पूज्य पिताजी और दैनिक अग्निपथ के संस्थापक मूर्धन्य पत्रकार ठा. शिवप्रताप सिंह जी को ब्रह्मलीन हुए आज ठीक 27 वर्ष हो गये हैं। भले ही वह भौतिक रूप से इस दुनिया में नहीं है परंतु उनकी सूक्ष्म उपस्थिति हर पल हमारे साथ है।
अग्निपथ मुख्यालय के कण-कण में उनकी मौजूदगी को महसूस किया जा सकता है अग्निपथ भवन मात्र ईंट, सीमेन्ट, सरिये से ही निर्मित नहीं है। इसमें कर्मयोगी पूज्य पिताजी के स्वेद कणों का भी महती योगदान है। जीवन भर यायावरी जीवन बिताने के बाद सन् 1977 से 6 घी मंडी दौलतगंज उज्जैन स्थित इस भूमि को अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना था।
यह कहना ज्यादा सही होगा कि धरती पर आये कर्मयोगी ने अपनी तपस्या के लिये इस भूमि का चयन किया, मात्र 17 रुपये प्रतिमाह के किराये पर लिये गये इस स्थान पर पहले मेरे ज्येष्ठ भ्राता स्वर्गीय प्रभात कुमार चंदेल प्रिन्टिग प्रेस का व्यवसाय किया करते थे। दैनिक भास्कर (उज्जैन संस्करण) के संपादक रहते हुए पिताजी का तात्कालीन मालिक सेठ द्वारकाप्रसाद जी अग्रवाल से वैचारिक मतभेद होने के कारण विवाद हो गया और पिताजी ने दैनिक भास्कर को अलविदा कह दिया।
पिताजी के दोस्त इंदौर निवासी नरेशचंद जी चेलावत ने पिताजी से साझेदारी में सांध्यकालीन समाचार पत्र निकालने का प्रस्ताव रखा जिसे पिताजी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। आपसी सहमति से यह तय हुआ कि पूर्व से ही नरेशचंद जी चेलावत द्वारा निकाले जा रहे साप्ताहिक समाचार पत्र अग्निबाण को ही सांध्य दैनिक का रूप दिया जाए।
सन् 1977 में प्रकाशित समाचार पत्र अग्निबाण का मूल्य 50 पैसे हुआ करता था पिताजी ने पूरे उज्जैन शहर में घूम-घूम कर ग्राहकों से 45/- रुपये लेकर उन्हें 3 माह के लिये अग्निबाण का ग्राहक बनाया और इस तरह सांध्य दैनिक अग्निबाण के प्रकाशन की शुरुआत हुयी।
अग्निबाण के चार पेज इंदौर से छपकर आते थे और दो पेज उज्जैन में एक छोटी सी 10&15 की टे्रडल मशीन पर छपते थे। अग्निबाण का इंदौर में प्रकाशन शाम को और उज्जैन में सुबह होता था। यह अनवरत सिलसिला अग्निबाण के संस्थापक स्वर्गीय नरेशचंद जी चेलावत की मृत्यु पर्यन्त चलता रहा, उनकी मृत्यु पश्चात उनके पुत्र ने अग्निबाण की बागडोर संभाली और पिताजी के संपादकीय को लेकर आये दिन विरोध होने लगा।
पिताजी ने इस कारण अग्निबाण को भी अलविदा कहा और इसी तपस्थली 6 घी मंडी दौलतगंज उज्जैन से 1 दिसंबर 1989 को स्वयं के दैनिक समाचार पत्र अग्निपथ का प्रकाशन प्रारंभ किया जिसके मालिक/मुद्रक/प्रकाशक/संपादक वह स्वयं थे। विरासत के रूप में शहर के जो पाठक एवं ग्रामीण संवाददाता अग्निबाण से संबंद्ध थे वह सब के सब अग्निपथ से जुड़ गये और कॉरवां बढ़ता गया।
