स्थापना दिवस पर विशेष
दैनिक अग्निपथ ने अपनी विकास यात्रा के आज 32 वर्ष पूर्ण कर लिये हैं। 1 दिसंबर सन् 1989 को अग्निपथ का प्रथम अंक प्रकाशित हुआ था। अग्निपथ के पुरोधा और संस्थापक देश के मूर्धन्य पत्रकार मेरे स्वर्गीय पिताजी ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी दुर्भाग्यवश अग्निपथ के इस सुखद पड़ाव को देखने के लिये जीवित नहीं हैं परंतु उनकी सूक्ष्म उपस्थिति सदैव हमारे साथ है। अलौकिक संसार में
वह जहाँ कहीं भी होंगे हमारी सफलता से प्रसन्न जरूर होंगे।
1914 में उत्तरप्रदेश के जिला में रायबरेली के छोटे से गाँव चंदेलनगर में जन्में पूज्य पिताजी ने मात्र 20 वर्ष की उम्रमें ही कलकत्त से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद जीवनभर दूसरों के समाचारवपत्रों में ही बतौर संपादक सेवा की।
जीवन के उत्तरार्ध में 1 दिसंबर 1989 को वह स्वर्णिम दिन आया जब पूज्य पिताजी स्वयं के समाचार पत्र दैनिक अग्निपथ के मालिक/मुद्रक/प्रकाशक बने। सचमुच वह दिन पूरे चंदेल परिवार के लिये स्वर्णिम दिन था। एक ओर पिताजी के सपने को साकार करने का दिन था दूसरी ओर उनकी लोह लेखनी के कायल असंख्य पाठकों के लिये भी वह दिन प्रसन्नता का था।
50 हजार की एक सैकेण्ड हेंड सिलैण्डर मशीन से शुरु हुआ अग्निपथ का यह सफर शीटफेड आफसेट के बाद अत्याधुनिक वेब कलर ऑफसेट तक पहुँच चुका है।
32 वर्षों में हमने बहुत पाया है तो उससे अधिक खोया भी है। इन बीते सालों में हमने हमारे संस्थापक पिताजी के अलावा, मातोश्री, ज्येष्ठ भ्राता एवं अन्य परिजनों के अलावा अग्निपथ की इस यात्रा में कंधे से कंधा मिलाकर हमारे संघर्ष के दिनों के साथी शाजापुर के जिला संवाददाता मरहूम न्याजुद्दीन कुरैशी साहब, सुसनेर के रामचंद्र लोधी जी, धार के युवा साथी धीरेन्द्र तोमर जी के अलावा अग्निपथ मुख्यालय पर कार्य करने वाले हमारे पारिवारिक सदस्य के समतुल्य जगदीश सांकलिया को हमने खोया है।
काल के प्रवाह में 32 वर्ष बहुत लंबा समय होता है। पिताजी की पीढ़ी के बाद हम भाइयों की पीढ़ी और हमारे पुत्रगण अग्निपथ की इस यात्रा में अब सहभागी हैं।
कहा जाता है कि किसी शिशु को 9 माह गर्भ में रखने के बाद जितनी प्रसव पीड़ा महिलाओं को शिशु को जन्म देने में होती है शायद उतनी हीलपीड़ा किसी दैनिक समाचार पत्र के प्रतिदिन प्रकाशन में होती है।
अग्निपथ का प्रकाशन जब आरंभ हुआ था तब सुदूर अंचल में बैठा संवाददाता हस्त लिखित समाचारों को लिफाफे में रखकर बसों के माध्यम से उज्जैन स्थित बस स्टैण्ड पहुँचाता था, जहाँ समाचार पत्रों के ताला लगे लेटर बॉक्स से दिन में 4-5 बार समाचार पत्रों के लिफाफे निकाले जाते थे। फिर हस्तलिखित समाचारों का पुन: लेखन कर कपोजिंग में दिया जाता था।
वह ‘लेटर प्रेस’ का जमाना था अब समय के साथ सब-कुछ बदल गया है अब ना तो संवाददाता हाथों से लिखते हैं ना ही बस से लिफाफे आते हैं। अब सुदूर ग्रामीण अंचलों में बैठे संवाददाता भी सीधे ई-मेल करते हैं। फोटो छापना तो उस समय बड़ा ही दुष्कर कार्य था। फोटो के पहले लेड धातु से ब्लॉक बनाये जाते थे। फिर वह छपने योग्य होते थे।
संचारक्रांति के इस युग में अब सब कुछ मुट्ठी में है। बस एक एंड्रायड फोन से सब कुछ किया जा सकता है। फोटो, ई-मेल इत्यादि। आधुनिक ‘सी टी पी’ मशीन आ जाने के बाद पेस्टिंग प्लेट एक्सपोज करने का झंझट ही खत्म हो गया। सीधे कंप्युटर से पेज मशीन पर और प्लेट तैयार।
बीते दो वर्षों के दौरान समाचार पत्रों की बिक्री पर
बहुत ज्यादा असर आया है दैनिक पत्रों के ई-पेपर और पीडीएफ वर्जन आने से पाठक तो सोशल मीडिया पर अनंत हो गये हैं पर बिक्री घटी है। देश की आर्थिक स्थिति प्रभावित होने के कारण विज्ञापन वाले पक्ष पर भी प्रभाव पड़ा है।
खैर आधुनिकता के साथ चुनौतियां भी सामने आयेगी। मुझे पूर्ण विश्वास है 32 वर्ष के अग्निपथ को हमने जिस मेहनत से पार कर विकास का यह मुकाम हासिल किया है वह अग्निपथ की टीम, हमारे पाठक, विज्ञापनदाताओं, शुभचिंतकों, वितरक भाइयों, संवाददाताओं के सहयोग से जारी रहेगा।