सावन की पहली सवारी के ही दिन महाकाल का आँगन फिर से कलंकित होने से बच गया, आज महाकाल मंदिर में बेकाबू श्रद्धालुओं के जो वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुए हैं वह रौंगटे खड़े कर देने वाले हैं। जिला प्रशासन द्वारा की गयी व्यवस्थाएँ बौनी साबित हुयी।
वह तो शायद अधिकारियों के पुण्य काम आ गये जो 15 जुलाई 1996 सोमवती अमावस्या की सुबह की तरह हादसा नहीं हुआ। वह काली सुबह जिस दिन आज ही की तरह महाकाल के दर्शन को आतुर धर्मालुओं की अनियंत्रित भीड़ बेकाबू होकर एक-दूसरे को रौंदती हुई आगे बढ़ी। जिसमें 38 निरीह लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था और बाबा का आँगन रक्तरंजित हो गया था। उसकी पुनरावृत्ति होने से बच गयी।
कोरोना के कारण लगे लाकडाउन से आजाद होकर पूरे देश में घूमने-फिरने के लिए लोग अब घरों से निकल पड़े हैं। जिसका असर उज्जैन में भी देखने को मिला। प्रशासन को जहाँ 5 हजार धर्मालुओं के उज्जैन पहुँचने की उम्मीद थी उससे दस गुना से भी अधिक लोग दर्शनाथी उज्जैन पहुँच गये। आज गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र की गाडिय़ों से शहर भरा रहा। पुलिस प्रशासन भी बाहर से आने वाले लोगों की माकूल व्यवस्था करने में पूरी तरह सफल नहीं रहा।
बाहर से आने वाले लोगों के वाहनों को हरिफाटक पुल से आगे जाने नहीं दिया, बेरिकेडस लगाकर रास्ता बंद कर दिया गया पर उन्हें यह मार्गदर्शन देने वाला कोई नहीं था कि आखिर उन्हें जाना कहाँ से है, ना ही कोई मार्गदर्शिका वाला बोर्ड, ना ही लाउडस्पीकर पर संदेश। धक्के खाते हुए जब जंतर-मंतर के सामने चारधाम जाने वाले मार्ग पर पहुँचे तो वहाँ भी हरिफाटक पुल की ही तरह का आलम, बेरिकेडस लगाकर रास्ता बंद। आ
गे लालपुल के नीचे से भी नृसिंह घाट जाने वाले मार्ग को बंद कर दिया गया। परेशान और धक्के खाता हुआ न जाने किस मार्ग से महाकाल मंदिर पहुँचा होगा ईश्वर ही जाने।
हमारे नये पुलिस कप्तान सत्येन्द्र कुमार शुक्ल जी का सावन सोमवार की व्यवस्थाओं का अनुभव ना होना भी त्रासदायक रहा। कप्तान ने 1500 पुलिसकर्मियों और 4 कंपनियों की ड्यूटी तो लगा दी पर शायद उन्हें यह टे्रनिंग नहीं दी गयी कि बाहर से आने वाले धर्मालुओं की मदद कैसे करना है? यातायात व्यवस्था की समुचित कार्य योजना न बना पाना भी एक बड़ा कारण रहा।
जिले के मुखिया श्री आशीष सिंह जी भी सोमवार को महाकाल दर्शनों का समय जो प्रात: 6 से 11 व 7 से 9 निर्धारित करने में गच्चा खा गये। शायद उन्हें भी यह पूर्वानुमान नहीं था इतने अधिक लोग आ सकते हैं। आज हुई भगदड़ के लिये चल रहे निर्माण कार्य भी एक बहुत कारण रहे हैं। खुदायी एवं अन्य चल रहे कार्यों के कारण प्रवेश के लिये मात्र 4 नंबर गेट ही है जिसके कारण बहुत ज्यादा दबाव हो गया। इस एकमात्र गेट से ही 250 की रसीद एवं ऑनलाईन बुकिंग वाले धर्मालु प्रवेश करते हैं, आज की भगदड़ प्रोटोकाल अर्थात विशिष्टि व्यक्तियों के लिये जिस प्रवेश द्वार की व्यवस्था की गयी थी। कतार में लगे इंतजार कर रहे श्रद्धालुओं के सब्र का पैमाना जब छलक गया तो उन्होंने बेरिकेडस गिराकर सारे सुरक्षा इंतजामों को धता बताते हुए घुसने का प्रयास किया।
इस आपाधापी की धर्मालु महिलाएँ भी शिकार हुयी और साथ ही बच्चे भी। मंदिर की व्यवस्थाओं से जुड़े प्रशासनिक अधिकारियों को चाहिये कि आज की इस घटना से सबक लेकर आने वाले सावन की अन्य सवारियों के साथ ही भादौ के दो सोमवारों को भी पूर्व की तरह ही दर्शन की व्यवस्था को बनाये रखकर योजना बनायें, इससे दबाव कम होगा साथ ही दर्शनार्थियों के प्रवेश हेतु एक और वैकल्पिक द्वार की भी व्यवस्था की जाए।
पुलिस प्रशासन को चाहिये बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों को किसी तरह की असुविधा ना हो इसलिये या तो मंदिर पहुँच मार्ग के लिये जगह-जगह बोर्ड लगवाये। आज की अव्यवस्था के पीछे अति विशिष्ट व्यक्तियों की शहर में मौजूदगी भी रही, जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन वी.आई.पी. व्यवस्था में भी लगा होने के कारण मंदिर व्यवस्थाओं पर शायद समुचित ध्यान नहीं दे पाया। अति विशिष्ट व्यक्तियों को सावन के सोमवारों पर आने से बचना चाहिये। आज की भगदड़ ने कोई विकराल रूप नहीं लिया इसलिये भूतभावन को बारम्बार प्रणाम।