हे परवरदिगार! तू ही बता क्या अफगानिस्तान से भी बुरा है जहन्नुम

Afgaan rfuge

 

बीते दस दिनों से समाचार पत्र और टी.वी. अफगानिस्तान के समाचारों से ही सराबोर हैं। वहाँ की दिल दहला देने वाली घटनाओं के चित्रण और दिखाने के लिये संचार माध्यमों में होड़ सी मची हुई है। कहीं कोई अफगानी महिला अपनी दिल के टुकड़े दूध पीते बच्चे को उछालकर अमेरिकी सैनिकों के हवाले कर रही है ताकि वह सलामत रहे, कहीं भूख-प्यास से बिलखते बच्चे, कहीं हवाई जहाज पर सवार होने के लिये रनवे पर दौड़ रहे इंसान तो कहीं आसमान से गिरते लोग।

तालिबान लड़ाकों के जुल्म ओ सितम की हैरत अंगेज घटनाएं भी पढऩे और देखने को मिल रही है। अफगानिस्तान पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है शायद मेरे लिखने के लिये शेष बचा ही नहीं था पर मेरी कलम और अंर्तात्मा भी बगावत पर उतर आयी और मुझे मजबूर होकर कलम उठानी ही पड़ी। मन में विचार आया कि अफगानिस्तान को किन कर्मों की सजा मिल रही है? अत्याचारी तालिबान लड़ाके भी मुसलमान और जो बेगुनाह उनकी जुल्म ज्यादती का शिकार हो रहे हैं वह भी मुसलमान।

शायद 570 ईसवी में मक्का में जन्म लेने वाले इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद जिन्हें 610 ईसवी में मक्का के पास हीरा नाम की गुफा में ज्ञान की प्राप्ति हुयी थी उनकी रूह भी अफगानिस्तान की हालत पर रो रही होगी। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े इस्लाम धर्म की आबादी 170 करोड़ है जो संसार की कुल 725 करोड़ आबादी का 23 प्रतिशत के लगभग है। इस्लाम के संस्थापक हजरत मुहम्मद जी का विवाह 25 वर्ष की उम्र में खदीजा नाम की विधवा से हुआ था। मुहम्मद साहब की बेटी का नाम फातिमा और दामाद का अली हुसैन था। मुहम्मद साहब की मृत्यु 8 जून 632 ईसवी को हुयी और उन्हें मदीना में ही दफनाया गया था।

मुहम्मद साहब ने इस्लाम के माध्यम से पूरी दुनिया को प्रेम, प्यार और शांति का पाठ पढ़ाया उन्होंने संसार को बताया कि सृष्टि के एकमात्र देवता अल्लाह (ईश्वर) हैं जो सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, करूणा का सागर है। दुनिया के सभी मनुष्य उसकी संतान है और सभी मुसलमान सगे भाई-बहिन हैं। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने इस्लाम में मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद को कोई स्थान नहीं दिया है और मानव मात्र की समानता में विश्वास व्यक्त किया। इस्लाम धर्म क्षमाशीलता, ईमानदारी, दूसरों की भलाई के लिये कार्य करने, निर्धनों की सहायता, प्रतिशोध न लेना, धर्म, पाप तथा पुण्य में विश्वास की शिक्षा देता है। हिंदुओं की ही तरह अच्छे और बुरे कर्मों का परिणाम स्वर्ग-नरक और इस्लाम में जन्नत और जहन्नुम की मान्यता है।

हिंदु और इस्लाम धर्म में केवल एक ही अंतर है वह है कि हिंदु धर्म में पुनर्जन्म की धारणा है जबकि इस्लाम में पुनर्जन्म को मान्यता नहीं है। इस्लाम का अर्थ ही अल्लाह को अपने आप को समर्पित करना होता है। इस्लाम के सिद्धांतों का पालन करने वाला ही सच्चा मुसलमान है। फिर अफगानिस्तान में वह कौनसी शैतानी ताकतें हैं जो हिंसा के बल पर सत्ता पर काबिज हो गयी जिन्होंने अपने ही निर्दोष भाई-बहिनों के खून से होली खेलकर कुर्सी हथियायी, सारी दुनिया जहाँ महिलाओं को समानता का अधिकार दे रही है वहीं यह शैतान महिलाओं के बाहर निकलने पर पाबंदी लगा रहे हैं। यह कैसे मुसलमान हो सकते हैं?

जिस अल्लाह को असीम करूणा का सागर बताया गया है यह शैतान हर्गिज उसके सच्चे अनुयायी नहीं हो सकते। दुनिया के किसी भी धर्म में अबोध बच्चों पर जुल्म ज्यादती के लिये कोई जगह नहीं है परंतु अफगानिस्तान में हैवानियत के नंगे नाच के दौरान भूख-प्यास से बिलखते बच्चे भगदड़ में शिकार हुए महिलाओं और बच्चों की तस्वीरें समाचार पत्रों और दूरदर्शन पर देखी जा सकती है।

इस्लाम धर्म की मान्यतानुसार अल्लाह ने धरती पर मनुष्यों के मार्गदर्शन के लिये अच्छे इंसानों को अपना दूत बनाकर भेजा है जिन्हें नबी (दूत) कहा जाता है। दुनिया में लगभग 1 लाख 24 हजार नबी भेजे गये थे जो मनुष्य जाति के होकर ईश्वर के सीधे सम्पर्क में रहते हैं।

अफगानिस्तान में मानवता कराह रही है, इंसानियत लहुलुहान है, काबुल की सडक़ें और हवाई अड्डे खून से सन गये हैं जो लोग वहाँ रह रहे हैं शायद जहन्नुम का अनुभव कर रहे होंगे। अब सर्वशक्तिमान अल्लाह (ईश्वर) से ही उम्मीद बची है कि वह अपने नबियों के माध्यम से चमत्कार दिखा दे ताकि अफगानिस्तान में मानवता फिर से जिंदा हो सके।

– अर्जुनसिंह चंदेल

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