सावधान भारतीय रेल यात्रियों, आने वाले दिनों में अब रेल यात्रा करना इतना आसान नहीं रहने वाला है। भयानक आर्थिक संकट से जूझ रही केन्द्र सरकार अन्य सार्वजनिक उपक्रमों की तरह भारतीय रेल को भी दाँव पर लगा चुकी है।
यातायात के क्षेत्र में देश की प्राणवायु भारतीय रेल, जिसकी शुरुआत 16 अप्रैल 1853 को मुम्बई स्थित शिवाजी टर्मिनल से ठाणे के बीच 34 किलोमीटर लंबा मार्ग भांप के इंजन के साथ तय करके हुई थी और 400 यात्री इन ऐतिहासिक क्षणों के साक्षी बने थे। 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के 4 वर्षों बाद सन् 1951 में भारतीय रेलवे का राष्ट्रीयकरण हुआ था। भारतीय रेल भारत की राष्ट्रीय प्रणाली है जो कि रेल मंत्रालय द्वारा संचालित है और इसका उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण को बढ़ावा देना है।
अमेरिका, चीन, रूस के बाद 168 वर्ष पुरानी भारतीय रेलवे का 1 लाख 23 हजार 542 किलोमीटर लंबे रेल ट्रेक के साथ दुनिया में चौथा नंबर है। 13 लाख कर्मचारियों के साथ दुनिया में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला दुनिया का नौवां सबसे बड़ा उपक्रम है। हर भारतीय को इस बात पर भी गर्व होना चाहिये कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा सहयोग भारतीय रेलवे का ही है।
भारतीय रेल नेटवर्क इतना बड़ा है कि पटरियों से पृथ्वी को एक बार घेरा जा सकता है। भारतीय सिविल अभियांत्रिकी का कमाल है कि विश्व का सबसे ऊँचा पुल चिनाब नदी पर बन रहा है। भारतीय रेलवे का यह पुल पेरिस के एफिल टॉवर से भी ऊँचा है। वर्तमान में भारतीय रेलवे के पास 7500 रेलवे स्टेशनों की धरोहर है और प्रतिदिन 13,523 टे्रने चलती हैं। वर्ष 2020 में 1,89,906 करोड़ के राजस्व अर्जित का लक्ष्य भारत सरकार द्वारा रखा गया था। 138 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत के 231 लाख यात्रियों को प्रतिदिन और 33 लाख टन माल की ढुलाई रेलवे करती है।
किसी क्षेत्र या उद्योग के स्वामित्व को सरकारी हाथों से निजी हाथों को सौंपा जाता है तो यह निजीकरण कहलाता है। भारतीय रेलवे को अगले 12 वर्षों की योजनाओं को अमली जामा पहनाने और माँग और आपूर्ति में समानता के लिये वर्तमान में चल रही लगभग 13 हजार टे्रनों के अलावा 7000 और नई टे्रनों के संचालन की जरूरत होगी इसके लिये 50 लाख करोड़ रुपयों की आवश्यकता होगी जो कि वर्तमान सरकार के बूते की बात नहीं है।
इसी वजह से भारत सरकार ने निजीकरण की शुरुआत ‘तेजस’ ट्रेन के रूप में कर दी है। सरकार ने 109 रेल मार्गों पर 151 यात्री ट्रेनों को निजी हाथों में देने के लिये आमंत्रण प्रस्ताव मंगवाये हैं। 16 कोचों की यह निजी टे्रन 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ेगी और इन 151 यात्री टे्रनों के संचालन की जवाबदारी आगामी 35 वर्षों के लिये निजी हाथों को सौंपी जायेगी।
अभी तक रेलों का प्रबंधन और नियंत्रण भारतीय रेलवे ही करता था परंतु अब निजी संस्थाएँ करेंगी। इसके एवज में सरकार राजस्व में हिस्सेदारी, ऊर्जा शुल्क, निर्धारित ढुलाई शुल्क प्राप्त करेगा। निजीकरण का सबसे ज्यादा नुकसान सरकारी नौकरियों पर पड़ेगा। नौकरियां खत्म होगी, निजी व्यक्ति कम कर्मचारियों से ज्यादा काम करवायेगा। निजी कंपनी भयंकर किराया वृद्धि करेंगे जो गरीब व मध्यम वर्ग बर्दाश्त नहीं कर पायेगा।
अंबानी, अडानी, टाटा कम उपयोग में आने वाले मार्गों को सबसे पहले बंद करेंगे, जिस कारण सुदूर हिस्से में रहने वाला भारतीय कैद होकर रह जायेगा और उसके मौलिक अधिकारों का भी हनन होगा। देश की अर्थव्यवस्था को भले ही फायदा हो परंतु भारतीय रेलवे के निजीकरण से देश के छोटे से फायदे के लिये देश की बहुत बड़ी जनसंख्या का नुकसान होगा।
भारत के गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों की ऐसी ही स्थिति हो जायेगी, जैसी वर्तमान में शासकीय और निजी स्कूलों की है। शासकीय स्कूल की फीस कम है तो पढ़ाई का स्तर नहीं और निजी विद्यालयों में पढ़ाई का स्तर अच्छा है तो वहाँ फीस देने लायक स्थिति नहीं है।
निजीकरण के बाद सरकारी टे्रनें सिग्नल के लिये खड़ी रहेंगी और निजी टे्रनों को पहले सिग्नल मिलेंगे। दुर्घटना के समय स्थिति और बदत्तर होगी, निजी कंपनियां अपने-अपने क्षेत्र के विवाद में उलझेंगी। सरकार कह रही है निजीकरण से टे्रनें लेट नहीं होगी, साफ-सफाई बेहतर होगी।
इसी भारत ने आपातकाल में भारतीय टे्रनों को समय पर चलते देखा है और साफ-सफाई भी बेहतर देखी है। जब निजी हाथ नई तकनीक अपना सकते हैं तो भारतीय रेल क्यों नहीं? भारत सरकार ने अभी तो 151 टे्रनें ही निजी हाथों में देने का निर्णय किया है परंतु शनै: शनै: भारतीय रेलवे की जगह देश में अंबानी रेलवे, अडानी रेलवे, टाटा रेलवे के दर्शन अवश्यंभावी है। इंग्लैंड जैसे आधुनिक देश में भी वहाँ की सरकार ने ट्रेनों को निजी हाथों में सौंपा था परंतु वहाँ की सरकार इसे पुन: सरकारी हाथों में लेने के लिये गंभीरतापूर्वक विचार कर रही है। फिर भारत सरकार को भी फायदे के उपक्रम को जो भारतीयों की लाइफ लाइन है उसे निजी हाथों में नहीं सौंपना चाहिये। इसका नुकसान भारत की आने वाली पीढ़ी उठायेगी।