बसंत पंचमी: महाकाल से हुई फाग उत्सव की शुरुआत, भस्मारती में पीले वस्त्र और सरसों चढ़ाई

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सांदीपनि आश्रम में हुआ पाटी पूजन, परीक्षा में सफलता के लिए बच्चों ने चढ़ाई स्याही

उज्जैन। शनिवार को महाकाल मंदिर में बसंत पंचमी पर्व का उत्साह साफ़ दिखाई दे रहा था। हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को देवी मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। ग्रंथों के अनुसार इस दिन देवी मां सरस्वती प्रकट हुई थीं। तब देवताओं ने देवी स्तुति की। स्तुति से वेदों की ऋचाएं बनीं और उनसे वसंत राग। इसलिए इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। महाकालेश्वर मंदिर से आज से फाग उत्सव की शुरुआत भी हुई। जोकि होली तक सतत चलती रहेगी।

महाकालेश्वर मंदिर में प्रत्येक त्यौहार सबसे पहले मनाने की परम्परा है। यहां शनिवार सुबह तीन बजे भस्मारती में बाबा महाकाल को पीले द्रव्य से स्नान कराया गया। इसके बाद पीले चन्दन से आकर्षक श्रंृगार कर सरसों और गेंदे के पीले फुल अर्पित किए गए। पीले वस्त्र पहनाकर विशेष आरती की गई और फिर पीले रंग की मिठाई का महाभोग लगाया गया।

सांध्याकालीन आरती में भी भगवान का आकर्षक श्रृंगार कर फाग उत्सव के तहत गुलाल अर्पित किया गया। पुजारी दिलीप गुरु ने बताया कि आज से होली की शुरुआत मानी जाती है। भगवान को प्रतिदिन गुलाल चढ़ाया जाएगा। जोकि होली तक सतत जारी रहेगा।

सरस्वती माता को सिंदूर का चोला

कवि कालिदास की नगरी उज्जैन में राजा विक्रमादित्य के समय से विराजित महाकालेश्वर मंदिर परिसर में सरस्वती देवी का मंदिर है। मंदिर महाकाल परिसर में बाल मस्त विजय हनुमान मंदिर में ही विराजित है। जिसके दर्शन कर भक्त विद्या की देवी की आराधना करते हैं।

पुजारी जानी गुरु ने बताया कि यह विश्व की एकमात्र देवी सरस्वती की प्रतिमा है जिस पर सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है। भक्त यहां पर स्व विद्या प्राप्त करने के उद्देश्य से आते हैं और सिर पर सिंदूर का टीका लगाते हैं।

सांदीपनि आश्रम में बच्चों ने स्लेट पर लिखे मंत्र

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बसंत पंचमी के अवसर पर श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली महर्षि सांदीपनि आश्रम को विशेष तौर पर सजाया गया। यहां भगवान कृष्ण और सुदामा और माता सुश्रुसा को पीले वस्त्र धारण कराए गए। इसके साथ ही यहां पीली सरसों को भी अर्पित किया गया। पुजारी पं. रूपम व्यास ने बताया कि दरअसल भगवान श्रीकृष्ण ने सांदीपनि आश्रम में 64 दिन में 64 विद्या और 16 कलाओं का ज्ञान अर्जित किया था। इसलिए यह विद्या ग्रहण करने का केंद्र है ।

यह परंपरा है कि बसंत पंचमी के दिन बच्चे यहां पर स्लेट पर मंत्र लिखते हैं। उसके बाद ही उनकी स्कूली शिक्षा शुरू होती है। दरअसल यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां गुरु और गोविंद दोनों उपस्थित हैं।

परीक्षा में सफलता के लिए स्याही चढ़ाई

धार्मिक नगरी उज्जैन में एक मंदिर ऐसा भी है जहां पर बसंत पंचमी के पर्व पर विद्यार्थियों द्वारा स्याही चढ़ाकर उनका पूजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन माता सरस्वती को स्याही चढ़ाने से सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है।

जानकारी देते हुए मंदिर के पुजारी अनिल कुमार मोदी ने बताया कि यह मंदिर मुगल काल से भी काफी पुराना है। वहीं मंदिर में स्थापित मूर्ति भी ऐतिहासिक है। यह विश्व का एकमात्र मंदिर ऐसा है जहां पर मां सरस्वती की मूर्ति काले पत्थर की बनी हुई है।

इसके ऐतिहासिक महत्व की बात करें तो बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की इस मूर्ति पर स्याही चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है और सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है। यह काफी पुरानी परंपरा है की स्कूल में पढऩे वाले वाले बच्चे बसंत पंचमी के पर्व पर मां सरस्वती को स्याही चढ़ाते हैं। ऐसी मान्यता है कि स्याही चढ़ाने से विद्यार्थियों को परीक्षा में अच्छे अंक की प्राप्ति होती है।

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