हिम्मत …
अपने वजनदार जी की हिम्मत को अपुन की तरफ से 1 नहीं- 10 नहीं- 100 नहीं- 1000 बार सेल्यूट। जिन्होंने हिम्मत भी करी गिरने की। तो सीधे अपने मामाजी पर। जिसकी चर्चा अपने कमलप्रेमी खूब कर रहे है। भले ही हमारे पाठकों को लगे कि ऐसा संभव ही नहीं है। मगर घटना 16 आने सच है। अपने मामाजी गोवर्धन पूजा करने जा रहे थे। तेजी- तेजी चल रहे थे। उनके पीछे बाकी सभी कमलप्रेमी भी दौड़ रहे थे। तभी अचानक अपने वजनदार जी का पैर उलझ गया। जिसके चलते वह गुलाटी खा गये और सीधे अपने मामाजी से टकरा गये। अपने मामाजी गिरते-गिरते बच गये। वह तत्काल पलटे… तो देखा वजनदार जी थे। इसलिए ज्यादा आक्रोश नहीं दिखाया। बस इतना बोले कि … अगर मुझ पर गिर जाते तो… जाता। बात हंसी- मजाक में खत्म हो गई। मगर कमलप्रेमी अपने वजनदार जी की हिम्मत को लेकर खूब चर्चा कर रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस … अपनी आदत के अनुसार चुप ही रह सकते है।
उधारी …
शीर्षक पढक़र ही हमारे पाठक समझ गये होंगे। उधारी का मतलब चुकाना भी होता है। भले ही इसमें कितना भी समय लग जाये। कभी ना कभी तो उधारी चुकानी पड़ती है। ऐसा हम नहीं, बल्कि अपने बदबू वाले शहर के कमलप्रेमी बोल रहे है। इशारा अपने ताऊजी की तरफ है। जो कि अभी-अभी आये थे। कभी उन्होंने एक पूर्व जनप्रतिनिधि को मुसीबत के वक्त 5 पेटी दिलवा दी थी। उसके बाद से इस पूर्व जनप्रतिनिधि ने, उधारी चुकाने में इतना वक्त लगा दिया। टाल-मटोल करने लग गये। आखिरकार यह बात अपने ताऊजी को अखर गई। नतीजा वह वक्त निकालकर उसके घर ही पहुंच गये। जिसने उधार लिया था। ऐसी चर्चा बदबू वाले शहर के कमलप्रेमी कर रहे है। अब उधार दिया है तो वसूलना भी नैतिक जिम्मेदारी है। जिससे हमारा क्या लेना-देना। हमारा तो काम है बस आदत के अनुसार चुप रहना।
चोट …
अपने मामाजी के साथ एक ऐसी चोट हो गई। जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी। दिवाली के अगले दिन अपने मामाजी आये थे। आते वक्त तो यही कल्पना थी उनकी। सीधे-सीधे देश के मुखिया की नजर में आयेंगे। लिंक के माध्यम से। मगर इसके ठीक उलट हो गया। लिंक कनेक्शन फेल हो गया। अपने मामाजी के साथ चोट हो गई। इसके लिए दोषी कौन है। इसको लेकर कुछ भी कहना मुश्किल है। मगर यह ठीक वैसे ही हुआ है। जैसे स्थापना दिवस 1 नवम्बर के दिन हुआ था। टॉवर और नानाखेड़ा पर स्क्रीन लगी थी। मगर लिंक से कनेक्शन नहीं हो पाया। 1 घंटे तक सभी परेशान रहे थे। अब इस बार खुद मामाजी की मौजूदगी में यह चोट हो गई। जिसको लेकर अपने मामाजी भी चुप रहकर, रवाना हो गये। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
शह- मात …
जब-जब अपने मामाजी का आगमन होता है। अपने वजनदार जी, विकास पुरूष और पहलवान के बीच शह और मात का खेल शुरू हो जाता है। किसलिए … ? तो हम बता देते है। तीनों के बीच यह शीतयुद्ध शुरू हो जाता है। कौन अपने मामाजी के साथ, बगल में बैठकर ज्यादा वक्त गुजारता है। जिसके लिए मामाजी के वाहन में एक-दूसरे की गोद में भी बैठते, इन तीनों को कई बार देखा है। फिलहाल विकास पुरूष का जलवा है। उनको संगठन की तरफ से मंगलनाथ मंदिर पर रहना था। जहां पर स्क्रीन लगी थी। मगर विकास पुरूष ने अपनी लीला दिखाई। अपनी जगह पहलवान को भिजवा दिया। पहलवान मंगलनाथ गये। जिसका फायदा पहलवान ने उठाया। लिंक फेल हो चुकी थी। नतीजा पहलवान सेठी नगर पहुंच गये। जब अपने मामाजी के साथ विकास पुरूष और वजनदार जी पहुंचे। तो अंदर बैठने की इन दोनों को जगह ही नहीं मिली। नतीजा दोनों को बाहर रहना पड़ा। अब इस शह और मात के खेल में कौन जीता। फैसला हमारे पाठक खुद कर ले। क्योंकि हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप रहना है।
गुस्सा …
अपने विकास को कब गुस्सा आ जाये। कोई नहीं बता सकता है। उनके इस गुस्से का शिकार अदने कर्मचारी भी हो जाते है। जैसे 1 नवम्बर के दिन हुआ। कालिदास समारोह की बैठक थी। बैठक के बाद, प्रोसेडिंग पर हस्ताक्षर होने थे। विभागीय मंत्री सहित पहलवान और वजनदार जी ने हस्ताक्षर कर दिये। लेकिन अपने विकास पुरूष ने हस्ताक्षर करने के बदले कर्मचारी पर गुस्सा निकाल दिया। हस्तााक्षर नहीं किये। कारण … उनका नाम नीचे लिखाा था। उनके नाम के ऊपर कमलप्रेमियों में दादा के नाम से मशहूर नेताजी का नाम था। यह देखकर अपने विकास पुरूष को गुस्सा आ गया। उन्होंने प्रोटोकॉल का हवाला तक दे दिया। बेचारा कर्मचारी। क्या करता। फटकार खाकर चुप हो गया। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
फोन . ..
