शाही सवारी परंपरागत मार्ग से निकली

कोरोना संक्रमण के चलते पहली बार 2 घंटे के पहले मंदिर पहुंची सवारी, जिला प्रशासन ने मात्र औपचारिकता पूरी की

उज्जैन, अग्निपथ। भगवान महाकाल की कार्तिक-अगहन मास की अंतिम और शाही सवारी चुनिंदा कहारों और पुजारियों के बीच महाकालेश्वर मंदिर से निकाली गई। शाही सवारी का कोरोना ग्रहण के चलते इस बार सवारी आम दिनों में निकलने वाली सवारी की ही तरह रही। हालांकि इसका रूट पंरपरागत ही रहा, लेकिन सवारी में कोई भी तामझाम शामिल नहीं किया गया था। कलेक्टर आशीषसिंह और प्रशासक नरेन्द्र सूर्यवंशी पूजन में शामिल नहीं हुए।

शाम 4 बजे सभामंडप में भगवान महाकाल का विधिविधान से पूजन अर्चन किया गया। हर बार की शाही सवारी में जिला कलेक्टर और प्रशासक पूजन अर्चन करते हैं, लेकिन इस बार कोई भी अधिकारी पूजन अर्चन में शामिल नहीं हुआ। केवल मंदिर के सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल और प्रतीक द्विवेदी सभामंडप में मौजूद रहे। जानकारी लगी है कि दोनों ही अधिकारी टीएल बैठक ले रहे थे।

सवारी के मंदिर से बाहर निकलने पर गार्ड आफ आनर स्वरूप पुलिस बैंड ने भजनों की समधुर लहरियां बिखेरीं। यहां से पालकी परंपरागत मार्ग महाकाल मंदिर, गुदरी चौराहा, बक्षी बाजार, कहारवाड़ी, रामघाट पहुंची। रामघाट पर भगवान महाकाल के पैर मां शिप्रा के जल से पखारे गए। रामघाट पर भी भगवान महाकाल की एक झलक देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा हो गए थे।

यही हाल दत्त अखाड़ा घाट का भी रहा। यहां पर भी सोमवती स्नान को आए श्रद्धालुओं और शहर के श्रद्धालुओं का जमावड़ा रहा। पूजन अर्चन के पश्चात सवारी फिर से ढाबा रोड, तेलीवाड़ा चौराहा, कंठाल चौराहा, सती गेट, छत्री चौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार, गुदरी चौराहा, महाकाल घाटी से होती हुई महाकालेश्वर मंदिर पहुंची। कोरोना संक्रमण के चलते मार्गों में किसी तरह के भी मंच आदि से स्वागत की व्यवस्था को प्रतिबंधित किया हुआ था। श्रद्धालु अपने घरों की छतों से ही भगवान महाकाल पर पुष्प वर्षा करते रहे। सवारी का स्वरूप छोटा होने के चलते पालकी को तेजी से कहारों द्वारा चलाया जा रहा था।

महाकाल चौराहे पर फूलों की छीनाझपटी

महाकाल पालकी जैसे ही मंदिर से निकलकर चौराहे पर पहुंची, वैसे ही गुलाब के फूलों की किसी श्रद्धालु ने वर्षा कर दी। पालकी जब वहां से रवाना हुई तो मार्ग के दोनों ओर खड़े श्रद्धालु सडक़ पर गिरे फूल उठाने के लिए लपक पड़े। जिला प्रशासन ने हालांकि पुष्प वर्षा पर कोरोना के चलते प्रतिबंध लगाया हुआ है, लेकिन इसके बावजूद श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था को डिगने नहीं दिया।

सती गेट पर जोरदार स्वागत

सोमवती अमावस्या के चलते इस बार स्नान दान की परंपरा निभाने के लिए कम संख्या में श्रद्धालु रामघाट और शिप्रा के अन्य घाटों पर पहुंचे थे। जिसके चलते गोपाल मंदिर, छत्री चौक आदि पर भी आम दिनों की ही तरह भीड़ थी। सोमवती अमावस्या के चलते जिस प्रकार की भीड़ रहती है वह आज नदारद दिखी। लेकिन शाही सवारी को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा मार्गों के दोनों ओर देखा गया। सवारी जैसे ही सती गेट पर पहुंची, यहां पर भगवान महाकाल की शाही सवारी का जोरदार स्वागत किया गया।

केवल 1.55 घंटे में सवारी मंदिर के अंदर

जिला प्रशासन ने इस बार शाही सवारी को आम सवारी की ही तरह निकाला। कोरोना संक्रमण के चलते खौफजदा जिला प्रशासन ने इस बार न तो बैंडबाजे और न ही भजन मंडलियों को शाही सवारी में शिरकत करने की अनुमति दी थी। शाही सवारी को देखकर ऐसा लग ही नहीं रहा था कि यह शाही सवारी है। जिला प्रशासन ने परंपरा न टूटे इसको लेकर शाही सवारी निकालने के कर्तव्य का निर्वहन किया। पालकी को इतनी तेजी से निकाला गया कि केवल 1.55 घंटे में सवारी मंदिर के अंदर संध्या पूजन के लिए पहुंच चुकी थी।

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