द कश्मीर फाइल्स बनी जन आन्दोलन…

Dewas kashmir files darshak in talkies 16 03 22

फिल्म देखने उमड़ रही भारी भीड़, टॉकीज में बढ़ाए शो

देवास, अग्निपथ। देशभर के साथ साथ देवास में भी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ एक जनआन्दोलन बनकर उभर रही है। वर्ष 1990 में आतंकवादियों, अलगाववादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों पर किये गये अत्याचार, नरसंहार को दर्शाती विवेक अग्निहोत्री इस फिल्म को देखने के लिये शहर के अभिनव टॉकीज में दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ रही है।

11 मार्च को रिलीज हुई द कश्मीर फाइल्स के दो शो चलाए जा रहे थे। एक शो दोपहर 12 बजे एवं दुसरा रात्रि 9 बजे दिखाया जा रहा था, लेकिन शुरूआत से ही दर्शकों की भारी भीड़ के चलते दिनभर में फिल्म के चार शो चलाए जा रहे है। युवा एवं पुरूष वर्ग ही नहीं महिलाएं भी बड़ी संख्या में फिल्म देखने पंहुच रही है। लगभग तमाम सोशल साइट्स फिल्म के प्रचार प्रसार एवं विविध प्रकार की प्रतिक्रियाओं से भरी हुई नजर आ रही है।

सोशल मीडिया से यह भी व्यापक स्तर पर प्रचारित किया जा रहा है कि द कश्मीर फाइल्स को किसी लिंक के माध्यम से नहीं देखी जाए, बल्कि टॉकीज में जाकर ही देखे, ताकि यह फिल्म कमाई के सारे रिकार्ड तोडकऱ उन लोगो को करारा जवाब दे, जिन्होने इसका प्रमोशन तक करने से इंकार कर दिया।

दशकों बाद टॉकीज में आए कई दर्शक

फिल्म के 150 तक टिकट एक साथ खरीदे जा रहे हंै। अनेक लोग तो ऐसे थे, जिन्होंने पिछले 30-35 वर्षो से टॉकीज में फिल्म नहीं देखी। विविध संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं, युवा विद्यार्थियों के साथ ग्रामीणंचल से भी बड़ी संख्या में लोग फिल्म देखने आ रहे हैं। जिले के हाटपीपल्या, बागली सहित अन्य स्थानो पर भी फिल्म को लेकर अभूतपूर्व रूझान दिखाई दे रहा है। फिल्म देखकर टॉकीज से ठंडी श्वास लेते हुए निकलते, कुछ बोल पाने की स्थिति में नजर नहीं आ रहे है। कई दर्शकों की आंखो में तो आंसू तक भरे दिखाई दे रहे है।

बीटीएसएस के प्रांत महामंत्री निर्माण सोलंकी अफसोस प्रकट करते, रूंघे हुए गले से इक्का दुक्का दर्शक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कह रहे है कि द कश्मीर फाईल्स 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के 43 वर्षो बाद हिन्दू समाज की फूटी हुई तकदीर को बयॉ करती है। सपरिवार फिल्म देखने गये व्यवसायी पवन विजयवर्गीय केन्द्र एवं राज्य की सरकारों द्वारा कश्मीरी पंडितों को आंतकियों, अलगाववादियों के हाथो लूटने, पीटने, मरने के लिये बेसहारा छोड़ दिया गया था।

सिर्फ तत्कालीन सरकारों एवं राजनेताओं ने ही नहीं अपितु कश्मीर में लागू धारा 370 भी समाज के उत्पीडऩ का कारण बनी, जिसे वर्तमान सरकार द्वारा हटाया गया।
फिल्म देखकर निकले पवन खंडेलवाल कहते है कि सिर्फ इतना ही नहीं उसके बाद की युवा एवं छात्र पीढ़ी को झूठा इतिहास पढ़ाते, कश्मीर की कड़वी सच्चाई को छिपाते हुए दिग्भ्रमित किया गया।

आतंकवादियों द्वारा बच्चे, बुढ़े, जवान, स्त्रियों को एक पंक्ति में खड़ाकर गोलियों से भून दिया गया और षडय़ंत्रपूर्वक इस दुष्कृत्य का दोषारोपण भारतीय सेना पर किया जाता रहा। द कश्मीर फाईल्स इस असत्य का पर्दाफाश करते हुए सच्चाई से अवगत कराती है।

युवा व्यवसायी अखिलेश सोलंकी, धर्मेन्द्रसिंह चावड़ा, भूपेन्द्रसिंह ठाकुर, राजेश अहिरवार, युवा पत्रकार दिपेश जैन बताते है कि द कश्मीर फाईल्स एक और जहां विघटनकारी राजनीति के दुष्परिणाम स्वरूप कश्मीर में निर्दोषो के लहूलूहान दूश्य को चित्रित करती है, वहीं कश्यप ऋषि जिनके कारण कश्मीर का नामकरण हुआ एवं जगदगुरू शंकराचार्य की तपस्थली एवं हिन्दू तीर्थो का उल्लेख करते हुए इस सत्य से भी अवगत कराती है कि कश्मीर सदियों से भारतवर्ष का अभिन्न अंग रहा है…।

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