17/- रुपये मासिक किराये वाला भवन अब बड़े परिसर में तब्दील हुआ तो स्वाभाविक था किराया भी 17 की जगह 1700/- हो गया। टे्रडल मशीन की जगह सिलैण्डर मशीन ने ले ली। अग्निबाण से अलग हुए थे इसी कारण निकाले जाने वाले दैनिक समाचार पत्र का नाम ‘अग्निपथ’ रखा गया। पिताजी द्वारा प्रारंभ किये गये दैनिक अग्निपथ ने मालवांचल में अपने लिये एक नयी जमीन बनायी और नागरिकों के दिलों में एक नया मुकाम स्थापित किया।
समाजवादी विचारधारा का होने के कारण अग्निपथ शोषितों, पीडि़तों की बुलंद आवाज बनकर उभरा और अनाचार, अत्याचार के विरुद्ध सशक्त भूमिका में सामने आया। देखते ही देखते अग्निपथ उज्जैन में वर्षों से प्रकाशित अन्य दैनिकों की तुलना में सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला दैनिक समाचार पत्र बन गया।
सिलैण्डर मशीन से शुरू हुआ सफर वेब ऑफसेट तक पहुँचा। किराये का भवन निजी हो गया, कच्चे मकान की जगह तीन मंजिला बुलंद इमारत ने ले ली है। अग्निपथ के लिये यह गर्व की बात है कि पूज्य पिताजी के पुण्य प्रताप से इतना व्यवस्थित और शहर के ह्रदय स्थल में स्थित सुंदर कार्यालय किसी अन्य समाचार पत्र के पास नहीं है।
पिताजी ने इसे दैनिक समाचार पत्र के कार्यालय के अलावा पत्रकारिता की पाठशाला भी बनाया। इस तपस्थली से निकलकर अनेक पत्रकार देशभर में बड़े संस्थानों में कार्यरत होकर अग्निपथ व उज्जैन का नाम गौरवान्वित कर रहे हैं।
वर्तमान में ‘अग्निपथ’ इस बात के लिये भी अपना सीना चौड़ा कर सकता है कि जितने अनुभवी और कुशल पत्रकार साथियों की टीम आज अग्निपथ के पास है उतनी किसी अन्य समाचार पत्र के पास नहीं।
अग्रज अनिल सिंह चंदेल के नेतृत्व में प्रशासनिक क्षेत्र में प्रशांत अंजाना, नगर निगम में हेमंत सेन, अपराध रिपोर्टिंग में ललित जैन और जितेश सिंह, महाकाल व अन्य धार्मिक कार्यक्रमों के लिये प्रबोध पांडे, राजनैतिक दलों की रिर्पोटिंग के लिये राजेश रावत जैसे कद्दावर पत्रकार हैं वहीं संपादकीय विभाग में भी हरिओम राय, जयप्रकाश शर्मा, नरेन्द्र प्रजापति, आकाश तंवर, बबलू यादव जैसे अनुभवी लोगों की दक्ष टीम है। चंदेल परिवार की तीसरी पीढ़ी के उदय, चंद्रभान व अभिमन्यु चंदेल, अभिषेक बैस ने प्रबंधन की कमान अपने हाथों में ले रखी है।
हर पुत्र के लिये तो उनके पिता सदैव आदर्श रहते ही हैं और दुनिया के सबसे बड़े नायक भी परंतु हम भाइयों को अपने पिता मूर्धन्य पत्रकार ठाकुर शिवप्रताप सिंह की संतान होने का इसलिये भी गर्व है कि हम एक ऐसे कर्मयोगी पिता की संतान हैं जिसने पत्रकारिता धर्म का निर्वाह करने के लिये और पत्रकारिता के मूल्यों को कायम रखने के लिये कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
लोह लेखनी के धनी, मूर्धन्य पत्रकार, अग्निपथ के संस्थापक ठाकुर शिवप्रताप सिंह जी की 28वीं पुण्यतिथि पर दैनिक अग्निपथ एवं चंदेल परिवार की ओर से शत्-शत् नमन।