शिवपुरी। शहर के फतेहपुर रोड विजयपुरम काॅलोनी में रहने वाले पचावली सहकारी साख समिति के सहायक प्रबंधक माधुरी शरण भार्गव के यहां गुरुवार अलसुबह आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की टीम ने दबिश दी। छापामार कार्यवाही में करोड़ों रुपए की संपत्ति के दस्तावेज, नकदी, सोना, चांदी मिलने की बात सामने आई है।
माधुरी शरण भार्गव ने साल 1995 में 500 रुपए के वेतन पर सहायक सेल्समैन के रूप में नौकरी शुरू की थी। अभी वे सहायक प्रबंधक के पद पर हैं और उन्हें 12 हजार 500 रुपए महीना पगार मिलती है। एक अनुमान के अनुसार 26 साल की नौकरी में उन्हें वेतन के रूप में करीब 30 लाख रुपए मिले हैं। लेकिन जांच में उनकी संपत्ति इससे कई गुना अधिक निकली है। ईओडब्ल्यू ने भार्गव से संपत्ति का हिसाब मांगा है, लेकिन वे मौके पर कुछ बता नहीं पाए। टीम के अनुसार अभी कार्रवाई जारी है।
पहले प्लॉट खरीदने पहुंचे, फिर पता पूछने, नहीं खोले गेट
माधुरी शरण का बेटा प्रॉपर्टी का कारोबार करता है। यह जानकारी टीम को थी, इसलिए ईओडब्ल्यू की टीम उनके घर पहले प्रॉपर्टी खरीदने के बहाने पहुंची, लेकिन माधुरी शरण को कुछ शक हो गया और उन्होंने दरवाजा नहीं खोला। कुछ देर बाद टीम के कुछ अन्य सदस्य पता पूछने के बहाने उनके यहां पहुंचे, लेकिन वह गेट खोलने को तैयार नहीं हुए, ऊपर से ही बात करते रहे। तीसरी बार जब टीम असल रूप में रेड डालने की बात कहते हुए भार्गव के घर पहुंची तब भी उसने गेट नहीं खोला।
पेड़ के सहारे पड़ोसी के मकान पर चढ़ डाली रेड
ईओडब्ल्यू की टीम ने सारे हथकंडे आजमाने सहित सच्चाई बताने, कोर्ट का सर्च वारंट दिखाने के बाद भी माधुरी शरण भार्गव के घर का दरवाजा खुलवाने में सफल नहीं हो पाई। इस पर टीम के कुछ सदस्य माधुरी शरण भार्गव के मकान के सामने लगे एक अशोक के पेड़ के सहारे पड़ोसी की छत पर चड़े। इसके बाद भार्गव के मकान में रेड डाली।
बना रहे हैं मार्केट, टाइल्स की दुकान भी
भार्गव जिस कॉलोनी में रहते हैं, वहां उनके दो मकान तो आमने-सामने ही हैं। इसके अलावा भी दो तीन अन्य मकान बताए जा रहे हैं। ग्वालियर बायपास पर करीब एक करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की टाइल्स की दुकान है। फतेहपुर रोड पर भी बेशकीमती प्लाट पर दुकान और मकान निर्माणाधीन है। परिवार और रिश्तेदारों के नाम पर भी करोड़ों की जमीन होने की बात सामने आई है।
ऐसे खड़ा होता चला गया साम्राज्य
भार्गव से जुड़े विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि भार्गव समिति के माध्यम से किसानों की फसल खरीदने का काम करते हैं। यहां किसानों के हक पर डाका डालने के अलावा फर्जी सिकमी बटाईदार बनकर बाजार का गेंहू सरकार को बेचने, कंट्रोल संचालन कर गरीबों के हक का राशन डकार कर पैसा बनाया। किसानों को ऋण वितरण, ऋण माफी के माध्यम से भी पैसा बनाए जाने का खेल खेला गया। इतना ही नहीं गरीबों का हक डकारकर व्यापार किया तो पैसा और तेजी से बढ़ता चला गया।