शौकीन मिजाज…
इन दिनों पंजाप्रेमी एक शौकीन मिजाज नेता की चर्चा खूब कर रहे हैं। पंजाप्रेमियों का इशारा मां चामुंडा नगरी की तरफ है। जहां के यह पंजाप्रेमी नेताजी हंै। इनको पंजाप्रेमी शौकीन मिजाज के नाम से जानते है। इन दिनों यह नेताजी हर दूसरे दिन महाकाल की नगरी में शाम ढले आते हंै। शहर में किसी से नहीं मिलते और चुपचाप तारामंडल की तरफ निकल जाते हैं। इस क्षेत्र में स्थित एक घर में यह अपना समय गुजारते हैं और चुपचाप वापस निकल जाते हंै। ऐसा पंजाप्रेमी बोल रहे हैं। सच-झूठ का फैसला हमारे सुधी पाठक खुद कर लें। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप रहना है।
शिकार…
अपने मंद-मुस्कान जी का अगला शिकार कौन होगा? इसको लेकर कोठी से शिवाजी भवन तक शर्ते लग रही हैं। शर्त लगाने वाले बोल रहे हैं। पहला शिकार तो कूट रचना करने वाले अधिकारी हो गये हैं। जिसमें अब देर-सबेर एफआईआर होना पक्का है। मगर दूसरे शिकार को लेकर कयास लगाये जा रहे हंै और शर्त भी। लेकिन अंदरखाने की खबर यह है कि अपने मंद-मुस्कान जी अब दूसरा शिकार करने के मूड में नहीं हैं। इसके पीछे कारण, फूलपेंटधारियों का दबाव है। ऐसा कमलप्रेमी बोल रहे हैं। देखना यह है कि अब अपने मंद-मुस्कान जी, अपना दूसरा शिकार करते हैं या कमलप्रेमियों की बात सही साबित होती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
नाखून…
शायर संजय रेड्डी ने खूब कहा है। ऐ मेरे पांव के छालों चलो लहू उगलो/जमाना मुझसे सफर के निशान मांगेगा। पंजाप्रेमी इन दिनों यह अशआर गुनगुना रहे हैं। जिसमें इशारा अपनी पंजाप्रेमी बुआ जी की तरफ है। उनकी पदयात्रा पिछले दिनों खत्म हुई है। जिसके बाद यह खबर उनके समर्थकों ने फैला दी। बुआ जी के नाखून चलते-चलते खराब हो गये हैं। संभवत: ऑपरेशन होगा। मगर इसके बाद भी पंजाप्रेमियों में कोई सहानुभूति नहीं जागी। नतीजा…आराम के बाद अपनी बुआ जी मैदान में नजर आने लगी है और पंजाप्रेमी शायर रेड्डी को याद कर रहे हंै। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।
चुप्पी…
हम तो खैर अपनी आदत के अनुसार चुप रहते हंै। मगर वर्दी को भी शायद हमारी वाली बीमारी लग गई है। तभी तो वर्दी सबकुछ देखकर भी, अनदेखी कर रही है। खासकर, फर्जी मीडिया के मामले में। ताजा मामला अपहरण कांड से जुड़ा है। जिसमें वर्दी को यह पता चल गया है कि…फर्जी मीडिया की बदौलत इस काम को अंजाम दिया गया। मकसद…अपनी जेब गर्म करना था। इसके बाद भी वर्दी का चुप रहना हमारी समझ से परे है, या फिर वर्दी वालो को डॉ. नवाज देवबंदी का अशआर ज्यादा पसंद आ गया है। जिसमें उन्होंने कहा है कि…जानकर गूंगा हूं और बहरा हूं मैं/इसलिए इस शहर में जिंदा हूं मैं। अब देखना यह है कि वर्दी की चुप्पी, इन तथाकथित दलालों के खिलाफ कब टूटती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
स्टाइल…
अपने नवागत अल्फा जी का आगमन हो चुका है। बाबा की नगरी में उनका दूसरी दफा दिल से स्वागत है। उनकी कार्यशैली का हर कोई कायल है। तभी तो वर्दी में चर्चा है कि अब इंदौरी स्टाइल में वर्दी काम करेगी। गुंडे-बदमाश हमेशा टूटी-फूटी हालात में ही अब श्रीकृष्ण की जन्म स्थली जायेंगे। यह स्टाइल इंदौर में काफी चर्चित रही थी। अब बाबा महाकाल की नगरी में वह आ गये हैं। आते ही संदेश भी साफ शब्दों में सुना दिया है। वर्दी, रात में जरूर नजर आनी चाहिये। जिसका सीधा साफ मतलब है। अपराध, अंधेरे में ज्यादा होते हंै। वर्दी की जिम्मेदारी है। वह अलर्ट रहे। अब देखना यह है कि…इंदौरी स्टाइल के लिए चर्चित अपने अल्फा जी की सलाह पर वर्दी कितना अमल करती है और अपराधों में कितनी कमी आती है। तब तक अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
केबीपी…
हमारे पाठक शीर्षक पढक़र सोच रहे होंगे। हमने केबीसी (कौन बनेगा करोड़पति) की जगह केबीपी लिख दिया है। जो कि गलत है। मगर यकीन मानिये। हमने बिलकुल सही लिखा है। केबीपी का मतलब है। कौन बनेगा प्रशासक। महाकाल मंदिर का। इसको लेकर विवाद खड़ा हो गया है। अपने उम्मीद जी की पसंद, अपने लिटिल मास्टर है। जिन्होंने बगैर आर्डर के काम भी शुरू कर दिया है। मगर अब इसमें फच्चर पैदा हो गया है। आराधना भवन से। जिन्होंने अपने फूलपेंटधारी को प्रशासक बनाने की सिफारिश कर दी है। नतीजा…मामला खटाई में पड़ गया है और अपने उम्मीद जी ने फिलहाल आर्डर को पेंडिंग में डाल दिया है। अब देखना यह है कि बगैर दबाव के काम करने वाले अपने उम्मीद जी, इस बार दबाव में किसको केबीपी बनाते हैं। तक तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
