नलखेड़ा का प्राचीन किला दुर्दशा का शिकार

nalkhed killa jarjar

गत वर्ष ढह चुका है दीवार का एक हिस्सा, इस वर्ष भी आशंका

नलखेड़ा, अग्निपथ। शहर में स्थिति महत्व के किला साज-संभाल के अभाव में दुर्दशा का शिकार हो रहा है। किसी भी विभाग द्वारा सुध न लेने के कारण नगर की यह प्राचीन धरोहर खंड़हर के रूप में तब्दील हो रहीं हैं। इसके चलते गत वर्ष वर्षाकाल में किले की दीवार का एक हिस्सा ढह चुका है। इस वर्षाकाल में भी दीवार का कुछ हिस्सा ढहने की आशंका है।

आजादी के पूर्व नलखेड़ा नगर ग्वालियर रियासत का एक सूबा था। जहां पर रियासत की ओर से नगर में एक मजबूत व विशाल किले का निर्माण करवाया गया था। लगभग 5 बीघा क्षेत्र में निर्मित इस किले के चारों ओर ऊंची-ऊंची दीवारें और विशालकाय 6 बुरंज जिसमें बारूदी तोपे रखी जाती थी। वर्तमान में यह ऐतिहासिक धरोहर जीर्ण-शीर्ण होती जा रही है। गत वर्ष वर्षाकाल में किले की दीवार का एक हिस्सा भरभरा कर गिरने के बाद एसडीएम ने किले की मरम्मत करवाने की वादा किया था। लेकिन पूरा साल बीत गया किसी भी विभाग द्वारा किले की दीवार की मरम्मत करना तो दूर दीवार का गिरने से इकट्ठा हुआ मलबा तक किले के ऊपरी हिस्से में पड़ा हुआ है।

इस वर्ष वर्षाकाल प्रारम्भ हो चुका है। किले की दीवारों के जीर्ण शीर्ण हालात फिर से कुछ हिस्सों को ढहने की आशंका को जन्म दे रहे है। किले की दीवार का एक हिस्सा किले में ऊपर चढऩे के लिए निर्मित सीढिय़ों की ओर पूरी तरह झुक चुका है जोकि वर्षाकाल में पानी की मार से ढह सकता है इस प्रकार की आशंका है।अभी भी समय है प्रशासन किले का समुचित रखरखाव कर पुरातत्व महत्व की इस धरोहर को संजोकर रख सकता है अन्यथा किसी भी दिन यहाँ किले का नामो निशान नही मिलेगा।

कई शासकीय कार्यालय होते थे संचालित

पूर्व में इस किले के अंदर तहसील कार्यालय व तहसीदार का आवास, पीडब्लूडी का कार्यालय व उपयंत्री का निवास, बालक छात्रावास के साथ शासकीय अस्पताल लगता था। वहीं किले के अंदर नगर पालिका द्वारा जल प्रदाय हेतु एक बड़ी टंकी का निर्माण भी करवाया गया था । पूर्व में लोक निर्माण विभाग द्वारा इस किले के अंदर कार्यरत शासकीय विभागों के भवनों की मरम्मत करवाई जाती थी। परन्तु जब से नगर से इस विभाग का कार्यालय बंद हुआ तभी से इस किले की कोई देखरेख नहीं कर रहा है।

निर्माण के बाद से नहीं हुई मरम्मत

इतने सारे शासकीय विभाग इस किलें में कार्यरत रहने के बावजूद इस किले पर किसी भी विभाग का आधिपत्य न होने से उस समय भी इसकी देखरेख व मरम्मत का कार्य किसी भी विभाग के द्वारा नहीं करवाया गया। किले की दीवारों में कई स्थानों पर बड़े वृक्ष भी खड़े हो गये हैं, जो दीवारों को खोखला बना रहें हैं। वहीं पुरानी तहसील के भवन तथा तहसीलदार निवास के भवन में लगी कई सामग्री जिसमें खिडक़ी, दरवाजे, सीमेंट की चददर आदि सामान अज्ञात लोग चुराकर ले गये। जिसके कारण यह भवन भी खंड़हर में तब्दील हो गया है।

विशालकाय बुर्ज ढहने का खतरा

किले का मुख्य द्वार भी क्षतिग्रस्त होकर कई स्थानों से उसका हिस्सा ढह गया है। इस पूरे किले में चारों ओर 6 विशालकाय बुर्ज भी थे। जिसमें गोविंदपुरा वाले मार्ग पर एक बुर्ज पूर्व में ढह जाने से उसे जमींदोज कर दिया गया था। जबकि नीलकंठेश्वर मंदिर वाले मार्ग पर श्री राम मंदिर के सामने स्थित बुर्ज में काफी चौड़ी व लंबी दरारें पड़ गई। कुछ स्थानों से उक्त बुर्ज का हिस्सा भी टूट कर गिर गया है। इस बुर्ज वाले मार्ग पर नागरिकों का बड़ी तादाद में आवागमन बना रहता है। जिससे किसी हादसे की आशंका बनी रहती है।

मोतीवाले महाराज माधवराव सिंधिया ने करवाया था निर्माण

नगर के बुजुर्ग नारायण पाटीदार ने बताया कि उक्त किलें का निर्माण ग्वालियर रियासत के समय पर करवाया गया था। उस समय माधव महाराज (मोती वाले) शासक थे। जिन्होंने खांड़ेराव सा. को यहां का सूबेदार बनाया था। उस समय किले में न्यायालय, सब रजिस्टार कार्यालय के साथ अन्य विभाग व जेल भी बनी हुई थी। आजादी के बाद इस परिसर में शासकीय अस्पताल भी लगने लगा।

पाटीदार ने बताया कि सूबेदार का निवास भी किले में ही था। जिनके द्वारा समीप ही नीलकंठेश्वर महादेव का विशाल व भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया था। सूबेदार प्रतिदिन इस मंदिर पर दर्शन के लिए जाते थे।

ग्वालियर रियासत के समय ही इन्ही सूबेदार द्वारा नगर के नयापुरा में बाईसा (महारानी) के नाम पर एक मंदिर व एक बड़ी कुण्डी (पानी का कुंआ) का निर्माण भी करवाया गया था, जो आज भी मौजूद है। सूबेदार के देहान्त के बाद मां बगलामुखी मंदिर के समीप उनकी एक बड़ी छतरी भी बनाई गई थी।

प्राचीन धरोहर को सहेजने के लिए उठाए कदम

प्रदेश सरकार द्वारा पुरातत्व धरोहर एवं पर्यटन क्षेत्रों को सहेजने के लिए करोड़ो रुपये प्रतिवर्ष खर्च किये जाते हैं। वही शासन द्वारा मां बगलामुखी की इस नगरी को धार्मिक व पर्यटन नगरी घोषित कर यहाँ करोड़ों रुपये के विकास कार्य करवाये गये हैं। लेकिन नगर में पुरातत्व महत्व की इस धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए शासन व प्रशासन स्तर पर अभी तक कोई सुध नहीं लिए जाने से यह किला खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। यहां पर बडी संख्या में आसपास व दूरदराज से लोगों की आवाजाही बनी रहती है। इन स्थानों की सुरक्षा व देखरेख कर उन्हें अच्छे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किये जाने एवं पुरानी धरोहरों को सहजने के लिए सरकार व प्रशासन को तत्काल कदम उठाना चाहिए।

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