प्रकृति के प्रचंड संकेत ना समझे तो विनाश निश्चित: पद्मभूषण अनिल प्रकाश जोशी

अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला का समापन

उज्जैन, अग्निपथ। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मभूषण अनिल प्रकाश जोशी ने चेतावनी दी है कि प्रकृति जिस प्रचंड वेग से बदली है, मनुष्य ने उसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने कहा कि आज की असहनीय गर्मी केवल चेतावनी नहीं, बल्कि दंड के रूप में सामने खड़ी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि “यह प्रकृति का दंड है, जिसे हम सब भोगने को विवश हैं। प्रकृति के इन प्रचंड संकेतों को ना समझे तो विनाश की ओर बढऩा तय है।”

प्रकृति के गंभीर संकट पर ये विचार, कर्मयोगी स्व. कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ की प्रेरणा और पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की स्मृति में आयोजित 23वीं अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला के समापन दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में डिजिटली प्रस्तुत किए गए।

⚠️ आप नहीं बदलेंगे तो प्रकृति आपको बदल देगी

‘आप नहीं बदलेंगे तो प्रकृति आपको बदल देगी’ विषय पर बोलते हुए अनिल प्रकाश जोशी ने जोर देकर कहा कि हमने प्रकृति को नहीं, बल्कि अपनी इच्छाओं और सुविधाओं को संरक्षित किया है। उन्होंने कहा कि मनुष्य ने अपने स्वार्थ के जीवों, जैसे कुत्तों को तो पनपने दिया, लेकिन प्रकृति के संतुलन के लिए अनिवार्य भेड़ियों और चिंपांज़ियों जैसे जीवों के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया।

  • सिर्फ उपभोग किया, लौटाया कुछ नहीं: जोशी ने कहा, “हमने पृथ्वी से सिर्फ लिया—अथाह, अनवरत, बिना सोचे। जबकि पृथ्वी को चाहिए ऐसे जीव जो लेने के साथ उसे कुछ लौटाएँ भी। मनुष्य ने हमेशा उपभोग किया—पर लौटाया कुछ नहीं; बल्कि विनाश ही बढ़ाया।”

  • संकट के केंद्र में मनुष्य की अतिशय सुविधाएँ: उन्होंने स्पष्ट किया कि ग्लोबल वार्मिंग हो या क्लाइमेट चेंज, हर संकट के केंद्र में मनुष्य की अतिशय सुविधाएँ ही हैं

  • प्रकृति पर नियंत्रण का भ्रम टूटा: जोशी ने आगाह किया कि जंगलों, नदियों और असंख्य प्राणियों का विनाश कर मनुष्य आज स्वयं को समाप्त करने के मार्ग पर बढ़ चला है। उन्होंने कहा, “हम स्वयं को तो नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन प्रकृति पर नियंत्रण का जो भ्रम हमने पाल रखा है, वह अब टूटने लगा है।”

अनिल प्रकाश जोशी ने अंत में दृढ़ता से कहा, “पृथ्वी के इतिहास में दो बार संपूर्ण विनाश हुआ है। हर बार प्रकृति ने स्वयं को पुनर्गठित किया है। अब भी समय है—यदि हम स्वयं को बदलें, तभी प्रकृति हमें बचाने का निर्णय लेगी। वरना—आप नहीं बदलेंगे, तो प्रकृति आपको बदल देगी।

कलाएँ हमें जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देती हैं: पद्मजयराम

समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध कुचिपुड़ी नृत्याचार्य पद्मजयराम जी ने प्रकृति और संस्कृति के समन्वय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा, “जब प्रकृति हमें अपने संतुलन की ओर लौटने का संदेश दे रही है, उसी समय हमारी संस्कृति और कलाएँ भी हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देती हैं।”

  • कलाएँ जीवन-दृष्टि हैं: उन्होंने बताया कि भारत की नृत्य कला, शिल्पकला अत्यंत विविध और समृद्ध है, जिसका मूल वेदों से जुड़ा है। उन्होंने जोर दिया, “हमारे देश में गुरु-शिष्य परंपरा और परिवार परंपरा अद्भुत रूप से संपन्न हैं। यही कारण है कि भारत की कलाएँ केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन-दृष्टि हैं—परंपरा हैं—और हमारी सांस्कृतिक पहचान का आधार हैं।”

  • प्रकृति, संस्कृति और मानव गहरे जुड़े: पद्मजयराम जी ने कहा कि हमारे राग-रागिनियों में ऋतुओं का भाव, नृत्य में ब्रह्मांड की गतियाँ और शिल्पकला में मानव की आध्यात्मिक यात्रा दिखाई देती है। “हमारी कलाएँ बताती हैं कि प्रकृति, संस्कृति और मानव—ये तीनों एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं,” उन्होंने कहा।

कार्यक्रम का संयोजन

कार्यक्रम का आरंभ संस्थान की शिक्षिकाओं द्वारा सद्भावना एवं देशभक्ति गीत से हुआ। दीप प्रज्वलन माधव विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. हरीश व्यास, एडवोकेट मुकेश ठाकुर, पूर्व सभापति नगर निगम सोनू गहलोत, श्रीमती हर्षा वाघे, और श्रीमती अमृता कुलश्रेष्ठ द्वारा किया गया।

अतिथि स्वागत संस्था प्रमुख युधिष्ठिर कुलश्रेष्ठ, रिचा विचार मंच के महेश ज्ञानी, और शशि भूषण ने किया। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती श्रेया शुक्ला ने किया। इस अवसर पर अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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