ऐसा लगता है कि राजनीतिक पार्टियां अब सिर्फ चुनाव लडऩे तक ही सीमित रह गई हैं। चुनावी दौर में तरह-तरह के मुद्दे उठाओ, चुनाव निपटते ही जनता से नजरे फेर लो। जनसमस्या से किसी को कोई लेना-देना नहीं।
एक समय भाजपा पेट्रोल की कीमत 70-75 रुपए प्रति लीटर होते ही सडक़ों पर उतरकर सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी को घेर लेती थी और तमाम सवाल खड़े करती थी। अब खुद की ही सरकार के राज में पेट्रोल का भाव 92 रुपए तक पहुंच गया है, रसोई गैस सिलेंडर भी 900 पार कर चुका। लेकिन भाजपाई चुप हैं, क्योंकि सरकार उनकी है और माननीय प्रधानमंत्री जो भी कर रहे हैं वह बहुत अच्छा कर रहे हैं।
भक्तों का साफ कहना है पेट्रोल 200 रुपए लीटर भी खरीद लेंगे, सरकार बस पाकिस्तान को सबक सिखाती रहे। दूसरी ओर कांग्रेस भी दड़बे में छिपी बैठी है। सत्ता पर नजर रखने वाले कांग्रेसियों की नजर इन दिनों नगर निगम पर है।
उन्हें जनता की परेशानी या बढ़ती महंगाई नजर ही नहीं आती। अखबारों में प्रेस नोट जारी कर विरोध की खानापूर्ति करने वाले कांग्रेसी प्रभावी रूप से सडक़ पर उतरने के मूड़ में नहीं है। आप पार्टी ने भी पत्रकार वार्ता में चुनावी चर्चा ही की। ऐसे में लगता है जनता अब अकेली है।