शहर में वर्तमान में काफी अव्यवस्था फैली हुई है। टाटा कंपनी के कार्यों को देखकर साफ दिखाई देता है कि यहां पर सडक़ों पर गड्ढे इतने हैं कि राहगीरों सहित वाहन चालकों का चलना दूभर हो गया है। इसके बाद रात्रि में धूल के गुबार से वाहन चालकों को दुर्घटना का भय रहता है। इन सब के बाद अगर वाहन चालक इन गड्ढों और धूल के गुबार से सुरक्षित बाहर आ गया तो आवारा मवेशियों से भी उसे जूझना पड़ता है। क्योंकि नगर निगम की आवारा मवेशी पकड़ो मुहिम तो सिर्फ कागजों पर ही धरी रह गयी है। आवारा मवेशियों का जमघट तो दीपावली से ही पुन: सडक़ों पर लगने लगा था। नगर निगम की गैंग को इन आवारा मवेशियों से कोई मतलब नहीं रह गया है और ना ही उन्हें शहरवासियों की चिंता है। इसके बाद रात्रि में श्वानों का झुण्ड गली-मोहल्लों पर राहगीरों सहित वाहन चालकों पर हमला बोल देता है और घायल कर छोड़ता है। वहीं जिला अस्पताल में कुत्तों के काटने पर घायलों को अगर ले जाया जाये तो वहां पर उसके साथ पहले तो कोरोना के मरीज की तरह व्यवहार किया जाता है और फिर इंजेक्शन और पर्याप्त उपचार के अभाव में उसे निजी अस्पताल में रैफर कर दिया जाता है। इन सब से ऐसा लगता है शहर में व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है।