भस्म आरती में पांच फुलझडिय़ां जलाकर मनाएंगे दिवाली

पुजारी परिवार की महिलाएं कराएंगी अभ्यंग स्नान, शाम को शहर भर में मनेगा दीपोत्सव का त्यौहार

उज्जैन, अग्निपथ। उज्जैन में राजाधिराज महाकाल भगवान के दरबार में सबसे पहले दीपावली मनाई जाएगी। रूप चौदस गुरुवार की सुबह भस्म आरती के दौरान भगवान महाकाल का दीपावली पूजन भी किया जाएगा। इस दिन दिवाली पूजा होने के चलते भस्म आरती का समय करीब आधे घंटे तक बढ़ जाता है। वहीं तीन दशक बाद दीपावली पर चंद्र मंगल के केंद्र योग के साथ शनि के शश योग में दीपावली का त्यौहार मनाया जाएगा।

भस्म आरती के दौरान 5 फुलझडिय़ां जलाकर उनसे भी आरती की जाती है। इसके पूर्व भगवान महाकाल का पुजारी परिवार की महिलाएं अभ्यंग स्नान कराएंगी। अन्नकूट भी भस्मारती में लगाया जाएगा। इसी के साथ महाकाल के दीपावली पूजा पूरी होती है। दिवाली के दिन रात में महाकाल मंदिर समिति और पुजारी परिवार की ओर से 5 दीपक महाकाल के सम्मुख रखे जाते हैं और धानी बतासे का भोग लगाया जाता है। कई श्रद्धालु भी यहां दीपक लेकर आते हैं और महाकालेश्वर के दर्शन करते हैं। आरती के बाद महाकालेश्वर को अन्नकूट में छप्पन भोग लगाया जाता है। इसके बाद से अन्नकूट महोत्सव की शुरुआत हो जाती है। फूल मालाओं से मंदिर की सजावट की जाती है। पूजा की पूरी प्रक्रिया पुजारी परिवार की ओर से की जाती है। सभी इंतजाम और खर्च पुजारी परिवार ही उठाते हैं।

मकर राशि के शनि केंद्र में होने से शश योग

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में पंच महापुरुष योग का उल्लेख आता है। उन्हीं में से एक शश योग भी उल्लिखित है जो शनि के केंद्र गत स्वराशि होने से बनता है या उच्च गत होने से बनता है। इस बार शनि मकर राशि में स्वयं की राशि में विद्यमान है। यह स्थिति विशेष अनुकूल बताई गई है। इसके माध्यम से भी नए व्यापार व्यवसाय का सूत्रपात होगा।
प्रदोष काल का पूजन

तीन दशक बाद बनता है ऐसा योग

ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बावाला ने बताया कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्यौहार आ रहा है। इस बार गुरुवार के दिन चित्रा नक्षत्र के आरंभ एवं स्वाति नक्षत्र की साक्षी में प्रीति तथा आयुष्यमान योग के संयुक्त उपक्रम में दीपावली का त्यौहार आ रहा है। ग्रह गोचर की गणना से देखे तो दीपावली के त्यौहार पर ग्रह तथा नक्षत्र एवं योग का विशेष अनुक्रम भी बन रहा है। जिसमें केंद्र के अंतर्गत चंद्र, मंगल, शनि का विशेष संयोग रहेगा। यह भी कहा जा सकता है कि यह उत्तरोत्तर वर्गोत्तम रहेंगे। साथ ही सूर्य मंगल चंद्र की यूति विशेष लाभ देने वाली रहेगी, यही नहीं केंद्र में शुभ ग्रहों का योग भी सहयोगात्मक रहेगा।

विशेष लाभदायी

पं. डब्बावाला ने बताया कि दीपावली पर पूजन की मान्यता मुहूर्त विशेष पर निर्भर करती है। यदि श्रेष्ठ मुहूर्त हो तो विशेष फलदाई मानी गई है। महालक्ष्मी की पूजन का श्रेष्ठ समय प्रदोष काल का बताया जाता है। क्योंकि इसी समय वृषभ लग्न की भी साक्षी रहती है। इस बार प्रदोष काल का समय शाम 6.30 से लेकर रात्रि 8.20 तक रहेगा। इस दौरान महालक्ष्मी का पंचोपचार पूजन या षोडशोपचार पूजन पाठात्मक करने से महालक्ष्मी कृपा से धन-धान्य की प्राप्ति होगी।

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