डिमांड…
दाल-बिस्किट वाली तहसील में पदस्थ एक महिला अधिकारी इन दिनों चर्चाओं में है। चर्चा का कारण उनकी डिमांड करने की शैली है। मैडम इन दिनों हर किसी से डिमांड करते वक्त, एक ही बात दोहरा रही है। मुझे रिलीव्ह नहीं होना है। इसलिए 2 पेटी ऊपर पहुंचानी है। इसलिए डिमांड कर रही हूं। नतीजा छोटे-छोटे कामों में भी वसूली की जा रही है। जिसको लेकर काम कराने आया हर फरियादी हतप्रभ है। मैडम के डिमांड की खबर, सभी सहयोगी और वरिष्ठ अधिकारियों को भी है। मगर सभी चुप हैं। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
अंकुश…
हर किसी की अपनी कार्यशैली होती है। कोई शांतिपूर्वक सबको साथ लेकर चलता है। तो कोई आते ही हडक़ंप मचा देता है। जैसे अपनी दमदमा की नई मुखिया जिन्होंने पद संभालते ही ग्रामीण विभाग में हडक़ंप मचा दिया है। एक आदेश निकालकर, सभी की बैंड बजा दी है। यह आदेश अवकाश से जुड़ा है। जिसमें निर्देश हंै कि…बगैर स्वीकृति के अब कोई भी अवकाश पर नहीं जायेगा। क्योंकि ग्रामीण वाले अकसर बगैर बताये गायब होने के लिए मशहूर हंै। दमदमा वाली मैडम का दूसरा फरमान मौखिक है। शनि-रवि के दिन वीसी होगी। इस दूसरे फरमान ने ग्रामीण विभाग को शायर ओम अवस्थी का अशआर याद दिला दिया है। तभी तो सब बोल रहे हैं कि…रहकर जमीं पे चांद के दीदार के लिए/ दफ्तर में दिन गुजरते हैं इतवार के लिए। लेकिन इस पर अब अंकुश लग गया है। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।
मेहरबानी…
कोरोना 2020 में प्रशासन द्वारा प्रवासी मजदूरों के लिए परिवहन की व्यवस्था की थी। उसके बाद यह मामला परिवहन दलाली कांड के रूप में खूब उछला था। 75 पेटी भुगतान का मामला था। अपने उम्मीद जी ने शिकायत मिलने पर भुगतान रोक दिया था। मगर बाद में बाले-बाले ठेकेदार ने पूरी राशि निकाल ली। जो कि नियम विरुद्ध थी। अब इसी ठेकेदार पर शिवाजी भवन मेहरबान हो गया है। तभी तो लोकल परिवहन का ठेका इसी को दे दिया गया है। अब इस मेहरबानी के पीछे कौन है। ऐसी चर्चा शिवाजी भवन में सुनाई दे रही है। इस मामले को लेकर जिम्मेदार चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
सफाई…
अपने उम्मीद जी ने भले ही मंगल-बाबा के दरबार से चिंदी चोर को हटा दिया है। मगर अभी भी वहां सफाई की जरूरत है। कारण…मंगल-बाबा के दरबार में अभी भी अपनी जेब गर्म करने का सिलसिला जारी है। पिछले हफ्ते का ही यह मामला है। किसी भक्त ने 12 हजार दान किये थे। भात पूजा के लिए। नियमानुसार रसीद कटकर, केशबुक में राशि जमा होनी थी। मगर ऐसा नहीं हुआ। मगर जब चोरी पकड़ी गई तो यह बताया गया कि …मंदिर की साज-सज्जा पर यह राशि खर्च कर दी गई। ऐसी चर्चा मंगल-बाबा के दरबार में सुनाई दे रही है। जिसने यह कृत्य किया है। वह पहले चांदी कांड को अंजाम दे चुके हैं। अब देखना यह है कि अपने उम्मीद जी, कब मंगल-बाबा के दरबार में फैली गंदगी की सफाई करते हैं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हंै।
दुश्मनी…
अपने विकास पुरुष की दोस्ती के किस्से, भले ही कमलप्रेमी कभी नहीं सुनाते हंै। लेकिन उनकी दुश्मनी के किस्से बड़े चाव से सुनाये जाते हंै। तभी तो कमलप्रेमी उनकी दुश्मनी का ताजा किस्सा सुना रहे हैं। चिंतामण वाले दरबार से हुई दुश्मनी का। तभी तो चिंतामण दरबार का साथ देने वाले शिक्षकों का चुन-चुनकर तबादला किया गया है। इतना ही नहीं, अगर कोई गुहार लगाने जाता है। तो उसको भी विकास पुरुष बोल रहे हंै। उसको तो मटियामेट कर दूंगा और तुम्हारा तबादला नहीं रुकेगा। बेचारा ..गुहार लगाने वाला शिक्षक पसीना-पसीना हो जाता है। ऐसा कमलप्रेमी ही बोल रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते हंै। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।