पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र की साक्षी में होगी होलिका की पूजा, पाताल वासिनी भद्रा देगी शुभ फल
उज्जैन, अग्निपथ। पंचांग की गणना के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर होलिका की पूजन की मान्यता है। इस बार होलिका का महापर्व 17 फरवरी गुरुवार को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र शूल योग वणिज उपरांत बव करण तथा कन्या राशि के चंद्रमा की साक्षी में आ रही है।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बावाला ने बताया कि धर्म शास्त्रीय मान्यता के आधार पर देखें तो होलिका की पूजन का समय प्रदोष काल का माना जाता है। प्रदोष काल का समय शाम 6.40 से आरंभ होगा। ऐसी मान्यता है कि पारिवारिक सुख शांति तथा संतान के रोग दोष के निवारण के लिए एवं दीर्घायु के लिए होलिका का पूजन करना चाहिए।
भद्रा के भेद से पूजन का दोष नहीं
भद्रा का अलग-अलग वास अलग-अलग प्रकार की स्थिति को दर्शाता है जिसे स्वर्ग में पाताल में पृथ्वी पर भद्रक के वास होने से क्या फल प्राप्त होता है आदि की स्थिति कार्य की सफलता से निर्भर करती है। चंद्र राशि अनुसार भद्रा का निवास इस प्रकार है- मेष वृषभ मिथुन तथा वृश्चिक राशि के चंद्रमा के होने पर भद्रा स्वर्ग लोक में रहती है।
कन्या तुला धनु और मकर का चंद्रमा होने पर पाताल में रहती है। कुंभ मीन कर्क तथा सिंह का चंद्रमा होने पर भद्रा भूलोक अर्थात पृथ्वी पर रहती है। भूलोक वासिनी में वर्जित मानी गई है। स्वर्ग तथा पाताल लोक वासिनी भद्रा शुभ मानी गई है। स्वर्ग में भद्रा हो तो धनधान्य की उपलब्धि होती है तथा पाताल लोक वासिनी भद्रा में धन का लाभ होता है।
बुध गुरु आदित्य का योग विशेष फलकारी
पं. डिब्बावाला के अनुसार पंचांग की गणना के अनुसार कुंभ राशि पर सूर्य बुध गुरु का गोचर रहेगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार देखे तो सूर्य का शनि राशि पर परिभ्रमण साधना विशेष के लिए उत्तम बताया गया है। वहीं यदि बुध व गुरु का भी गोचर का इस प्रकार से युति कृत हो तो वह विशेष लाभकारी बताया जाता है।
यह भी कहा जाता है कि सूर्य उपासना, गणेश उपासना और नारायण की उपासना का यह विशेष दिन है। इस दृष्टि से इन तीनों की संयुक्त साधना का अनुक्रम स्थापित किया जा सकता है। यह करने से अनुकूलता के साथ-साथ मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।