उज्जैन: वैष्णव अखाड़ों की ज़मीन पर स्थानीय महंतों का कब्ज़ा

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने कलेक्टर से की कार्रवाई की मांग

उज्जैन, अग्निपथ। उज्जैन में अंकपात क्षेत्र में स्थित तीन प्रमुख वैष्णव अखाड़ों की करोड़ों रुपये की ज़मीन को वहाँ के स्थानीय महंतों ने अपने नाम करवा लिया है। इस गंभीर मामले का खुलासा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी महाराज ने मंगलवार को बड़नगर रोड स्थित निरंजनी अखाड़े में पत्रकारों से चर्चा के दौरान किया।

⚠️ अक्टूबर में ही कलेक्टर से की गई थी शिकायत

श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज ने बताया कि जमीनों का यह मामला अक्टूबर का है। दिगंबर आणि अखाड़ा, निर्वाणी आणि अखाड़ा और निर्मोही अखाड़े के राष्ट्रीय पदाधिकारी उज्जैन आकर कलेक्टर से मिल चुके हैं। उन्होंने कलेक्टर को पत्र देकर यह उल्लेख किया था कि अंकपात मार्ग पर स्थित वैष्णव अखाड़ों की ज़मीन पर स्थानीय महंतों ने अपने नाम चढ़ा लिए हैं, जबकि उक्त ज़मीन अखाड़े के स्वामित्व की है।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने उज्जैन कलेक्टर से तत्काल कार्रवाई करते हुए वैष्णव अखाड़ों की उक्त भूमियों पर स्वामित्व के रूप में अखाड़े का नाम दर्ज करने की मांग की है। उन्होंने उदाहरण दिया कि शैव, उदासीन और निर्मल अखाड़ों के मुख्यालय उज्जैन में मौजूद होने के बावजूद सभी पर अखाड़े की संस्था का नाम दर्ज है, न कि किसी व्यक्ति विशेष का।

 ‘रामादल अखाड़ा परिषद’ केवल झूठी वाहवाही

पत्रकारों से चर्चा के दौरान महंत रविंद्र पुरी महाराज ने रामादल अखाड़ा परिषद नाम की संस्था पर भी तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह संस्था केवल झूठी वहवाही लूटने का एक माध्यम है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज और उज्जैन के सिंहस्थ मेलों के दौरान शासन-प्रशासन के साथ होने वाली बैठकों में केवल अखाड़े के राष्ट्रीय पदाधिकारी ही शामिल होते हैं; स्थानीय पदाधिकारियों का इन राष्ट्रीय बैठकों में कोई हस्तक्षेप या स्थान नहीं होता है। उन्होंने कहा कि हाल ही में हरिद्वार कुंभ मेले की बैठक में तीनों वैष्णव अखाड़ों के राष्ट्रीय पदाधिकारी, वैष्णव परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास महाराज, शामिल हुए थे।

उन्होंने स्थानीय अखाड़ा परिषद भंग होने के बाद बनी रामा दल अखाड़ा परिषद के पदाधिकारी भगवान दास द्वारा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों के विरुद्ध कही गई बातों पर कहा कि एक संत को ऐसी अनर्गल बातें बोलना शोभा नहीं देता

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