झाबुआ, अग्निपथ। सीख रहा हूँ मैं भी अब मीठा झूठ बोलने का हुनर, कड़वे सच ने हमसे, ना जाने, कितने अज़ीज़ छीन लिए।
इन पंक्तियों की गहराई को समझा जावे तो झुठ के सहारे ही सही लोग अपना काम बना ही लेते है । इसी कडी में देखा जावे तो झूठ की बुनियाद ओर जिले के इतिहास से छेड़छाड़ कर भगोरिया से पहले होलाष्टक से एक दिन पूर्व जिले का जन्मोत्सव उर्फ झाबुआ उत्सव मनाने में जिला प्रशासन की नाक काट गयी। हालांकि आयोजन सुबह से रात्रि तक का जिले वासियो के लिए था, किंतु आयोजन का पूरा सरकारीकरण हो गया।
कुछेक चाटुकारों,स्वार्थी संगठनो के पदाधिकारियों के साथ जिले की सरकारी मिशनरी ने झाबुआ उत्सव मना कर कर्तव्य की इतिश्री कर ली। आश्चर्य तो यह कि झाबुआ उत्सव में जिले के प्रभारी मंत्री इंदरसिंह परमार तो शामिल हुए, किन्तु आमंत्रण कार्ड तथा कवि सम्मेलन पोस्टर में सांसद व विधायक के फोटो प्रोटोकॉल के तहत नही होने से दोनो ने आयोजन से दूरी बना कर अनुपस्थिति दर्ज करवाते हुए सार्वजनिक रूप से विरोध दर्ज करवा दिया।
आयोजन की विफलता का आलम यह था कि राजवाड़ा से शुरू हुआ झाबुआ उत्सव जो डीजे के साथ लोक गायक विक्रम चौहान के गीतों पर निकला जिसमे स्कूली,छात्रावासों की बच्चियों सहित आंगनवाड़ी कार्यकर्ता,सहायिका औेर चंद चाटुकारों ने शिरकत करते हुए कलेक्टर,एसपी के समक्ष अपना स्वार्थ सिद्ध करने में कोई कसर नही छोड़ी।
आयोजन स्थल पर पांडाल की कुर्सिया खाली थी तो लगाये गए स्टाल भी विरानी भरे दिखाई दे रहे थे। जैसे तैसे दिन का कार्यक्रम तो कलेक्टर,एसपी ने अपने सरकारी अमले के सहारे प्रभारी मंत्री के समक्ष सफलता की वैतरणी पार करने की कोशिश करली । किन्तु रात्रि में आयोजित कवि सम्मेलन में जहाँ कलेक्टर,एसपी,सहित तमाम अधिकारी विभिन्न विभागो के कर्मचारी मौजूद थे, में अचानक बनी जूतम पैजार की स्थिति ने सरकारी अमले की साँसे फुला दी ।
दरअसल हुआ यूं कि एक भाजपा नेता ने झाबुआ उत्सव के रंग मे भंग डाल दी। जिले मे (नेता) के नाम से ख्यात शख्स ने आयोजन मे हुडदंग मचा दिया। रात को कवि सम्मेलन आयोजित हुआ। कवि सम्मेलन मे मंच से एक कवि कविता पाठ कर रहे थे। लेकिन भाजपा नेता को उनकी कविता रास नहीं आई। नेताजी ने कवि को बैठने को कहा, तभी आयोजन समिति के एक पदाधिकारी ने नेता को शांत रहने की हिदायत दे दी।
बस फिर क्या था नेताजी ने अपना रोद्र रूप धारण कर लिया। कुछ देर के लिए कवि सम्मलेन मे व्यवधान हो गया ओर अफरा तफरी सी मच गई। भाजपा के वर्तमान जिला प्रमुख ने भी इस नेता को समझाने की कोशिश की, लेकिन वो भी असफल रहे। नेताजी ने उनको भी खरी खोटी सुना दी। जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने नेताजी को समझा बुझाकर शांत करने की बहुत कोशिश की, तब जाकर नेताजी ने धेर्य धरा ओर अपनी कुर्सी पर बैठे। इस पूरे आयोजन की सफलता ओर घटना पर तो उंगलिया उठाई ही जा रही है।
