अधिकारियों की लापरवाही, स्वच्छता रैंकिंग में पिछड़ा झाबुआ

झाबुआ, अग्निपथ। आखिरकार स्वच्छता सर्वेक्षण में जहां 25 से 50 हजार की जनसंख्या में गत वर्ष झाबुआ नगर जो गत वर्ष रैंकिंग में दूसरे स्थान पर आया था, वहीं कुछ उदासिनता एवं उचित एवं योजनाबद्ध कार्य के अभाव में इसकी रैंकिंग एक पायदान नीचे खिसक गई और झाबुआ इस वर्ष तीसरे स्थान पर आ गया जो निश्चित ही विचारणीय होने के साथ ही नगरपालिका परिषद की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान खड़े कर रहा है।

अखिल भारतीय स्तर तो दूर की बात प्रदेशस्तरीय रैंकिंग में झाबुआ का अगली पायदान पर जाने की बजाय तीसरे स्थान पर जाना विचारणीय बन गया है। ओर तो ओर झाबुआ नगरपालिका की वर्ष भर की उपलब्धि को देखे तो झाबुआ नगर झोन रैंकिंग में भी 29वें स्थान से खिसकर पर 99 नंबर पर चला गया।

जाहिर है कि श्रेष्ठ स्थान पाने के लिए झाबुआ को आने वाले साल में अधिक मेहनत करना पड़ेगी। क्योंकि कई कमियां नगरपालिका की कार्यप्रणाली को लेकर स्वच्छता को लेकर बनी हुई है। इसे दूर करने की जरूरत अभी से दिखाई देने लगी है।

तर्क तो यह भी दिये जा रहे हैं कि कर्मचारियों एव संसाधनों की कमी के चलते इस बार झाबुआ का नंबर नहीं लग पाया होगा। जबकि जरूरी यह है कि स्वच्छ सर्वेक्षण रैंकिंग बढ़ाने के लिए जनता का सहयोग भी लेना जरूरी है किन्तु इस दिशा में नगरपालिका अति उत्साह के चलते यह सब कुछ नहीं कर पाई।

ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष झाबुआ स्वच्छता सर्वेक्षण में प्रदेश में दूसरे स्थान पर आया था। क्योंकि सभी ने मिलकर सामूहिक प्रयास किए थे। इस वर्ष 2021 में स्वच्छ सर्वेक्षण को लेकर भरपुर कदम नहीं उठाए गए, इसलिए झाबुआ पिछड़ गया। हालांकि प्रयास तो किए जाने की बात जिम्मेवार करते तो है, किन्तु यह भी सही है कि प्रयास में कमी रही होगी।

झाबुआ नगरपालिका ने गत वर्ष के अनुभवों को भी ताक पर रख दिया था तथा इस बार स्वच्छता को लेकर कोई विशेष अभियान भी नहीं चलाया गया और ना ही गंभीर प्रयास इस बार दिखाई दिए। जिसका परिणाम प्रदेश में तीसरी रैंक और झोन में 29 से घट कर 99वें स्थान पर पहुंचाना बेहद ही विचारणीय है।

नगरपालिका के स्वच्छता अभियान की पोल इसी बात से खुलती है कि झाबुआ की सडक़ों की सतत सफाई व्यवस्था को देखने के लिये जिम्मेवार अति उत्साह में ही रहे और सफाईकर्मियों के ही भरोसे ही वार्डों की सडक़ों, नालियों की सफाई व्यवस्था रही। इसके परिणामस्वरूप झाबुआ नगर में साफ-सफाई की दिशा में गत वर्ष के मुकाबले जो काम होना चाहिये था वह नहीं हो पाया। अभी भी हालातों पर ध्यान देवें तो हालात जस के तस ही बने हुए हैं।

काम के प्रति समर्पित जिला कलेक्टर सोमेश मिश्रा के संज्ञान में यह बात लाना जरूरी है कि नगरपालिका में जो अमला एवं कर्मचारी काम कर रहे है उनका व्यवहार भी हमेशा जनचर्चा का विषय बना रहता है। इसके चलते कलेक्टर साहब को नगरपालिका के जिम्मेवारों को ताकीद देना जरूरी है तथा उनकी कार्यप्रणाली को लेकर भी योग्य मार्गदर्शन एवं निर्देश देना चाहिये।

