कोरोना से बचने-बचाने के दौर के बीच कई देशों में तीसरी लहर आ चुकी है और हम हैं कि सबकुछ भुलाकर बेखबर होकर जश्न मनाने में जुटे हैं। याद कीजिए अप्रैल, मई महीने का वह दौर जब सुबह अखबार हाथों में लेते ही हर पन्ने पर लाशों की तस्वीर का दीदार होता था।
पहली लहर में तो सिर्फ बीमार हुए थे, लेकिन दूसरी लहर ने तो लाशों की लाइन लगा दी थी। अस्पताल में जगह नहीं, इलाज के लिए जरूरी दवाइयां-आक्सीजन नहीं, तड़प-तड़प कर मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए श्मशान में भी जगह नहीं। शवों को कतार में रखा गया और लंबे इंतजार के बाद अंतिम संस्कार हुआ। मौतों का ऐसा सिलसिला चला कि सरकारी आंकड़ा भी असल मौतों से बहुत पीछे रह गया। उस दौर में हमने कई अपनो को खोया है।
लेकिन हमारी याददाश्त कितनी कमजोर है। सिर्फ दो महीने में ही वो मंजर भूल गए। अनलॉक होते ही बिंदास चारों ओर घूम रहे हैं। कोविड गाइड लाइन के बिना जश्न मना रहे हैं, पर्यटन क्षेत्रों में तफरीह की दीवानगी देखिये कि फर्जी निगेटिव रिपोर्ट ले जाकर भीड़ बढ़ा रहे हैं।
यह हालात खुद को धोखा देने की तरह ही हैं। डब्ल्यूएचओ ने घोषणा कर दी है कि तीसरी लहर का आगमन हो चुका है। संभल सकते हो तो संभल जाइए, बच्चों की खातिर आदत बदलिए, क्योंकि बच्चों की वैक्सीन नहीं आई है।