पचास फीसदी सैलरी पर कर रहे हैं काम, आंदोलन भी नहीं कर पा रहे
उज्जैन। प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक पचास फीसदी सैलरी पर कर रहे हैं काम। कोरोना संकट के दौर में शिक्षकों को घर बैठा दिया गया है। शहर के अधिकांश स्कूलों में आधा से ज्यादा स्कूलों में शिक्षकों के काम कुछ काम नहीं बचा है। अगर यही हालात बने रहे तो उनके सामने नया संकट खड़ा हो जाएगा। वहीं स्कूल संचालक भी स्कूल नहीं खुलने से फीस नहीं मिलने से परेशान चल रहे हैं। रविवार को उन्होंने 9 सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन दिया है।
बताया जाता है कि अधिकांश स्कूलों ने अपने यहां काम करने वाले शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया है। गिने-चुने शिक्षकों को ही स्कूलों में रखा गया है। इससे हर स्कूल से 10 से 30 शिक्षकों की छुट्टी किए जाने से शिक्षकों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। कई शिक्षकों के पास दूसरा काम नहीं होने से वे बेहद तनाव के दौर से गुजर रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे किसी से शिकायत भी नहीं कर पा रहे हैं।
बताया जाता है कि शिकायत करने वाले शिक्षकों को स्कूल में दूसरी बार नौकरी नहीं मिलती है। एक -दो शिक्षकों ने जब आवाज उठाई थी, उन्हें स्कूल संचालकों ने यह निर्णय बता दिया था। इसलिए अब वे कुछ कह नहीं पा रहे हैं। स्कूल संचालकों की परेशानी है कि फीस नहीं आने पर वे सेलरी नहीं दे पा रहे हैं।
स्कूलों ने पुरानी फीस वसूलना शुरू किया
बताया जाता है कि स्कूलों ने कक्षा 9 के स्टूडेंटों से फीस वसूलना शुरू कर दिया है। फीस दो साल की वसूली जा रही है। इसको लेकर अभिभावकों ने आक्रोश छाया हुआ है। उनका कहना कि 10वीं मेंं रजिस्ट्रेशन के नाम पर स्कूलों ने पिछले साल की बकाया फीस वसूलने के लिए तरह-तरह के हथकंड़े अपनाना शुरू कर दिया है।
अगर स्कूल प्रशासन अब नहीं माना तो आंदोलन किया जाएगा। कोरोना संकट की वजह से उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था, वे स्कूलों की फीस नहीं दे पाए थे। अब नए सत्र की फीस दे रहे हैं। परन्तु स्कूल संचालक पुरानी फीस मांग रहे हैं, जबकि स्कूल नहीं लगे,शिक्षकों को उन्होंने आधी सैलरी दी, स्टाफ का खर्च भी बच गया था, फिर भी वे फीस वसूलने के लिए दबाव बना रहे हैं।
अब भी बच्चे नहीं आ रहे स्कूल में
बताया जाता है कि पिछले दो साल से स्कूलों में बच्चे नहीं आ रहे हैं। मिडल क्लास तक के हालात खराब हैं। स्कूल संचालकों को दो साल से फीस नहीं मिल पाई है और सरकार की तरफ से मान्यता समेत अन्य शुल्क वसूले जा रहे हैं। शिक्षकों को आधा वेतन देने से उन पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है, इसके चलते सभी चुप हैं।
किराए के स्कूलों की हालत खराब
शहर के अनेक स्कूल किराए के भवनों में चल रहे हैं। इसलिए इन स्कूलों के भवन का किराया पिछले दो साल से स्कूल संचालक भर रहे हैं। कुछ ने स्कूल खाली कर दिया है। अब उनके सामने नए सत्र में स्कूल फिर से शुरू करने के लिए जगह नहीं होने से परेशानी आएगी।
स्कूस संचालकों को आरटीई का पैसा भी नहीं मिला
बताया जाता है कि स्कूलों में सरकार गरीब तबकों के बच्चों को एडमिशन आरटीई के जरिए देती है। इनकी फीस का स्कूलों का करोड़ों रुपए बकाया है। स्कूल संचालक सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि वह उनका पैसा दे दे। सरकार खजाना खाली होने की बात कहकर पल्ला झाड़ रही है। इससे स्कूल संचालक आरपार की लड़ाई के लिए तैयारी कर रहे हैं।