झाबुआ उत्सव बना कांग्रेसी उत्सव
भाजपाई प्रशासन ने कल जब उत्सव मनाया, मंत्री से लगाकर संतरी सभी आए । सरकार की अपेक्षा यही थी कि इस माध्यम से कहीं न कहीं भाजपा का वोट बैंक बढे या भाजपा मजबूत हो । लेकिन भाजपाइयों की उपस्थिति में ही प्रशासन ने कांग्रेसियों को न सिर्फ होम लाइक किया बल्कि मंच भी दिया ।
सबसे अहम बात तो यह कि झाबुआ में आयोजन बड़े धूमधाम से किया गया लेकिन भाजपा सांसद गुमानसिंह डामोर को पूरे आयोजन से दूर रखा गया । सबसे अहम बात तो यह कि जो निमंत्रण कार्ड छपा उस पर भी कहीं से कहीं तक सांसद का नाम नहीं है, जबकि शासकीय कार्यक्रम में व्यापारी संघ के पदाधिकारियों के फोटो भी दिखाई दिए ।
लेकिन भाजपा के चुने हुए जनप्रतिनिधियों और नेताओं के फोटो भी नदारद दिखाई दिए। हालात तो यह है कि मंत्री के कार्यक्रम की किसी को सूचना तक नहीं थी, लेकिन बेचारे भाजपाई क्या करें बड़े बेआबरू होकर भी कार्यक्रम में जमे रहे । क्योंकि मलाई तो खाना है इसलिए कलेक्टर और प्रशासन की जी हजूरी करनी ही पड़ेगी। इसलिए बेआबरू ही सही, लेकिन अपनी उपस्थिति जरूर भाजपाई दर्ज करा गये ।
अब सवाल यह है कि आखिर सांसद को किस के इशारों पर नकारा गया तथा प्रोटोकाल का पालन क्यो नही किया गया ?
जनप्रतिनिधि गायब रहे
कहने को तो प्रशासन ने मंत्री को बुलाकर अपनी वाहवाही करवा ली । लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों की जो जनता से चुने हुए हैं, वे चाहे सांसद हो या विधायक सभी इस जब उत्सव से गायब दिखाई दिए ऐसे में साफ था कि उत्सव महज प्रशासन ने अपनी वाहवाही करने के लिए आयोजित किया । क्योंकि जनजातिय समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले चाहे सांसद हो या विधायक सभी इस आयोजन से गायब दिखाई दिए । ऐसे में सवाल यह है कि आखिर किसके इशारे पर जनप्रतिनिधियों को इस कार्यक्रम से दूर रखा गया ।
बड़े बेआबरू हुए भाजपाई
कल झाबुआ उत्सव में मंत्री के दौरे से लगाकर मुख्य कार्यक्रम तक भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता जिस प्रकार से बेआबरू होते हुए दिखाई दिए हैं, वैसी झलक शायद ही कभी दिखाई दी होगी । बताया जाता है कि मंत्री के कार्यक्रम की किसी भी भाजपा पदाधिकारी, कार्यकर्ताओं को सूचना नहीं थी ।
जब मंत्रीजी सर्किट हाउस पर पहुंचे तो दो ही लोग थे, जिन्होंने मंत्रीजी का स्वागत किया । इसको लेकर भी नगर मंडल में काफी आक्रोश दिखाई दिया लेकिन करे तो क्या करें बेआबरू होकर भी कार्यक्रम में शामिल तो होना ही था। इसी लिये प्रशासन के लिये यही कहना सटिक होगा कि-
खरीदने आये थे कुछ लोग हमे, हम ना बिके तो बदनाम हो गये।
चन्द पैसों से सौदा कर मेंरे अपने, आज उन्ही लोगों के गुलाम हो गये