अग्रसेन जयंती महोत्सव: ‘मृगतृष्णा’ नाटक ने विवाह की बदलती परिभाषा को दिखाया

उज्जैन, अग्निपथ। दस दिवसीय अग्रसेन जयंती महोत्सव के तहत अग्रवाल समाज में ‘अग्रसेन साथिया ग्रुप’ द्वारा एक विशेष नाटक ‘मृगतृष्णा’ का मंचन किया गया। इस नाटक ने आधुनिक समय में विवाह के बदलते स्वरूप और पैसे के पीछे भागने की प्रवृत्ति पर गहरा कटाक्ष किया।

नाटक की कहानी और संदेश

‘अग्रसेन साथिया ग्रुप’ की संस्थापक तृप्ति मित्तल के अनुसार, निर्देशक जगप सिंह चौहान के निर्देशन में यह नाटक प्रस्तुत किया गया। नाटक की कहानी मनुष्य की भौतिक सुखों के पीछे की अंतहीन दौड़ पर आधारित थी, जिसके कारण जीवन में कई अव्यवस्थाएँ पैदा हो जाती हैं। इन्हीं अव्यवस्थाओं में से एक है विवाह संस्कार।

नाटक की शुरुआत सृष्टि के पहले विवाहित जोड़े मनु और शतरूपा से होती है। इसके बाद कहानी बेहद रोचक तरीके से आगे बढ़ती है और समय के साथ विवाह के बदलते रूपों को दर्शाती है। नाटक ने दिखाया कि करियर बनाने के चक्कर में विवाह की उम्र बढ़कर 30, 32 और 35 साल तक पहुँच गई है। आज विवाह एक संस्कार नहीं, बल्कि एक समझौते (एग्रीमेंट) जैसा हो गया है।

नाटक में सूत्रधार रामू भाई और धापू बाई ने कहानी को मनोरंजक ढंग से आगे बढ़ाया। उन्होंने विभिन्न दृश्यों के माध्यम से समझाया कि कैसे हम धीरे-धीरे अपनी संस्कृति और संस्कारों को भूलकर सिर्फ पैसों के पीछे भाग रहे हैं।

प्रतीकात्मक अंत

नाटक का अंत प्रतीकात्मक था, जिसमें राम ‘मृगतृष्णा’ में उलझी सीता को रावण का वध कर मुक्त कराते हैं। यह दृश्य दर्शकों को कई सामाजिक बुराइयों पर सोचने के लिए मजबूर करता है।

नाटक के मंचन के दौरान संरक्षक सरोज अग्रवाल, भगवान दास एरन, विजय मित्तल, और राजेश गर्ग सहित बड़ी संख्या में समाज के लोग मौजूद थे। अंत में पूजा मोदी और श्रद्धा गर्ग ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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