उज्जैन। विकास प्राधिकरण में भ्रष्टाचार की जड़े कितनी गहरी है। इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि प्रशासक और कमिश्नर के आदेश और छह इंजीनियर समेत 8 कर्मचारियों के वेतन रोकने के बाद भी गंगा विहार की फाइल अब तक नहीं मिल पाई है। इसके साथ ही सभी के वेतन पर रोक लगी हुई है।
करोड़ों रुपए की गंगा विहार कालोनी में कर्मचारियों की मिली भगत से लोगों को प्लाट देने के स्थान पर सोसायटियों को प्लाट दे दिए गए। किस सोसायटी को कितने में प्लाट दिया गया और उसकी रजिस्ट्री हुई या नहीं इसका रिकॉर्ड भी प्राधिकरण में नहीं रखा गया। प्राधिकरण को इससे कितने राजस्व का नुकसान हुआ है या लाभ इसकी जानकारी भी नहीं है। हालात यह हैं कि इस फाइल को 12 से ज्यादा कर्मचारियों ने देखा है। परन्तु हर कर्मचारी इस फाइल का दबाकर रखता था। चार्ज बदलने पर दूसरे कर्मचारी को फाइल दे देता था।
सोसायटियों ने करोडों का किया खेल
गंगा विहार योजना को इंजीनियरों ने भू माफिया के इशारों पर सोसायटियों को बेच दिया। अंबेश गृह निर्माण सोसायटी को सबसे ज्यादा जमीन दी गई। परन्तु इस सोसायटी ने कोई भी दस्तावेज यूडीए में नहीं जमा कराए। वहीं दावा किया जा रहा है कि राधा कृष्णन सोसायटी, प्रियदर्शनी सोसायटी, महालक्ष्मी गृह निर्माण सोसायटी के नाम से भी प्लाट दिए गए हैं। कुछ प्लाट व्यक्तिगत लोगों को भी दिए गए हैं। कुल 84 प्लाट दिए जाने की जानकारी का जिक्र फाइलों में हैं। परन्तु इनसे संबंधित दस्तावेज गायब बताए जा रहे हैं।
यूडीए प्रशासक ने 9 कर्मचारियों की कमेटी बनाई थी
गंगा विहार की फाइल खोजने के लिए यूडीए प्रशासक के निर्देश पर सीईओ ने 9 लोगों की कमेटी बनाई थी। इसमें इंजीनियर और संपदा अधिकारी जयदीप शर्मा, सहायक यंत्री एसके साध, व्ही के रक्तताले, महेशचंद्र गुप्ता, उपयंत्री सुनील नागर, आरके त्रिपाठी, विवेक भावसार और विकास नागर को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। सभी ने फाइल नहीं होने की बात कहकर मामले पर ध्यान नहीं दिया। जब प्रशासक और सीईओ ने मामले में फिर से पूछताछ की तो सभी बगले झांकने लगे। नाराज होकर सीईओ ने सभी का वेतन रोकने के निर्देश दे दिए। वेतन अभी तक नहीं मिल पाया है। जबकि अरुण सिंह का निधन हो चुका है। वहीं ज्यादातर कर्मचारियों ने मामले में कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया है।
चार शाखाओं के प्रभारी एक दूसरे पर डाल रहे जिम्मेदारी
गंगा विहार सोसायटी के मामले में यूडीए की चार शाखाओं प्लानिंग, संपदा, तकनीकि और भू अर्जन शाखा की जिम्मेदारी सामने आई है। परन्तु मजेदार बात यह है कि किसी के पास भी ज्यादा जानकारी नहीं है। सभी एक दूसरे से फाइल की जानकारी मांग रहे हैं। इनमें जिनका वेतन रोका गया है वे वर्तमान में इन चारों शाखाओं में काम कर रहे हैं। इनमें से कुछ को तो इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। असली कर्मचारी जिसने फाइलें भू माफिया के इशारे पर गायब की है वह बचा हुआ है।
ऐसे खुला घोटाले का मामला
गंगा विहार देवास रोड पर मारुति शो रूम के सामने बनाई गई है। यहां से 75 मीटर का एक टुकड़े पर विकास प्राधिकरण ने दुकान काटने की योजना बनाई थी। योजना बनकर तैयार हो गई। अप्रूवल के लिए प्रशासक यादव पास गई। उन्होंने कालोनी के दस्तावेज मंगवाए तो कर्मचारियों ने बताया कि कोई भी दस्तावेज इस कालोनी से जुड़े यूडीए के पास नहीं है। यह जबाव सुनकर प्रशासक संदीप यादव भौंचक रह गए। उन्होंने यूडीए सीईओ को कमेटी बनाकर दस्तावेज खंगालने के निर्देश दिए।
पूरे घोटाले के पीछे रसूखदार
बताया जाता है कि इस पूरे घोटाले के पीछे शहर के कुछ रसूखदार लोग हैं। इनके नाम सोसायटी से सीधे तो नहीं जुड़े हैं परन्तु सोसायटी इनके इशारों पर चलती है। इसीलिए इनके पदाधिकारी ऐसे लोगो हैं जो इनके इशारों पर काम करते हैं। मामले में उच्च स्तरीय जांच के लिए कमेटी को भी लिखा गया है।
कमेटी काम कर रही है सभी कर्मचारियों की सैलरी नहीं दी गई है।
– सोजानसिंह रावत,सीईओ यूडीए उज्जैन।वेतन रोकने के नोटिस देने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
-कार्यपालन यंत्री, विनोद सिंघई, यूडीए उज्जैन।