आम तौर पर देखा गया है कि नगरपालिका हमेशा ही फंड का रोना रोया करती है और फंड के अभाव को दर्शाकर विकास कार्यों एवं स्वच्छता आदि की ओर ध्यान देने में उदासीन रहती है। जबकि नगरपालिका ने अभी तक अपने राजस्व की वसूली की दिशा में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाने के चलते लाखों करोड़ों का राजस्व जिसकी नगर में वसूली होना है, नहीं हो पा रही है।

ऐसे में कलेक्टर साहब को भी राजस्व की वसूली की दिशा में भी कड़े निर्देश देने की दरकार है। ताकि नगरपालिका काम चोरी का कम से कम बहाना तो नही कर सकें।
यदि स्वच्छता को लेकर किये गये प्रयासों का ही आंकलन करें तो वर्ष 2018 में झाबुआ नगरपालिका का प्रदेश स्तर पर नम्बर 24वां था, वहीं वर्ष 2019 में कुछ सुधार होने से झाबुआ 15वें नम्बर पर आ गया था। स्वच्छता सर्वेक्षण के लिये पैदा की गई जन जागृति के चलते झाबुआ नगर को 2020 में दूसरा स्थान मिल गया था जिसके चलते नगरपालिका अध्यक्षा मन्नुबेन डोडियार को इसके लिये पुरस्कृत भी किया गया था।

किन्तु 2021 में जहां अन्य नगरीय निकायों ने भरपुर मेहनत करके हमारा दूसरे नम्बर का तमगा भी छीन लिया तथा इस बार एक पायदान खिसकर हम नम्बर तीन पर आ गये। कहा जाता है कि जब ईमानदारीपूर्वक प्रयास किये जावे तो सफलता हांसिल होने से कोई रोक नहीं सकता, किन्तु कुछ तो कमियां रही होंगी जिसके चलते झाबुआ नगर को आगे बढऩे की बजाय पीछे खिसकना पड़ा।

हालांकि जिला स्तर की बात करें तो पूरे जिले में झाबुआ ही एक मात्र नगरपालिका है बाकी स्थानों पेटलावद, थांदला, मेघनगर में नगरपरिषद है। ऐसे में झाबुआ जिले में अंधे में काना राजा की तर्ज पर झाबुआ का प्रथम स्थान पर आना कोई विशेष उपलब्धि नहीं माना जा सकता है।

मनन करने वाली बात तो यह है कि झोन में जहां हम साल 2020 में 29वें स्थान पर थे वहीं इस वर्ष 2021 में काफी पीछे खिसक कर 99वें स्थान पर आ गये।

अब खिसकती उपलब्धि को लेकर यह तर्क दिये जा सकते हैं कि यहां जनता का स्वच्छता को लेकर कोई सहयोग नहीं मिला। हमारा कहना है कि सिर्फ कुलड़ी में गुड़ फोडऩे से कुछ नहीं होता। यदि जनता को इस सर्वेक्षण अभियान में जोड़ा जाता और उनका सहयोग लिया जाता तो आज स्थिति पराभव वाली नहीं होगी। तर्क तो कोरोना का काल का भी दिया जा रहा है, किन्तु इसके कोई मायने हमारी नजर में इस लिये नहीं है कि कोरोनाकाल पूरे देश के लिये था, ऐसे में अन्य निकाय जो हमसे पीछे थे वे आगे कैसे निकल गये।

जन प्रतिनिधियोंं का भी सहयोग नहीं मिलने की बात भी इस सन्दर्भ में की जा रही है, जबकि पूरी परिषद कांग्रेस पार्टी की है, विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, जनपद अध्यक्ष, नगरपालिका के पार्षदगण, पार्टी के ऊंचे पदों पर बैठे पदाधिकारी, सभी कांग्रेस पार्टी के होने के बाद भी इस कार्य में उनका सहयोग नहीं मिलना हास्यास्पद लगता है। वहीं इस उपलब्धि को लेकर कर्मचारियों की कमी को भी एक कारण बताया जा रहा है, साथ ही नगरपालिका के पास संसाधनों की कमी होने का ढिंढ़ोरा भी पीटा जा रहा है।

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