विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए स्थानीय प्रशासन और मंदिर समिति आये दिन सुधारवादी कदम उठाती है। कई निर्णय तो ठीक होते हैं, लेकिन कुछ उचित नहीं है। जैसे हाल ही में मंदिर समिति ने निर्णय लिया है कि ऑनलाइन भस्मारती बुकिंग करवाने पर प्रति दर्शनार्थी 200 रुपए चार्ज लिया जाये। इसी तरह प्रोटोकाल से दर्शन के लिए आने वालों को प्रति व्यक्ति 100 रुपए की रसीद कटाना होगी। यह दोनों निर्णय उचित नहीं कहे जा सकते। इन निर्णयों को देखकर ऐसा लगता है कि जिम्मेदारों की मानसिकता श्री महाकालेश्वर मंदिर को व्यवासायिक केंद्र के रूप में विकसित करने की है। लॉकडाउन के बाद दर्शन खोले तो उस वक्त भी शीघ्र दर्शन की रसीद का बोझ डाला गया। ऐसे निर्णयों से ऐसा लगता है मानो भक्त और भगवान के बीच एक आर्थिक दीवार खड़ी की जा रही है। ऐसे तो बाबा महाकाल के दरबार में चढ़ौत्री ही इतनी आती है कि किसी दर्शन के लिए शुल्क की आवश्यकता ही नहीं है। आये दिन इन रुपयों का दुरुपयोग विकास कार्यों को बनाने और तोडऩे में देखा गया है। लेकिन अब आय बढ़ाने के उद्देश्य से दर्शन पर शुल्क लगाना कहां तक उचित है। ऐसा शुल्क सिर्फ जजिया कर ही कहा जा सकता है।