सामाजिक बहिष्कार पर प्रशासन की रोक: पीरझलार गांव में पुजारी को मिला न्याय!

सामाजिक बहिष्कार पर प्रशासन की रोक

उज्जैन, अग्निपथ. बड़नगर के पीरझलार गांव में पुजारी पूनमचंद और उनके परिवार पर लगाए गए सामाजिक प्रतिबंधों को अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद आखिरकार समाप्त कर दिया गया है। इस फैसले के बाद, पुजारी और उनका परिवार अब गांव में सम्मानजनक जीवन जी सकेगा। सामाजिक बहिष्कार पर प्रशासन की रोक से तीन दिनों से चल रही उनकी दुर्दशा का अंत हो गया है।

क्या था मामला?

यह पूरा मामला तीन दिन पहले तब सामने आया, जब पीरझलार गांव की पंचायत ने शासकीय मंदिर के पुजारी पूनमचंद और उनके परिवार को पूरी तरह से बहिष्कृत करने का फरमान सुनाया। पंचायत ने घोषणा की थी कि पुजारी को गांव में किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं मिलेगी – न दूध, न किराना, न ही कोई नाई उनकी कटिंग करेगा। इससे भी बढ़कर, पंचायत ने यह भी तय किया था कि यदि कोई ग्रामीण पुजारी की मदद करता है, तो उसे 51,000 रुपए का भारी-भरकम जुर्माना देना होगा।

इस कठोर फैसले के पीछे का कारण था पुजारी द्वारा शासकीय मंदिर से भगवान देवनारायण की प्रतिमा को अन्य जगह स्थापित किए जाने का विरोध। पुजारी पूनमचंद ने इस मुद्दे को लेकर बड़नगर थाना सहित उच्च अधिकारियों से शिकायत की, जिसके बाद यह मामला और भी गरमा गया और इसने एक बड़े विवाद का रूप ले लिया।

सामाजिक बहिष्कार पर प्रशासन की रोक- त्वरित कार्रवाई

मामला जब कलेक्टर रोशन कुमार सिंह और एसपी प्रदीप शर्मा तक पहुंचा, तो उन्होंने तत्काल इस मसले का हल निकालने के निर्देश दिए। अधिकारियों ने पंचायत के जिम्मेदार सदस्यों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की छूट भी पुलिस को दी, यदि वे इस समस्या का समाधान नहीं करते।

इसके बाद, बड़नगर थाना प्रभारी अशोक पाटीदार ने दोनों पक्षों को थाने बुलाया। बुधवार की रात, लगभग साढ़े आठ बजे पंचायत की बैठक शुरू हुई और रात दस बजे तक चली। इस दौरान, एसडीओपी एमएस परमार और तहसीलदार माला रॉय भी मौजूद थीं। अधिकारियों के ठोस हस्तक्षेप के बाद, दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हो गया। सामाजिक बहिष्कार पर प्रशासन की रोक पंचायत ने लिखित में यह स्वीकार किया और इसका एक वीडियो भी बनाया गया, जिसमें उन्होंने पुजारी पर लगाए गए बहिष्कार को समाप्त करने की घोषणा की।

बहिष्कार का गहरा प्रभाव

14 जुलाई को गांव के पटेल इंदरसिंह ने पंचायत बुलाई थी, जिसकी घोषणा ढोल पीटकर की गई थी। गोकुलसिंह देवड़ा ने पंचायत का संचालन किया था। बहिष्कार का फैसला सुनाए जाने के बाद, पुजारी पूनमचंद का परिवार सदमे में आ गया था। उनके तीन पोता-पोती को तीन दिनों से गांव के प्राइवेट स्कूल वालों ने भी स्कूल में बैठने नहीं दिया था, जिससे उनकी शिक्षा पर भी बुरा असर पड़ रहा था।

पुजारी ने बुधवार को कलेक्टर रौशन कुमार सिंह और एसपी प्रदीप शर्मा को इस घटना की जानकारी दी, जिसके बाद अधिकारी सक्रिय हुए और शाम को पुजारी के घर एक टीम भेजी गई।

मंदिर विवाद की जड़

यह पूरा विवाद बड़नगर तहसील में सर्वे क्रमांक 1322 पर स्थित भगवान देवनारायण के प्राचीन देव धर्मराज मंदिर से जुड़ा है। राजस्व अभिलेखों में भी यह मंदिर इसी नाम से दर्ज है। पूनमचंद इस मंदिर के पुजारी हैं और उन्हें इसकी देखरेख के लिए शासन से मानदेय भी मिलता है।

पुजारी के अनुसार, गांव के कुछ लोग मंदिर की शासकीय भूमि को हड़पना चाहते थे और मंदिर को किसी अन्य जगह स्थानांतरित करना चाहते थे। मंदिर के हितों की रक्षा और प्राचीन मूर्ति को खंडित होने या विस्थापित होने से बचाने के लिए पुजारी ने अपनी हैसियत से व्यवहार न्यायालय में एक वाद प्रस्तुत किया था। इसी के प्रतिशोध में, गांव के दबंगों ने पंचायत बुलाकर उनके परिवार का “हुक्का-पानी बंद” कर दिया, जिससे गांव में कोई उनसे बात नहीं कर रहा था और उनके बच्चों को स्कूल तक में प्रवेश नहीं मिल रहा था।

शांति और समाधान की ओर

अब, पुजारी के बहिष्कार का निर्णय वापस ले लिया गया है। पंचायत में इंदर सिंह पटेल और पुजारी पूनमचंद के अलावा गोकुल सिंह, जितेंद्र चौधरी, कालूराम, मुकेश कुमार, भीम सिंह, मोहनलाल, राजेश कुमार, हीरालाल, मुकेश लौधी और मुकेश चौधरी सहित कई अन्य लोग मौजूद थे। दोनों पक्षों के बीच एक लिखित इकरारनामा हुआ है, जिसमें यह सहमति बनी है कि वे भविष्य में इस मुद्दे को लेकर कोई विवाद नहीं करेंगे। पुलिस विभाग ने इस समझौते का वीडियो भी बनाया है, जिससे भविष्य में किसी भी तरह के उल्लंघन को रोका जा सके।

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