झाबुआ। बचपन में जब हम कुछ खाने-पीने की चीजों या फिर कुछ अच्छा लगने वाली चीजों को भी मन मसोस कर ना कह देते थे तो घर वाले या मित्र ओर मिलने वाले कहते थे ‘मन भावे ओर मुंडो हिलावे’ कुछ इसी तरह की स्थितियां जिले की तीन प्रमुख कृषि उपज मंडियों झाबुआ, थांदला, पेटलावद सहित जिले की इन मुख्य मंडियों के अधीन आने वाली उप मंडियों की है।
जिले में कहने को तो किसानों की उपज का सही तोल सही मोल दिलाने हेतु तीन मंडियां और उनके अधीन करीब एक दर्जन के करीब उप मंडिया है, किंतु जिले के अधिकांश कृषक जनजतीय समुदाय जो सेठ साहूकारियों से किसी न किसी कार्य हेतु अथवा कृषि क्रय हेतु ऋण लिया उन्हें न चाहते हुए भी ‘सही उपज का सही दाम छोड़ कर तोल मोल कर बोल’ के हाथों अपनी उपज का मोल अपने लिए ऋण का उपकार चुकाने में गवाना पड़ती है।
यूं तो सरकार और उसके प्रशासनिक तंत्र ने किसानों की उपज का सही दाम दिलाने ओर हाल ही में एक बार पुन: साहूकारी प्रथा खत्म करने अथवा इस पर लगाने का झुनझुना पकड़ाया, किन्तु आदिवासी बहुल झबुआ जिले में कृषि उपज का सही दाम हो या साहूकारी प्रथा खत्म करने का ढिंढोरा का असर ‘भैंस के आगे बिन बजाने’ जैसी स्थिति में ही है।
जिले में न तो सहकारी प्रथा बन्द हो सकती और न ही कृषि उपज की बाजारों में या जहां व्यापारी बैठ कर खरीदी शुरू कर दे बन्द हो सकती। पिछले कई वर्षों से किसानों को उनकी उपज का सही दाम दिलाने कुछ जागरूक संगठनों के साथ मीडिया भी प्रयाशरत है किंतु झुनझुना पकडऩे वाले राजनीतिक दलों, उनके जनप्रतिनिधयों से लेकर भ्रष्ट तंत्र के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही।
बीते दिनों थांदला में एक संगठन ने एसडीएम जो कि वर्तमान में कृषि उपज मंडी के प्रशासक भी है को एक ज्ञापन देकर कृषि उपज की खरीद-फरोख्त कृषि उपज मंडी में करने संबंधी ज्ञापन दिया। इस से पूर्व वर्षों से यह ज्ञापन देने और सरकारी तंत्र को ‘कुम्भकर्णी नींद’ से जगाने का प्रयाश किया जा रहा, किंतु भ्रष्ट तंत्र या तो प्रति वर्ष व्यापारियों से दिवाली पूर्व ‘लक्ष्मी पूजन की भेंट ले लेते’ या ‘आश्वासनों के पहाड़ पर बैठ कर हथेली में दिल्ली दिखाने’ वालों की जादुई छड़ी के गुलाम बने हुए हैं।
बीते दिनों ही थांदला में एक संगठन ने एडीएम ओर मंडी प्रशासक को इस संबंध में एक ज्ञापन दिया किन्तु अथिति वही ‘ढाक के तीन पात’ बताते है थांदला में गत वर्ष प्रदीप नाम के एक व्यापारी द्वारा तोल में गड़बड़ी करने का जागरूक किसान ने न केवल विरोध किया अपितु इसका वीडियो बनाकर सोसल मीडिया पर वायरल भी किया था। बावजूद इसके न तो व्यापारी पर कोई कार्यवाही हुई और न कृषि उपज मंडी में खरीदी शुरु हुई।
इसी तरह के हालात जिला मुख्यालय जहां कलेक्टर का कार्यालय है से मात्र आधा किलोमीटर दूरी पर कृषि उपज मंडी है और राजगढ़ नाका पर एक व्यापारी सहित बस स्टैंड ओर जेल चोरहा सहित जगह जगह किसानों को लूटने के केंद्र बेधडक़ चल रहे हैं।
झबुआ में भी जयस द्वारा एडीएम को किसानों से लूट खसोट बन्द कर मंडी प्रांगण में फसल का उचित दाम दिलाने खरीदी शुरू करवाने हेतु ज्ञापन दिया।
कमोबेस यही स्थिति पेटलावद की भी है यहां भी हालत झबुआ थांदला जैसे ही है किंतु यहां तेरी भी जय मेरी भी जय के चलते किसान लूट केंद्रों के शिकार हो रहे हैं और जवाबदार मंडिया ओर उनके नुमाइंदे मौन हंै।