इलाहाबाद। कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद में एक अहम मोड़ आया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मथुरा की ईदगाह मस्जिद को अदालत के रिकॉर्ड में ‘विवादित ढांचा’ के रूप में दर्ज करने की मांग की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश पंकज नाकी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक मामले की पूरी सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक अदालत किसी स्थान को ‘विवादित’ घोषित नहीं कर सकती। अदालत का कहना था कि यह कार्य न्यायिक प्रक्रिया के अंतिम निर्णय के बाद ही संभव है।
याचिकाकर्ता ने क्या कहा?
याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास स्थित ईदगाह मस्जिद एक ‘विवादित ढांचा’ है और इसे इसी रूप में अदालत के रिकॉर्ड में दर्शाया जाना चाहिए। लेकिन अदालत ने कहा कि यह मांग वर्तमान में स्वीकार्य नहीं है क्योंकि इससे पक्षपात की आशंका उत्पन्न हो सकती है।
अदालत की टिप्पणी
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी ढांचे को ‘विवादित’ कहना एक संवेदनशील और गंभीर विषय है, जिसे अंतिम निर्णय से पहले कहना कानूनन उचित नहीं होगा। कोर्ट ने दोहराया कि न्यायालय केवल तथ्यों और सबूतों के आधार पर निर्णय लेता है, न कि भावनाओं या आस्थाओं के आधार पर।
मामला क्या है?
यह विवाद लंबे समय से चला आ रहा है, जिसमें याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जिस स्थान पर ईदगाह मस्जिद बनी है, वह मूलतः श्रीकृष्ण जन्मभूमि का हिस्सा था। इस मामले में पहले भी कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। कई हिंदू संगठन इस स्थान को श्रीकृष्ण का जन्मस्थल मानते हैं, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे ऐतिहासिक मस्जिद के रूप में देखता है।
निष्कर्ष
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला न्यायिक संतुलन का प्रतीक है। यह दिखाता है कि कोर्ट संवेदनशील मामलों में जल्दबाज़ी में कोई निर्णय नहीं लेना चाहता और वह निष्पक्षता को सर्वोपरि मानता है।