धार, अग्निपथ। मध्य प्रदेश सरकार ने नागरिकों की सुविधा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। अब बच्चों के जन्म के तुरंत बाद माता-पिता को जन्म प्रमाण पत्र के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। सरकार ने आदेश जारी किए हैं कि शिशु के जन्म के बाद माता-पिता को अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले ही बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया जाएगा। यह सुविधा सरकारी और निजी दोनों अस्पतालों में लागू होगी।
क्यों लिया गया यह फैसला?
अभी तक बच्चों के जन्म के बाद अभिभावकों को जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए नगरीय निकायों या पंचायतों के चक्कर लगाने पड़ते थे। इसमें काफी समय लगता था और लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता था। कई बार तो स्कूल में दाखिले या आधार कार्ड बनवाने के समय ही जन्म प्रमाण पत्र की याद आती थी, जिससे और भी दिक्कतें होती थीं। इस समस्या को खत्म करने और लोगों को तुरंत सुविधा देने के लिए यह नई व्यवस्था शुरू की गई है।
कैसे काम करेगी यह नई व्यवस्था?
नए नियम के तहत, अस्पताल में ही रजिस्ट्रार जन्म और मृत्यु पंजीयन की व्यवस्था रहेगी। बच्चे के जन्म के बाद सभी आवश्यक प्रक्रियाएं अस्पताल में ही पूरी की जाएंगी। जब मां को अस्पताल से छुट्टी दी जाएगी, उसी समय नवजात शिशु का जन्म प्रमाण पत्र भी अनिवार्य रूप से सौंप दिया जाएगा। इससे 21 दिन के इंतजार की बाध्यता भी खत्म हो जाएगी, जो पहले जन्म प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अनिवार्य थी। निजी अस्पतालों के लिए भी अब नगर निगम में अलग से आवेदन करने की आवश्यकता नहीं होगी।
चुनौतियां और समाधान
धार के जिला अस्पताल में रोजाना 25 से 30 डिलीवरी होती हैं, जिससे प्रमाण पत्र बनाने वाले केंद्र पर भीड़ लगी रहती है। अस्पताल सूत्रों के अनुसार, सर्वर की समस्या और स्टाफ की कमी मुख्य चुनौतियां हैं। जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए सीआरएस पोर्टल पर जानकारी अपलोड करनी होती है, और कई बार सर्वर काम नहीं करता। इस समस्या से निपटने के लिए अधिक कंप्यूटर ऑपरेटरों की आवश्यकता होगी।
इसके अलावा, कुछ माता-पिता जन्म के तुरंत बाद डिस्चार्ज होकर घर चले जाते हैं, या फिर जन्म कुंडली के आधार पर नामकरण के बाद ही प्रमाण पत्र बनवाने आते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले कुछ लोगों के पास मोबाइल या ईमेल आईडी न होने से भी दिक्कतें आती हैं।
इन सभी समस्याओं के बावजूद, सीएमएचओ धार डॉ. आरके शिंदे ने बताया कि डिलीवरी के तीन दिन के भीतर शिशु का जन्म प्रमाण पत्र बनाकर देना अनिवार्य होगा और सभी 15-16 सरकारी अस्पतालों में इन आदेशों का पालन किया जाएगा।