कानाफूसी…
ई-लोकार्पण की घटना है। अपने विकास पुरुष-पहलवान और उम्मीद जी, तीनों एक साथ बैठे थे। जिसके चलते विकास पुरुष और उम्मीद जी के बीच संवाद नहीं हो पा रहा था। क्योंकि पहलवान बीच में थे। जब पहलवान उद्बोधन के लिए उठे। तो मौका मिल गया। फिर कानाफूंसी शुरू हुई। उम्मीद जी ने विकास पुरुष से जाने क्या कहा। जिसे सुनकर अपने विकास पुरुष पहले मुस्कुरा उठे और फिर उन्होंने अपनी स्टाइल में हाथ जोड़ लिये। इस घटना के 2 फोटो तो चुप ने खींच लिए, मगर हाथ जोडऩे वाला चूक गये। यह नजारा वहां मौजूद सभी ने देखा। किसी को नहीं पता…क्या कानाफंूसी हुई…क्यों हाथ जोड़े। मगर जिज्ञासा सभी को है। लेकिन कानाफंूसी करने वाले दोनों चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
डरपोक…
अपने कमलप्रेमी लेटरबाज जी डरपोक है। यह हम नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र घट्टिया के कमलप्रेमी बोल रहे हैं। तभी तो लेटरबाज के परिजन के खिलाफ सोशल मीडिया पर गाली लिख दी गई। जिनके लिए लिखी, वह कमंडल के अध्यक्ष हैं। लिखने वाले सरपंच पति है। जिन्होंने सीधे-सीधे खुलकर अश्लील शब्दों में पोस्ट अपलोड कर दी। इसके बाद भी अपने लेटरबाज जी ने कोई कार्रवाई नहीं की। बस…अपलोड पोस्ट हटवा दी। इसलिए कमलप्रेमी अपने लेटरबाज जी को डरपोक बोल रहे हंै। जिसमें हम क्या कर सकते हैं। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते हैं।
दु:खी…
वर्दी, इन दिनों अपने ही एक अधिकारी से दु:खी हैं। दु:ख का कारण अधिकारी का मीडिया प्रेमी है। शहरी क्षेत्र में इनकी हैसियत नम्बर-2 पर है। वर्दी वाले इनको बाहुबली के नाम से पुकारते हैं। वैसे अपने बाहुबली, मातहतों के प्रति हमदर्दी रखते हंै। मगर उनका मीडिया प्रेम, मातहत अधिकारियों के लिए मुसीबत बन गया है। कोई भी घटना हो…उनको बताते ही… मीडिया में उजागर हो जाती है। बाकी सब मामले तो ठीक हैं। मगर चोरी के मामले गंभीर होते हंै। मुलजिम से पूछताछ और बरामदगी करनी रहती है। इससे पहले ही मीडिया को खबर हो जाती है। नतीजा अधूरे काम में ही संतुष्ट होना पड़ता हंै। तभी तो एक थाना अधिकारी को सीएसपी ने बोल दिया था। अब मुझे मत बताओ…जब बाहुबली को बता दिया। ऐसी चर्चा इन दिनों वर्दी वाले कर रहे हंै। जिससे हमको क्या लेना-देना। हमारा तो काम है, बस चुप रहना।
उड़ान…
अपने विकास पुरुष एक बार फिर उड़ान भरने को तैयार हैं। गलत अर्थ नहीं निकाले। वह प्रदेश छोडक़र, केन्द्र नहीं जा रहे हंै। इसमें अभी थोड़ा टाइम है। दरअसल उनकी एक फिल्म आने वाली है। जिसका नाम उड़ान है। इसको लेकर कमलप्रेमी यह चार लाइने गुनगुना रहे हैं। तुम्हें दिल तोडऩे का हुनर आता है/ हमें दिल जोडऩे का हुनर आता है/ हमारे पंखों को कतरने से क्या फायदा/ हमें तो बिना पंखों के भी उडऩे का हुनर आता है। अब कमलप्रेमियों की इन लाइनों पर तो हम कुछ नहीं कह सकते हैं। बस…मरहूम शायर डॉ. सागर आजमी का अशआर…हसरत की बुलंदी में मत इतना उड़ो सागर/ परवाज ना खो जाये कहीं ऊंची उड़ानों में…को याद करके, हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
रिकार्ड…
