कांग्रेस ने आरटीआई अधिनियम को सशक्त बनाने की मांग की; 2019 के संशोधन निरस्त करने की अपील

सीहोर, अग्निपथ। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा 12 अक्टूबर 2005 को लाए गए ऐतिहासिक सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम की 20वीं वर्षगांठ पर, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस कानून की रक्षा और सशक्तिकरण का संकल्प दोहराते हुए वर्तमान सरकार से कई मांगे की हैं।

सीहोर जिला कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राजीव गुजराती ने बयान जारी कर कहा कि यह अधिनियम आधुनिक भारत के सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक सुधारों में से एक है, परंतु 2014 के बाद से इसे लगातार कमज़ोर किया जा रहा है, जिससे देश की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक ढांचे पर आघात हुआ है।

कांग्रेस पार्टी ने आरटीआई को सशक्त बनाने के लिए निम्नलिखित प्रमुख मांगें रखी हैं:

  1. 2019 के संशोधनों को निरस्त किया जाए और सूचना आयोगों की स्वतंत्रता बहाल की जाए। इसके तहत आयुक्तों के लिए 5 वर्ष का निश्चित कार्यकाल और सुरक्षित सेवा शर्तें सुनिश्चित की जाएँ।
  2. डीपीडीपी अधिनियम की धारा 44 (3) की समीक्षा और संशोधन किया जाए, जो आरटीआई के जनहित उद्देश्य को कमज़ोर करती है, क्योंकि यह जनहित में भी व्यक्तिगत जानकारी के प्रकटीकरण पर रोक लगाता है।
  3. केंद्र और राज्य आयोगों में सभी रिक्तियाँ पारदर्शी व समयबद्ध प्रक्रिया के माध्यम से तुरंत भरी जाएँ।
  4. आयोगों के लिए कार्य निष्पादन मानक तय किए जाएँ और निपटान दर की सार्वजनिक रिपोर्टिंग अनिवार्य की जाए।
  5. व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन अधिनियम को पूर्ण रूप से लागू कर आरटीआई उपयोगकर्ताओं और व्हिसलब्लोअर्स को सशक्त सुरक्षा प्रदान की जाए।
  6. आयोगों में विविधता सुनिश्चित की जाए, जिसमें पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और महिला प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।

कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि 2019 के संशोधन ने सूचना आयोगों की स्वायत्तता को कमज़ोर कर दिया, जबकि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम के संशोधन ने व्यक्तिगत जानकारी की परिभाषा का दायरा बहुत बढ़ा दिया, जिससे सार्वजनिक कर्तव्यों या सार्वजनिक धन के उपयोग से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा भी रोका जा सकता है।

पार्टी ने यह भी बताया कि जून 2024 तक देशभर के 29 आयोगों में लगभग 4,05,000 अपीलें और शिकायतें लंबित थीं। व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन अधिनियम का अब तक लागू न होना भी एक बड़ी चिंता का विषय है, जिससे आरटीआई कार्यकर्ता असुरक्षित हैं।

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