एक बार फिर घटना 1 नवम्बर से जुड़ है। जिसमें किरदार अपने उम्मीद जी है। उन्होंने कार्यक्रम के बीच में एक फोन किया। निर्देश दिये कि … इस नाम के ब्रांड एम्बेसडर का नाम घोषित नहीं होना चाहिये। आदेश का पालन किया गया। कविवर एम्बेसडर का नाम घोषित नहीं हुआ। जबकि वह पूरी तरह से सज-धज के आये थे। अब यह नाम किसके इशारे पर, अपने उम्मीद जी ने हटवाया। यह तो वही जानते है। मगर वह चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।
ठहाका …
हमने इसी अंक में लिखा है। शह-मात का खेल मामाजी के आगमन पर खूब चलता है। मौका मिलने पर ठहाका भी लगता है। तभी तो अपने पहलवान की नाकामी पर वाहन के अंदर जोरदार ठहाका लगा था। इसके पीछे कारण, मामाजी के साथ वाहन में बैठना था। अपने पहलवान जुगाड में थे। वह वाहन के करीब आकर भी खड़े हो गये थे। बैठते, उसके पहले ही कमलप्रेमी संगठन के प्रदेश मुखिया ने टांग अड़ा दी। पहलवान को मौका नहीं मिल पाया। जबकि विकास पुरूष और वजनदार जी को जगह मिल गई। नतीजा पहलवान को दूसरे वाहन में बैठना पड़ा। यह देखकर मामाजी के वाहन में बैठे तीनों दिग्गजों ने जोरदार ठहाका लगाया। ऐसा यह नजारा देखने वाले कमलप्रेमी बोल रहे है। मगर हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।
शौकीन …
प्रदेश स्तर के एक शौकीन पदाधिकारी है। पक्के कमलप्रेमी है। क्योंकि फूलपेंटधारी भी है। इन दिनों उनके एक शौक की चर्चा कमलप्रेमी कर रहे है। यह शौक गीत सुनने का है। मगर वह जिस नेत्री से गीत सुनते है। वह महाकाल नगरी की निवासी है। जिनका एक बिल्डर से प्रेम प्रसंग कुछ दिनों पहले उजागर हो गया था। बिल्डर भी कमलप्रेमी है। अब वही नेत्री अपनी मधुर आवाज में संगठन के शीर्ष पदाधिकारी को दूरभाष पर गीत सुनाती है। ऐसा हम नहीं, बल्कि कमलप्रेमी बोल रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
लड्डू …
बाबा महाकाल के लड्डू काफी प्रसिद्ध है। भक्तगणों को अकसर इसकी किल्लत उठानी पडती है। मांग ज्यादा है। आपूर्ति कम। लेकिन जब मामाजी का आगमन हुआ। तो कमलप्रेमियों के लिए अलग से व्यवस्था की गई। रातों-रात लड्डू तैयार करवाये गये। वितरण भी किया गया। कमलप्रेमियों को दिवाली मिलन के नाम पर बुलाया गया था। मुफ्त के लड्डू पाकर कमलप्रेमी खुश हो गये। अब भले ही भक्तों को खरीदने पर भी नहीं मिलते है। इसको लेकर हम क्या कर सकते है। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।
शिकायत …
बाबा के दरबार में एक बैठक हुई थी। मामाजी के आगमन से पहले। जिसमें अपने उम्मीद जी, कप्तान, बाहुबलि, ढीला-मानुष आदि मौजूद थे। निर्णय लिया गया। प्रवचन हॉल तक कमलप्रेमियों को आने दिया जायेंगा। वर्दी को भी ताकीद किया गया। किसी को रोकना नहीं है। एक हजारी कमलप्रेमी बुलाये थे। मगर जब मामाजी आये तो निर्णय के उलट काम हुआ। कमलप्रेमियों को वर्दी ने जगह-जगह रोक दिया। नतीजा … अपने मामाजी और संगठन के मुखिया तक शिकायत हो गई। अब देखना यह है कि शिकायत का कुछ असर होता है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।