अपने ढीला-मानुष ने रिकार्ड बना दिया है। 21 महीने हो चुके है। उनको कमलप्रेमियों का मुखिया बने। मगर आज तक अपनी टीम की घोषणा नहीं कर पाये हैं। शुरुआत में 2 पाटन के बीच फंसे थे। विकास पुरुष और पहलवान। फिर त्रिकोण में वजनदार जी आ गये। अब अपने ढीला-मानुष चतुर्भुज बन गये हैं। क्योंकि जिनके सहारे कमलप्रेमी 13 महीने बाद वापस सत्ता में आये, उस गुट ने भी अपने नाम आगे बढ़ा दिये हैं। संगठन में जोडऩे की सिफारिश कर दी है। 3 नाम सामने आ रहे हैं। नतीजा अपने ढीला-मानुष अब अपनी टीम की घोषणा करने में लाचार हो गये हैं। जबकि संभाग में सभी जगह घोषणा हो चुकी है। यह सब हम नहीं, बल्कि कमलप्रेमी ही बोल रहे है। अब फटे में टांग तो हम अड़ा नहीं सकते हैं। इसलिए अपने ढीला- मानुष को रिकार्ड बनाने की बधाई देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
पसंद…
अपने विकास पुरुष की पसंद क्या है। इस सवाल का जवाब कमलप्रेमी बड़े अनोखे अंदाज में देते हैं। कमलप्रेमी बताते हैं कि…विकास पुरुष को बापू की तस्वीर वाले कागज, जिनसे पूरे दुनिया चलती है। उनकी पहली पसंद है। वहीं दूसरी पसंद अपने बापू का एक सिद्धांत है। एकला चालो रे…वाला सिद्धांत। तभी तो रविवार को हुई वार्ता के लिए 2 संदेश सोशल मीडिया पर जारी हुए। पहला संदेश दोपहर 3 बजे डाला गया। जो एकला चालो रे…वाले सिद्धांत पर आधारित था। लेकिन 3 घंटे बाद ही दूसरा संदेश खबरचियों को भेजा गया। जिसमें अपने वजनदार जी, पहलवान का नाम भी शामिल था। इसके बाद ही कमलप्रेमी, राष्ट्रपिता बापू को याद करते हुए, अपने विकास पुरुष की पसंद बता रहे हैं। अब कमलप्रेमियों को तो हम चुप कर नहीं सकते हैं। तो खुद ही अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
भय…
शिवाजी भवन में इन दिनों भय की लहर व्याप्त है। इसके पीछे कारण यू-टयूब पर अपलोड एक वीडियो है। जिसको देखकर ही अधिकारी-कर्मचारी भयभीत हैं। दबी जुबान में सुगबुगाहट है कि…अगर शिवाजी भवन के नये मुखिया ने अपनी कार्यशैली नहीं बदली तो? पुराने जिले वाली कार्यप्रणाली पर चले तो? शिवाजी भवन में चिंगारी को भडक़ने में देर नहीं लगेगी। फिलहाल, शिवाजी भवन के गलियारों मेंं देखो और इंतजार करो वाली कहावत पर अधिकारी-कर्मचारी अमल कर रहे हैं। अब देखना यह है कि शिवाजी भवन में चिंगारी आखिर कब शोला का रूप धारण करती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।
जड़ से मिटाना…
इस शब्द का अर्थ तो हमारे पाठक समझते ही हंै। अपने उम्मीद जी की यही आदत है। जो हमको भी पसंद है। वह समस्या को जड़ से ही खत्म करने में ज्यादा भरोसा रखते हैं। सतही तौर पर निराकरण होना, उनको पसंद नहीं है। तभी तो अब उन्होंने और ज्यादा सख्त कदम उठाने का मन बना लिया है। खासकर सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले भू-माफियाओं को लेकर। अवैध कब्जे पर तो बुलडोजर चलेगा ही, मगर अब कब्जा करवाने की भी खैर नहीं।
ऐसे लोगों को चिन्हित किया जायेगा। खासकर, उनकी जो कब्जा हटाते समय आकर दखलअंदाजी करते हैं। ऐसे संरक्षकों पर भी अब कार्रवाई होगी। उनके घर पर भी बुलडोजर चलेगा। ताकि आगे से किसी भी सरकारी जमीन पर कब्जा करवाने से पहले 100 बार सोचे। अब अपने उम्मीद जी ने ठान लिया है। तो जल्दी ही कार्रवाई होना भी पक्का है। हम तो बस अग्रिम शुभकामनाएं देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते हैं।