ननि आयुक्त ने सामान्य प्रशासन के पूर्व बाबू को जारी किया नोटिस
उज्जैन, अग्निपथ। नगर निगम में प्रभारी कार्यपालन यंत्री अरुण जैन से 30 साल पुराने एक प्रकरण में डेढ़ लाख रूपए की रिकवरी होना है। पिछले 13 साल से रिकवरी का आदेश नगर निगम की फाइलों में ही दफन रहा। अब एक शिकायत के बाद अरुण जैन के रिटायरमेंट से कुछ ही दिन पहले यह मामला फिर सुर्खियों में आ गया है।
सामान्य प्रशासन शाखा के जिस बाबू ने लंबे वक्त तक रिकवरी की फाइल दबाकर रखी उसे भी नगर निगम आयुक्त ने निशाने पर ले लिया है। इस बाबू को शोकॉज नोटिस जारी कर जवाब तलब किया गया है। नगर निगम के सहायक यंत्री अरुण जैन(प्रभारी कार्यपालन यंत्री) 31 अगस्त को रिटायर होने वाले है। उनके रिटायरमेंट से कुछ ही दिन पहले उनका एक पुराना मामला निकल आया है।
कांग्रेस नेता सुदर्शन गोयल ने संभागायुक्त को अरूण जैन और सामान्य प्रशासन विभाग में पदस्थ योगेश सक्सेना के खिलाफ शिकायत की। इस शिकायत में आरोप लगाया गया है कि अरूण जैन से उनके रिटायरमेंट से पहले 1 लाख 56 हजार 974 रूपयों की वसूली होना है लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग में पदस्थ रहे बाबू योगेश सक्सेना ने 13 साल से इस मामले की फाइल ही दबा रखी थी।
संभागायुक्त कार्यालय से जैसे ही यह शिकायत नगर निगम आयुक्त तक पहुंची ताबड़तोड़ पुराने मामले खंगाले गए। योगेश सक्सेना को कुछ दिन पहले ही आयुक्त क्षितिज सिंघल सामान्य प्रशासन शाखा से हटाकर जोन में पदस्थ कर चुके है। अरुण जैन और योगेश सक्सेना के खिलाफ शुरुआती जांच में शिकायत सही पाई गई। अब आयुक्त क्षितिज सिंघल ने बाबू योगेश सक्सेना को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। सक्सेना से पूछा गया है कि उन्होंने समय रहते अरुण जैन से रिकवरी वाली फाइल को प्रस्तुत क्यों नहीं किया।
इसलिए होना है डेढ़ लाख की वसूली
साल 1991-92 में आजाद गृह निर्माण संस्था द्वारा बसाए गए गोवर्धन नगर में मोहनदास मूलचंदानी के मकान के अतिरिक्त निर्माण की अरुण जैन द्वारा गलत गणना की गई थी। इस प्रकरण में हुई जांच में नगर निगम को 1 लाख 56 हजार 974 रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ था। 15 जनवरी 2007 और 27 जनवरी 2012 में महापौर परिषद ने इस रकम को अरुण जैन से वसूले जाने का आदेश पारित किया।
शासन को मामले की अपील की गई, शासन ने भी 24 सितंबर 2008 को एमआईसी के फैसले को सही माना। 2008 में प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन के पास की गई अपील खारिज होने के बाद अरुण जैन से रूपयों की वसूली होना थी लेकिन 13 साल तक प्रमुख सचिव का यह आदेश और रिकवरी की फाइल सामान्य प्रशासन शाखा में ही दबी पड़ी रही।