उज्जैन के उदासीन अखाड़े में आए युवा महंत सत्यानंद; अग्निपथ से चर्चा में कहा धर्म प्रचार के लिए ये मार्ग चुना
उज्जैन, अग्निपथ। ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी में 3 साल के लिए योग प्रशिक्षक के रूप में सवा दो लाख रुपए प्रति माह की नौकरी का ऑफर ठुकरा कर अपने जीवन को धर्म व अध्यात्म के लिए समर्पित कर संत बन गए। यह कहानी है उज्जैन के रामघाट मार्ग पर स्थित बड़ा उदासीन अखाड़े के महंत सत्यानंद महाराज की। वे अखाड़े में नए महंत के रूप में यहां आए है।
दैनिक अग्निपथ के संवाददाता नीलेश शर्मा ने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें वियतनाम से भी नौकरी का ऑफर आया था। लेकिन उन्होंने धर्म के प्रचार के लिए यह रास्ता चुना। वे बहुत कम उम्र में ही अपना घर-परिवार सब कुछ छोडक़र संत बन गए। बिहार के सुपौल में जन्म हुआ। बचपन से ही आपको धर्म के प्रति रूचि रही।
27 साल की उम्र में महंत बन गए। आप उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार से राजनीति शास्त्र में स्नातक व योग में एमए की पढ़ाई कर चुके हैं। माता-पिता की इकलौती संतान हैं।
अखाड़े में युवा को योग संस्कृत और अध्यात्म पढ़ा रहे
महंत सत्यानंद उज्जैन में अखाड़े में रहकर युवाओं और साधकों को योग, संस्कृत और अध्यात्म का पाठ पढ़ा रहे हैं। साल 2019 में गुरु से दीक्षा लेने के बाद 2020 में बिहार की धर्म नगरी गया जी में अखाड़े के महंत रहे। फिर हरिद्वार कुंभ मेले में प्रबंधन संभाला। इसके बाद काशी में महंत रहने के बाद अब उज्जैन में है।
