गये और माफी भी माँगी वायदा किया अब कोई गलती नहीं होगी। सज्जन और जेन्टलमेन है श्याम बाबू बस हमने भी नाराजी छोड़ी दी और बोझिल वातावरण खुशनुमा हो गया। रात को 2 बजे उठकर तैयार होकर दार्जिलिंग का सूर्यादय देखने जाना था, पहला साईट सीन वही था।

वहाँ सूर्योदय 4 बजे के करीब होता है जिसे देखने भारी संख्या में पर्यटक आते हैं। हमारी 6 लोगों की टीम में से 3 रणबांकुरे तैयार हो गये, हर रूम में से 1-1 गाड़ी वाला रात को 2 बजे आने का बोलकर जा चुका था। प्रबंधक श्याम जी से अब दोस्ती हो गयी थी, रात्रि भोज का मीनू उन्होंने ही तय किया साथ ही सुबह के नाश्ते का भी।

सत्संग के बाद हम सभी खाना खाने भोजन कक्ष में आ गये। खाना इतना लाजवाब था शाम की कड़वाहट मिठास में बदल गयी। खाना बनाने वाले उत्साद के हाथ में जादू था। कहते हैं ना आदमी के पेट से दिल जीता जा सकता है। स्वादिष्ट खाना और फिर श्याम जी ने हमें वीआईपी ट्रीटमेंट दिया, क्योंकि वह दोस्त जो हमारे बन गये थे। शाही भोजन के बाद सभी लोग जल्दी सो गये क्योंकि कुछ साथियों को सूर्योदय देखने जाना था। अपने राम तो आरामतलबी है और नेपाल के ‘पोखरा’ में सूर्योदय देखने का अनुभव कड़वाहट भरा रहा था।

खैर रात को तीनों रणबांकुरे दार्जिलिंग की कडक़ड़ाती ठंड में सेना के मोर्चे पर जाने वाले सैनिकों के समान तैयार होकर जाने लगे, हमने बिस्तर पर पड़े-पड़े ही शुभकामना दी और उम्मीद करी कि आज मौसम दगाबाजी नहीं करेगा, और बादलों के बीच से सूर्य देवता समय पर निकलकर दर्शन देंगे।

हमें तो जल्दी ही नींद लग गयी तीनों रणबांकुरे सुबह ७-८ बजे के बीच वापस लौटे लुटे-पिटे जैसे क्योंकि आसमान में बादलों का डेरा था इस वजह से दो घंटे बाद सूरज देवता के दर्शन हुए, भीषण ठंड के कारण हाल-बेहाल होकर लौटे। सुबह 10 बजे गाड़ी वाला वापस आने वाला था हमें दार्जिलिंग घुमाने ले जाने के लिये। आज 15 जनवरी थी यात्रा का अंतिम दिन, कल हमारी फ्लाइट थी बागडोगरा से ३:४५ पर। सुबह हमें होटल चेकआउट करके ७० किलोमीटर की यात्रा करनी थी जिसमें ढ़ाई घंटे का समय लगने वाला था। सुबह नाश्ते में खस्ता पराठे और आलू की जोरदार सब्जी, ब्रेड आमलेट, खूबसूरत चाय, श्याम जी स्वयं खड़े थे सारी व्यवस्थाओं की मानिटरिंग के लिये। सचमुच मजा आ गया, श्याम जी से सारे गिले-शिकवे दूर हो चुके थे। होटल भले ही कमजोर थी परंतु भोजन सर्वश्रेष्ठ था। गाड़ी वाला आ चुका था, निकल पड़े दार्जिलिंग की सैर पर।
शेष अंतिम कल

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