शहर में आवारा मवेशियों का विचरण रुकने का नाम नहीं ले रहा है। आवारा मवेशियों के विचरण को लेकर तो कोई भी संस्था आवाज नहीं उठाती है। लेकिन जब इन मवेशियों के घायल होने पर या अन्य घटना होने पर अनेक सामाजिक संस्थाओं के कर्ताधर्ता आकर ऐसा प्रदर्शन करते हैं जैसे आवारा मवेशी नहीं बल्कि पालतू हो। जैसे जिन्हें कोई घर के अंदर आकर घायल कर गया हो।
ऐसे प्रदर्शन करने वालों को जरा शहर की तरफ भी देखना चाहिए कि इन आवारा मवेशियों के कारण कितनी तकलीफ आने जाने वाले और वाहन चालकों को होती है। वहीं चौराहों पर फैल रही गंदगी जो कि इन आवारा मवेशियों द्वारा की जाती है। इसे लेकर कभी किसी प्रकार का आंदोलन नहीं होता है।
यही नहीं अगर किसी गाय या सुअर से किसी राहगीर को कोई चोट आदि आती है या वह घायल होकर अस्पताल में भर्ती होता है तो भी कोई संस्था अपना प्रदर्शन नहीं करती है और ना ही पशु मालिक के खिलाफ किसी प्रकार की कोई शिकायत की जाती है। ऐसा ही एक मामला बीते दिनों एक गाय की करंट से मौत को लेकर हुआ जिसमें विद्युत मंडल के प्रति आक्रोश व्यक्त किया गया।
यह तो ठीक है कि विद्युत मंडल की लापरवाही थी, जिससे आक्रोश भी होना भी सही था। लेकिन पशुओं को ऐसे खुले में छोडऩा कहां तक उचित है। इसमें दोषी कौन है।