शहर के एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर में पिछले दिनों अन्नकूट का आयोजन किया गया। यह वह मंदिर है जहां किसी का कितना भी अमंगल हो रहा हो यहां आने से उसका सब मंगल ही मंगल हो जाता है। अन्नकूट की अधिकांश व्यवस्थाएं ‘‘बाबा’’ के हाथों में थी। यह पहला अवसर था कि ‘‘बाबा’’ एक दल विशेष के लोगों को साधते हुए नजर आये। वहीं यह पहला अवसर इस विषय से भी था कि एक राजनीतिक दल के लोगों को कोई तवज्जो नहीं दी गयी। ‘‘बाबा’’ ने जब से दल बदला है तब से उनकी आस्था भी बदल गयी है। पिछले दिनों वह विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। अब आने वाला समय नगर निगम चुनाव का है। इस बार उनके वार्ड से वह अपने पुत्र को चुनाव लड़वाना चाहते हैं। यही कारण है कि वह सभी से संबंध मधुर करने में लगे हुए हैं। अब देखना यह होगा कि राजनीतिक रूप से ‘‘बाबा’’ के पुत्र का मंगल का समय कब शुरू होता है। हालांकि अभी तो ‘‘बाबा’’ के आका को भी सिर्फ आश्वासन का झुनझुना दिया गया है। ‘‘बाबा’’ के आका को केंद्र में मंत्री बनाने की चर्चा जोरों पर थी किन्तु अभी तक वह नहीं हुआ है। अन्नकूट में राजनीति की चर्चा इन दिनों राजनैतिक गलियारों में जोरों पर है।