अर्जुन के बाण: तुमको हमारी उमर लग जाय

  • अर्जुन सिंह चंदेल

अपने और उज्जैनवासियों के सपनों में बसी नगर विकास की तस्वीरों को जमीनी हकीकत में बदलने और उन्हें सुंदर रूप में परिणित कर इस विशाला, प्रतिकल्पा, कुमुदवती, स्वर्णशृंगा, अमरावती को स्वर्ग से सुंदर बनाने की दिशा में कार्य कर रहे मध्यप्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के अहर्निश प्रयासों की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है।

5000 वर्षों पुराना मेरा शहर आदि ब्रह्मपुराण में सबसे अच्छे शहर के रूप में वर्णित है। एक समय था जब उज्जैयिनी अवंती जनपद की राजधानी हुआ करती थी और इसी कारण इसका एक नाम अवंतिकापुरी भी है। मुगल सम्राट अकबर ने भी उज्जैन को अपनी क्षेत्रीय राजधानी बनाया था।

राजा विक्रमादित्य की भी राजधानी रहे उज्जैन का अतीत वैभवशाली, गौरवशाली रहा है। आजादी के बाद भी यहाँ की कॉटन मिले उज्जैन की धडक़नें हुआ करती थी जिसमें हजारों की संख्या में कर्मचारी कार्य करते थे इन मिलों से बजते सायरन नागरिकों की दिनचर्या में शामिल थे।

धुआं निकालती चिमनियां उज्जैन आने से पहले ही शहर की जिंदादिली का एहसास कराती थी। विनोद मिल, विमल मिल, हीरा मिल, इंदौर टेक्स टाइल, श्री सिन्थेटिक्स, सोयाबीन प्लांट, पाईप फेक्ट्री, मार्डन फूड इंडस्ट्रीज ऐसे अनेक नाम है जो अपने गुणवत्तापूर्व उत्पादनों के लिये पूरे देश में जाने जाते थे। मिलों की जब पाली खत्म होती थी तो पूरा शहर गुलजार हो उठता था हजारों की संख्या में श्रमिक मिलों से बाहर निकलते थे तो अद्भुत नजारा होता था।

जिस दिन मिल श्रमिकों को खर्ची, पगार मिलती थी तो शहर के व्यापारी दीपावली मानते थे। इन उद्योगों में काम की लालसा से उत्तरप्रदेश, बिहार एवं अन्य प्रांतों के लोगों ने उज्जैन आकर अपना आशियाना बनाया और शहर की रौनक बढ़ायी।

लगभग 50 साल पहले इस शहर की रौनक को न जाने किसी नजर लग गयी, शनै:शनै: सारे उद्योग धंधे बंद होते चले गये। मिलों की चिमनियों ने धुआं उगलना बंद कर दिया। व्यापार-व्यवसाय ठप्प होता चला गया, कॉटन मिलों के साथ ही देश-दुनिया में सिन्थेटिक धागों के लिये विख्यात श्री सिन्थेटिक, एशिया का तात्कालिक सबसे बड़ा सोयाबीन प्लांट बंद हो गया।

बीते वर्षों में यह शहर अनाथ हो चला था, राजनैतिक नेतृत्व शून्य था जिसका लाभ इंदौर जैसे शहर ने उठाया और अपने आप को विकसित कर लिया।  बीते दो वर्षों से मेरी उज्जैयिनी के भाग्य फिर संवरे हैं लंबी चली शनि की साढ़े साती समाप्त हुयी सी लगती है। पहले महाकाल लोक ने शहर के मृत प्राय: व्यापार-व्यवसाय को चेतना दी उसके बाद शहरवासियों के भाग्य से डॉ. मोहन यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

तेज तर्रार और अपनी विशिष्ठ कार्यशैली के गुण वाले मुख्यमंत्री वर्ष 2008 से ही इस शहर की धडक़न से परिचित है, प्राधिकरण अध्यक्षीय कार्यकाल से ही शहर को उन्होंने कुछ सौगातें दी भी और अनेक सपने भी संजोये थे। बाबा महाकाल ने उनके द्वारा कागज पर उकेरे गये सपनों को जमीन पर आकार देने का जिम्मा भी उन्हें ही सौंप दिया। हम भी उनकी कार्यशैली के कायल हैं। कहावत है ना कि ईश्वर भी साथ उसी का देता है जो साहसिक होता है।

अवंतिका का भी भाग्योदय हुआ। वर्ष 2004 की शुरुआत से ही सौगातों की झड़ी लग गयी है चाहे वह 38 दिवसीय विक्रमोत्सव हो या व्यापार मेला या फिर दो दिवसीय इन्वेस्टर्स समिट जिसमें 17 उद्योगों का भूमिपूजन, 8 उद्योगों का लोकार्पण, 8014 करोड़ के निवेश की और 12 हजार लोगों को रोजगार की संभावनाएं बलीवत हुई है।

5 हजार करोड़ का महाकाल एक्सप्रेस जैसी खुशखबरी है। सोने पे सुहागा में उज्जैन आगर झालावाड़ नयी रेल लाइ्रन के विस्तृत सर्वें की योजना हेतु निविदा और उज्जैन-जावरा फोरलेन को मंजूरी। मुख्यमंत्री जी भविष्य के उज्जैन की तस्वीर दिलो दिमाग में सोचकर रोमांच पैदा हो रहा है। यदि यह सब उज्जैनवासी अपनी आँखों से देखेंगे तो वह धन्य हो जायेंगे और आप का कार्यकाल वर्षों तक यह कालीदास की नगरी याद रहेगी।

इस शहर का हर वाशिंदा आपके प्रति कृतज्ञता तो ज्ञापित करता ही है और आपके यशस्वी कार्यकाल की कामना करता है। आगामी 2028 में आयोजित होने वाली सिंहस्थ की 18840 करोड़ की कार्ययोजना भी आपके मुख्यमंत्री काल में ही अमली जामा पहनेगी और शहर को महाकाल छप्पर फाड़ देंगे खुशियां।

दो काम और कर दीजिये नागदा से खाचरौद होते हुए रतलाम तक फोरलेन तथा बदनावर से पेटलावद, थांदला, मेघनगर होते हुए झाबुआ तक फोरलेन की घोषणा कर दीजिये। इस पूरे मालवा को चार चाँद लग जायेंगे। कर्मभूमि को आपने जो सौगातें देने की शुरुआत की है वह आपको वास्तविक में विकास पुरुष सिद्ध करती है। हम तो यही कहेंगे तुमको हमारी उमर लग जाए।
जय महाकाल

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