डूब मरो चुल्लू भर पानी में, गंदे पानी में करवा दिया सोमवती अमावस्या स्नान

जिस सोमवती अमावस्या का हिंदु धर्म में विशेष महत्व है और जिसकी गाथा अनादि काल से सुनी जा रही हो, जिस सोमवती अमावस्या की महिमा का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। बताया जाता है कि भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को सोमवती अमावस्या का महत्व समझाते हुए कहा था कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ और सभी दु:खों से मुक्त होता है। ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

देश की अन्य पवित्र नदियों की तरह हमारे शहर की प्राणवायु, मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदी में भी सोमवती स्नान का विशेष महत्व है। देश भर के श्रद्धालु सोमवती अमावस्या पर स्नान करने उज्जैन आते हैं और स्नान पश्चात शंकर जी के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। वैसे भी हमारी क्षिप्रा नदी में स्नान के महत्व का विवरण पुराणों में भी अंकित है।

एक कथा अनुसार एक समय पवित्र गंगा भी अपवित्र हो गई थी। गंगा को भी स्वयं को शुद्ध करने के लिये क्षिप्रा में स्नान करना पड़ा था (तब क्षिप्रा का प्रवाह अन्य दिशा में था) और जिस स्थान पर गंगा ने क्षिप्रा में स्नान करके स्वयं को पवित्र किया था उस स्थान को आज ‘नीलगंगा’ क्षेत्र के नाम से जाना जाता है और वहाँ आज भी मौजूद जल का स्त्रोत इस बात की प्रामणिकता है।

गंगा जैसी नदी को पवित्र करने वाली मोक्षदायिनी क्षिप्रा आज अपनी दुर्दशा पर कराह रही है उसी तरह जिस तरह धृतराष्ट्र के शासन में दौपद्री का चीरहरण होता रहा और आदरणीय और सम्मानीय किंकत्र्तव्यविमूढ़ होकर बैठे रहे। धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे पर चूँकि उसकी मौजूदगी में दौपद्री का चीरहरण हुआ इसलिये अपराधी तो वह भी हुए।

उज्जैन के लिये भी आज का दिन कुछ क्षिप्रा के चीरहरण जैसा ही रहा इस शहर के तमाम राजनैतिक, सामाजिक, प्रशासनिक कर्णधारों की मौजूदगी में देश भर से आये श्रद्धालुओं ने सोमवती कुंड में क्षिप्रा के पवित्र जल के स्थान पर इंदौर से आ रही मल-मूत्र युक्त खान नदी के गंदे पानी में स्नान किया। चूँकि कोरोना के कारण श्रद्धालुओं की संख्या काफी कम थी परंतु जितने भी आये थे उनकी धार्मिक भावनाओं से हमने खिलवाड़ और उन्हें आहत किया है।

क्षिप्रा नदी को प्रवाहमान और शुद्ध रखने के लिये जनता के गाढ़े खून-पसीने की कमायी का दुरुपयोग हुआ है, कभी नर्मदा क्षिप्रा लिंक योजना के नाम से तो कभी कान्ह डायवर्शन योजना के नाम से। हम पहले भी इस कालम में लिख चुके हैं कि जलसंसाधन विभाग के उन अधिकारियों, कर्मचारियों को सजा दी जानी चाहिये जिन्होंने असफल, बुरी तरह से फेल कान्ह डायवर्शन योजना बनाई थी।

सोमवती अमावस्या के ठीक दो दिन पहले भूखी माता के आगे कर्कराज मंदिर के पास कान्ह डायवर्शन योजना का 80 इंच व्यास का (लगभग साढ़े छह फुट) पाईप फूट गया जिसने जल संसाधन विभाग के अदूरदर्शी कार्य का भंडाफोड़ करके पाप का घड़ा फोड़ दिया। कान्ह नदी का केमिकल युक्त लाल रंग का दूषित पानी सीधा नृसिंह घाट पर क्षिप्रा में मिल गया जिसने पूरी नदी को प्रदूषित कर दिया।

यही गंदा पानी रामघाट और सुनहरी घाट तक पहुँचा जहाँ से मोटरों द्वारा सोमतीर्थ को भरा गया और कान्ह के इसी दूषित पानी में बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं ने स्नान किया। पिछले तीन दिनों से कान्ह नदी का गंदा पानी क्षिप्रा में मिल रहा है परंतु ना तो जलसंसाधन विभाग में बैठकर लाखों की तनख्वाह लेने वाले अधिकारियों ने सुध ली और ना ही प्रशासनिक अधिकारियों ने और ना ही जनप्रतिनिधियों ने। आने वाले दो-तीन दिनों में कान्ह के रसायन युक्त दूषित पानी से क्षिप्रा की सैकड़ों मछलियों की असमय मौत भी तय है।

सोमवती अमावस्या का स्नान संपन्न हो गया है परंतु आज जो महापाप जिन लोगों की बदौलत भी हुआ है उन्हें ईश्वर की अदालत कभी माफ नहीं करेगी। जो अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन नहीं कर पा रहे हो उन्हें डूब मरना चाहिये चुल्लू भर पानी में।
जय-हिंद

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