फर्जी रजिस्ट्री और जमीन हड़पने का गंभीर आरोप!
देवास, अग्निपथ. मंगलवार को देवास कलेक्ट्रेट में चल रही जनसुनवाई के दौरान उस वक्त हड़कंप मच गया, जब एक महिला ने अपनी कई बार गुहार लगाने के बाद भी सुनवाई न होने से हताश होकर आत्महत्या करने की कोशिश में कलेक्ट्रेट की छत पर पहुँच गई। यह घटना हाटपीपल्या में स्थित एक दादी की जमीन पर फर्जी तरीके से रजिस्ट्री और जमीन की अदला-बदली किए जाने के संबंध में थी, जिसकी शिकायत लेकर पोता धर्मेंद्र पिता रमेश चंद्र बागरी, निवासी हाटपीपल्या, अपने परिवार के साथ कलेक्टर के समक्ष आवेदन देने आए थे।
पीड़ित परिवार पिछले कई महीनों से लगातार जनसुनवाई के चक्कर लगा रहा था, लेकिन उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं हो रहा था। इसी निराशा और अनदेखी से तंग आकर धर्मेंद्र की पत्नी आशा आत्मघाती कदम उठाने के लिए जनसुनवाई से बाहर निकली और दौड़ लगाते हुए कलेक्ट्रेट कार्यालय की छत पर कूदने पहुँच गई। मौके पर मौजूद पत्रकारों और पुलिसकर्मियों ने समय रहते आशा को कूदने से रोक लिया, जिससे एक बड़ा हादसा टल गया।
इस घटना के दौरान पीड़ित परिवार ने ज़मीन विवाद को लेकर अपनी मांग के समर्थन में ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए अधिकारियों और पटवारी पर गंभीर आरोप लगाए। इस अप्रत्याशित घटना से पूरे परिसर में अफरा-तफरी मच गई और प्रशासन हरकत में आया।
क्या है पूरा मामला- फर्जीवाड़ा या सरकारी चूक?
आशा और उनके पति धर्मेंद्र बागरी का कहना है कि उनकी पुश्तैनी जमीन किसी और को फर्जी तरीके से दे दी गई है। वे कई महीनों से कलेक्टर कार्यालय में आवेदन दे रहे हैं, लेकिन अब तक किसी भी स्तर पर सुनवाई नहीं हुई है। महिला ने चेतावनी दी है कि अगर आगे भी कोई सुनवाई नहीं हुई तो वह आत्मदाह जैसा कदम उठाएगी।
कलेक्टर ऋतुराज सिंह ने बताया कि यह मामला काफी पुराना और जटिल है। शिकायतकर्ता को साल 1980 में जमीन का पट्टा जारी किया गया था, लेकिन उसी खसरा नंबर पर करीब 30-35 साल पहले आईटीआई का निर्माण हो गया। धर्मेंद्र बागरी ने 2004 से लगातार कई बार आवेदन दिए हैं। 2004 में कलेक्टर को दिए आवेदन में उन्होंने बताया था कि उनकी दादी नबी बाई की जमीन पर किसी ने फर्जी तरीके से रजिस्ट्री करवा ली है।
दादी की जमीन किसी और के नाम पर हो गई
धर्मेंद्र ने बताया कि यह 16 बीघा जमीन हाटपीपल्या में है। उनकी दादी का निधन साल 2005 में हो गया था। इसके बाद धर्मेंद्र रोजगार के लिए गुजरात चला गया था। जब धर्मेंद्र लौटा तो उसे पता चला कि उसकी दादी की जमीन किसी और के नाम पर हो गई है। धर्मेंद्र का आरोप है कि जमीन के पुराने दस्तावेजों से छेड़छाड़ की गई है। अब अधिकारी इस जमीन को शासकीय भूमि बता रहे हैं, जबकि यह उनकी निजी संपत्ति है।
इस मामले की शिकायत सीएम हेल्पलाइन 181 पर भी की गई थी, लेकिन 10 महीने बाद भी कोई समाधान नहीं हुआ है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि तहसील कार्यालय अब इस जमीन को बागली क्षेत्र में दिखा रहा है, जबकि असली जमीन हाटपीपल्या में ही है।
यह घटना देवास प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है, जहां एक ओर पीड़ित परिवार न्याय की गुहार लगा रहा है, वहीं दूसरी ओर जमीन के दस्तावेजों में हेराफेरी और सरकारी लापरवाही के गंभीर आरोप लगे हैं। देखना होगा कि प्रशासन इस जटिल और संवेदनशील मामले में क्या कार्रवाई करता है ताकि पीड़ित परिवार को न्याय मिल सके और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।