शिप्रा में विस्फोट की दहशत, त्रिवेणी संगम पर श्रद्धालु की संख्या में कमी

घाटों पर कराया फव्वारों से स्नान, पनौतियां डस्टबिन में छोड़ीं

उज्जैन, अग्निपथ। शिप्रा में हुए विस्फोट को देखते हुए इस बार शनिश्चरी अमावस्या के अवसर पर जिला प्रशासन द्वारा फव्वारा स्नान करवाया गया। त्रिवेणी संगम पर सैकड़ों महिला पुरुषों ने फव्वारा स्नान के बाद पनौतियां छोडक़र भगवान शनिदेव के दर्शन पूजन कर पुण्य लाभ कमाया। हालांकि इस बार अनुमान से कम लोग स्नान को पहुंचे। इसका कारण शिप्रा में पिछले दिनों हुए विस्फोट सामने आया है।

शिप्रा में पिछले दिनों हुए विस्फोटों के मद्देनजर जिला प्रशासन ने शनिश्चरी अमावस्या पर त्रिवेणी संगम के घाटों पर किसी को भी स्नान की अनुमति नहीं दी। सैकड़ों महिला-पुरुष ने फव्वारे में स्नान कर डस्टबिन में पनौतियां छोडक़र भगवान शनि देव के दर्शन किए। हालांकि सुबह श्रद्धालुओं की संख्या कम थी, लेकिन दोपहर में इनकी संख्या बढ़ गई थी, जोकि शाम को वापस कम हो गई। ज्ञातव्य रहे कि दोपहर 3.52 बजे तक ही अमावस्या तिथि थी।

श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर में लगे डस्टबिन में फूल, अगरबत्ती, नारियल और तेल चढ़ाया। ग्रामीण क्षेत्र के श्रद्धालु शनिश्चरी अमावस्या पर बड़ी संख्या में उमड़ते हैं, लेकिन इस बार इतनी कम संख्या में श्रद्धालुओं का उमडऩा उनमें कहीं न कहीं कोई कारण अवश्य दर्शाता है।

फूल-प्रसाद की छंटनी टेंट में

फव्वारा स्नान के बाद भगवान के दर्शन को पहुंच रहे श्रद्धालुओं द्वारा साथ में लाए गए फूल, प्रसाद, तेल, नारियल, अगरबत्ती को सीधे डस्टबिन में डाला जा रहा था। इसी डस्टबिन को मंदिर समिति द्वारा बनाए गए टेंट में खाली कर प्रसाद की छंटनी की जा रही थी।

तेल, कपड़े, जूते-चप्पल, नारियल की होगी नीलामी

शनिश्चरी अमावस्या पर त्रिवेणी स्थित शनि मंदिर में दर्शन पूजन करने वाले श्रद्धालुओं द्वारा चलाए गए तेल, नारियल आदि से लेकर पनौती के रूप में छोड़े गए कपड़े और जूते चप्पलों की समिति द्वारा नीलामी कराई जाती है। भगवान को धार के रूप में चढ़ाए जा रहे तेल को एक डिब्बे में एकत्रित किया जा रहा था। जिसको बाद में नीलाम किया जाएगा।

पूरे नौ ग्रह शिवलिंग के रूप में विराजित

ज्योतिषाचार्य पं. श्याम नारायण व्यास ने बताया कि त्रिवेणी स्थित प्राचीन मंदिर में शनिदेव सहित अन्य ग्रह शिवलिंग के रूप में विराजित हैं। यहां अमावस्या के अवसर पर शनि देव को अटूट तेल की धार से अभिषेक किया जाता है। महाराजा विक्रमादित्य काल के इस मंदिर में अमावस्या के अवसर पर शनि देव के दर्शन पूजन का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनिश्चरी अमावस्या पर संगम पर स्नान मंदिर में दर्शन पूजन से साढ़ेसाती के प्रभाव से मुक्ति मिलती है। भगवान शनिदेव का आकर्षक शाही श्रृंगार कर आरती पूजन किया गया।

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