17 से शुरु होगा चार दिवसीय आयोजन
बदनावर, अग्निपथ। प्राचीन प्रसिद्ध कोटेश्वर महादेव धाम पर कार्तिक पूर्णिमा पर इस बार मेला लगेगा। 17 नवंबर से शुरू प्रांरभ होने वाले इस मेले की तैयारियाँ रविवार से शुरू भी कर दी गई हैं।
1500 वर्ष पुरानी परंपरा गत साल कोरोना के कारण टूट गई थी। इस बार भी शुरुआती दिनों में मेला नहीं लगाने की खबर लोगों को मिली थी। जिसके बाद आस्था के इस मेले को लेकर लोगों में आक्रोश देखा गया। कोद समेत क्षेत्र के लोगो ने क्षेत्रीय विधायक व प्रदेश सरकार के उद्योग मंत्री राजवर्धनसिंह दत्तीगांव, प्रशासन, जनपद अध्यक्ष संजय मुकाती आदि से मेला लगवाने की मांग की थी। रविवार को कोद में प्रमुख जनप्रतिनिधियों की बैठक में मेला लगाने का निर्णय हुआ। जैसे ही लोगों को मेला लगने की जानकारी मिली उन्होंने खुशी जाहिर की। मेले का संचालन ग्राम पंचायत करेगी।
रुक्मिणि हरण के दौरान भगवान श्री कृष्ण ने अपने हाथों से की थी शिवलिंग की स्थापना
पहाडिय़ों के मध्य प्राकृतिक गुफा स्थित भगवान कोटेश्वर महादेव धाम लोगों की आस्था का केंद्र है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणि हरण के दौरान अपने हाथों से शिवलिंग की स्थापना एवं संत सुकाल भारती की तपोभूमि के नाम से विख्यात इस तीर्थ का उल्लेख धर्मग्रंथों में भी मिलता है। यहां प्रतिवर्ष जनपद पंचायत के तत्वावधान में ग्राम पंचायत जलोदखेता के सहयोग से पांच दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। मालवांचल में मेले की शुरुआत इसी स्थान से होती है, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं का समागम होता है। इस बार मेला 17 से 20 नवंबर तक आयोजित किया जाएगा।
कुंड में दीपदान भी
– पुजारी महंत मंगल भारती ने बताया कि महान तपस्वी सिद्ध योगी संत सुकाल भारती ने जीवित समाधि ली थी। तब बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां जमा हुए थे। तब से अब तक निरंतर प्रतिवर्ष मेला लग रहा है। हालांकि गत साल कोरोना महामारी के कारण मेला स्थगित कर दिया गया था। आसपास के शहरों समेत अन्य प्रांतों से भी दुकानदार झूले, चकरी, मनिहारी, जूते, चप्पल, ऊनी, रेडिमेड वस्त्र की दुकानें लगाने यहां पहुंचते हैं। इसके अलावा केले और सिंघाडे की बिक्री ट्रकों से होती है। कार्तिक पूर्णिमा पर कार्तिक माह में स्नान करने वाली महिलाएं मनोकामनाएं पूर्ण होने पर यहां पवित्र कुंडों में दीपदान करती हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु कोटेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना करते हैं। हालांकि इस बार मेला कोरोना को देखते हुए छोटे स्तर पर लगाया जा रहा है। ताकि वर्षों पुरानी परंपरा न टूटे ओर यह कायम रहे।